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द्वापर काल के इस मंदिर में एक दिन में करते हैं सात लाख श्रद्धालु जलाभिषेक

अलीगढ़ से पलवल मार्ग पर भगवान शिव का खेरेश्वर धाम बहुत प्राचीन मंदिर है. सोमवार, सावन, देवछठ और महाशिवरात्रि पर्व पर लाखों कावड़ियां यहां आते हैं. जलाभिषेक कर शिवलिंग की आराधना करते हैं. इस दौरान मंदिर परिषर में मेला आदि का आयोजन होता है. भंडारे और भजन संध्या में सैकड़ों लोग जुटते हैं.

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Published : Mar 10, 2021, 4:25 PM IST

महाशिवरात्रि 2021.
महाशिवरात्रि 2021.

अलीगढ़: भगवान शिव की आराधना का यह खेरेश्वर धाम मंदिर हरिदासपुर गांव में पड़ता है. स्वामी हरिदास की जन्मस्थली यहीं थी. जो बड़े कृष्ण भक्त थे और बाद में मथुरा चले गए थे. हरिदास महोत्सव का भी यहां आयोजन होता है. महाशिवरात्रि पर्व पर लोगों की भारी भीड़ इस मंदिर पर उमड़ती है. दूर-दूर से लोग जलाभिषेक के लिए यहां आते हैं.

महाशिवरात्रि पर शिव की पूजा.

भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ की थी पूजा

सिद्ध पीठ खेरेश्वर धाम का इतिहास द्वापर काल से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और बलदाऊ मथुरा से गंगा स्नान के लिए जा रहे थे. उस समय यहां टीला हुआ करता था और रात्रि यहां विश्राम किया था. उस समय अलीगढ़ का नाम कोल हुआ करता था और यहां के शासक का नाम कोलासुर था. जो बहुत अत्याचारी था. साधु-संतों पर अत्याचार करता था. जब साधु संतों ने भगवान श्रीकृष्ण और बलदाऊ से शिकायत की. बलदाऊ ने कोलासुर शासक का वध किया था. फिर वह गंगा स्नान के लिए गए थे. वहीं रास्ते में उन्होंने एक तालाब में हल धोया था. जिस जगह का नाम हलधुआ पड़ा. आज भी यह जगह हरदुआ गंज के नाम से जाना जाता है.

खेरेश्वर धाम में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर.
खेरेश्वर धाम में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर.

इसे भी पढ़ें- काशी में महाशिवरात्रि पर करिए 'शिवलोक' के दर्शन

यहां का राज्य पांडवों को सौंपा था

गंगा स्नान से लौटने के बाद यहां इसी टीले पर शिवलिंग स्थापित कर आराधना की थी. यहां का राज्य पांडवों को सौंप दिया था. उसी समय से यहां शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हो गई. यहां हमेशा मेला लगता है. देवछठ और सावन के अवसर पर उत्सव का माहौल होता है. इस मेले में कुश्ती, दंगल और कबड्डी का आयोजन भी होता है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम होती है.

खेरेश्वर धाम.
खेरेश्वर धाम.

24 घंटे में सात लाख श्रध्दालु करते हैं दर्शन

महाशिवरात्रि पर्व को लेकर बहुत व्यापक तैयारी होती हैं. वर्ष भर का यह सबसे बड़ा उत्सव होता है. 24 घंटे में करीब सात लाख श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. श्रद्धालुओं के दर्शन करने की व्यवस्था मंदिर प्रबंधक करता है. इसके लिए यहां परिसर में 32 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. मेले में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होती है. मंदिर प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सत्यपाल सिंह ने बताया कि यहां पांडव भी आए थे और श्रीकृष्ण के साथ इसी जगह पूजा की थी. बाद में यहां का राज्य पांडवों को दे दिया गया था. क्योंकि उनकी राजधानी अहार राज्य थी जो कि बुलंदशहर जनपद ही था.

अलीगढ़: भगवान शिव की आराधना का यह खेरेश्वर धाम मंदिर हरिदासपुर गांव में पड़ता है. स्वामी हरिदास की जन्मस्थली यहीं थी. जो बड़े कृष्ण भक्त थे और बाद में मथुरा चले गए थे. हरिदास महोत्सव का भी यहां आयोजन होता है. महाशिवरात्रि पर्व पर लोगों की भारी भीड़ इस मंदिर पर उमड़ती है. दूर-दूर से लोग जलाभिषेक के लिए यहां आते हैं.

महाशिवरात्रि पर शिव की पूजा.

भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ की थी पूजा

सिद्ध पीठ खेरेश्वर धाम का इतिहास द्वापर काल से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और बलदाऊ मथुरा से गंगा स्नान के लिए जा रहे थे. उस समय यहां टीला हुआ करता था और रात्रि यहां विश्राम किया था. उस समय अलीगढ़ का नाम कोल हुआ करता था और यहां के शासक का नाम कोलासुर था. जो बहुत अत्याचारी था. साधु-संतों पर अत्याचार करता था. जब साधु संतों ने भगवान श्रीकृष्ण और बलदाऊ से शिकायत की. बलदाऊ ने कोलासुर शासक का वध किया था. फिर वह गंगा स्नान के लिए गए थे. वहीं रास्ते में उन्होंने एक तालाब में हल धोया था. जिस जगह का नाम हलधुआ पड़ा. आज भी यह जगह हरदुआ गंज के नाम से जाना जाता है.

खेरेश्वर धाम में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर.
खेरेश्वर धाम में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर.

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यहां का राज्य पांडवों को सौंपा था

गंगा स्नान से लौटने के बाद यहां इसी टीले पर शिवलिंग स्थापित कर आराधना की थी. यहां का राज्य पांडवों को सौंप दिया था. उसी समय से यहां शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हो गई. यहां हमेशा मेला लगता है. देवछठ और सावन के अवसर पर उत्सव का माहौल होता है. इस मेले में कुश्ती, दंगल और कबड्डी का आयोजन भी होता है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम होती है.

खेरेश्वर धाम.
खेरेश्वर धाम.

24 घंटे में सात लाख श्रध्दालु करते हैं दर्शन

महाशिवरात्रि पर्व को लेकर बहुत व्यापक तैयारी होती हैं. वर्ष भर का यह सबसे बड़ा उत्सव होता है. 24 घंटे में करीब सात लाख श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. श्रद्धालुओं के दर्शन करने की व्यवस्था मंदिर प्रबंधक करता है. इसके लिए यहां परिसर में 32 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. मेले में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होती है. मंदिर प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सत्यपाल सिंह ने बताया कि यहां पांडव भी आए थे और श्रीकृष्ण के साथ इसी जगह पूजा की थी. बाद में यहां का राज्य पांडवों को दे दिया गया था. क्योंकि उनकी राजधानी अहार राज्य थी जो कि बुलंदशहर जनपद ही था.

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