अंबेडकर नगर: जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सूफी संत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह है. इस दरगाह को सभी संप्रदाय की आस्था का केंद्र माना जाता है. दरगाह को किछौछा शरीफ के नाम से भी लोग जानते हैं. इस समय मखदूम अशरफ का उर्स चल रहा है. इस दौरान दुनिया भर के लाखों लोग यहां आते थे, लेकिन इस बार कोरोना के चलते दरगाह पर ताला लगा हुआ है.
अम्बेडकर नगर जिले के किछौछा में मखदूम अशरफ की दरगाह स्थित है, जहां बिना किसी भेद-भाव के हिन्दू-मुस्लिम सभी समुदाय के लोग अपनी मन्नतों को लेकर आते हैं. लोगों की मान्यता है कि मखदूम अशरफ की दरगाह पर जो भी मुरादें मांगी जाती हैं, वह सभी मुरादें पूरी होती हैं. मखदूम अशरफ की मजार पर सबसे ज्यादा मानसिक रोग के लोगों की भीड़ होती है. इस दरगाह पर हर साल देश के अलावा विदेशों से भी लाखों की संख्या में लोग आते हैं.
सैकड़ों साल पूर्व खाड़ी के सिमनान प्रदेश से अपनी बादशाहत छोड़ कर मखदूम अशरफ अम्बेडकर नगर आ गए थे और इसी को अपनी कर्मभूमि बनाई थी. सूफी संत मखदूम अशरफ ने बिना किसी भेदभाव के लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस समय मखदूम अशरफ का उर्स चल रहा है, लेकिन दरगाह पर ताला लगा हुआ है. हर साल इस अवसर पर दुनिया भर के लाखों लोगों का आगमन होता था, लेकिन इस बार 634वें उर्स-ए-पाक पर दरगाह के दरवाजे बंद रहेंगे.
सबसे खास बात ये है कि खिरका (मखदूम साहब द्वारा पहना गया विशेष कपड़ा) पहनकर मुल्क में अमन चैन, भाईचारे का संदेश देते हैं. साथ ही दुनिया भर से आये लोगों के लिए दुआ मांगी जाती है. दरगाह के सज्जादानशी मौलाना सैयद हसन असरफ जिलानी ने बताया कि यहां पर अकीदा रखने वाले हर श्रद्धालुओं से अपील की गई है कि इस बार कोई भी दरगाह न आये. उर्स के नाम पर सिर्फ रश्म अदा की जाएगी. कोविड के मद्देनजर कपाट को बंद किया गया है. लोग इस बार अपने गांव में गरीबों की सेवा करें.