प्रयागराज: चंद्रशेखर आजाद की आज 88वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. प्रयागराज का आजाद पार्क उनके गौरवपूर्ण संघर्ष और बलिदान का प्रतीक रहा है. 27 फरवरी 1931 को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपनी जान की कुर्बानी दी थी.
आजाद पार्क में हुई घटना को लेकर प्रयागराज के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी भगवती प्रसाद भारती ने ईटीवी से खास बातचीत में बताया कि आजाद को जब कंपनी बाग में अंग्रेजों ने घेर लिया था तो उन्होंने चार अंग्रेजों को मार गिराया था और फिर आखिरी गोली अपने सिर पर मारकर वह शहीद हो गए.
अपने ही देश के लोगों ने दी थी अंग्रेजों को सूचना
स्वतंत्रता सेनानी भगवती प्रसाद बताते हैं कि अपने ही देश के कुछ लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत को चंद्रशेखर आजाद की कंपनी बाग में रहने की सूचना दी थी. जानकारी मिलने पर अंग्रेजी हुकूमत के सैनिकों ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया, लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने अपने कदम पीछे नहीं किए. अंग्रेजों ने जमकर फायर की, जिसका क्रांतिकारी आजाद ने मुंहतोड़ जवाब दिया.
मुठभेड़ में आजाद ने चार अंग्रेजों को मार गिराया, जब उनको लगा कि अब वह अंग्रेजों से लड़ नहीं पाएंगे तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथों न मरकर खुद को गोली मार ली और देश के लिए शहीद हो गए. भारती बताते हैं कि आज भी चंद्रशेखर आजाद की शौर्य की गाथा कंपनी बाग की हर दीवार चीख कर गाती है.
मीटिंग के लिए पैसे नहीं थे तो ट्रेनों में डाला डाका
स्वतंत्रता सेनानी भगवती प्रसाद बताते हैं कि देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराने के लिए देश के क्रांतिकारियों ने कई कदम उठाएं. वह कभी अंग्रेजी हुकूमत से डरे नहीं बल्कि उन्हें देश से बाहर कैसे भेजा जाए इसकी रणनीति बनाते रहे. चंद्रशेखर, भगत सिंह और जितने भी क्रांतिकारी थे उनकी मीटिंग बुलाई गई और देश के अलग-अलग कोने में क्रांतिकारियों की मीटिंग होने लगी.
इलाहबाद से लेकर बनारस आदि कई जिलों में अंग्रेजों को भगाने की मीटिंग चलती रही. एक बार मीटिंग करने के लिए आजाद को पैसे की जरूरत पड़ी तो उन्होंने ट्रेन में डाका डालकर पैसे एकत्रित किए. इसके बाद इलाहाबाद में भी अंग्रेजों को भगाने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने मीटिंग बुलाई. देश आजाद कराने के लिए जितने भी क्रांतिकारी थे वह शामिल हुए थे.