अलीगढ़: जिले में 75 साल के बुजुर्ग खेत की मेड़बंदी कराने को लेकर 12 साल से जिला प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान आज तक नहीं हुआ. बुजुर्ग महेन्द्र सिंह टप्पल के वैना गांव के रहने वाले हैं. समस्या के समाधान के लिए 60 किलोमीटर से ज्यादा दूरी नाप कर वह कलेक्ट्रेट आते हैं, लेकिन जिलाधिकारी बैठक में बिजी होते हैं या फिर तहसील खैर में समस्या का समाधान कराने को कहते हैं.
गांव वैना में महेन्द्र सिंह का वीरेन्द्र के साथ मेड़बंदी को लेकर विवाद चल रहा है. पूर्व एसडीएम का आदेश भी महेन्द्र सिंह के पक्ष में हैं, जो कि 22 मार्च 2018 का है. लेकिन तहसील स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. आदेश वाले लेटर में तहसीलदार की रिपोर्ट के बारे में कहा गया है, जो 2012 का है. इस मामले में मेड़बंदी को लेकर फीस भी जमा कर दी गई, लेकिन महेन्द्र की समस्या का समाधान नहीं हुआ. महेन्द्र मेड़बंदी करा कर खेत में खंभे लगवाना चाहते हैं, जिससे उनकी फसल की आवारा पशुओं से रक्षा हो सकें, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते महेंद्र को परेशान होना पड़ रहा है.
2012 में तहसीलदार ने दी रिपोर्ट
झोले में मेड़बंदी के कागजों के साथ बुधवार को महेंद्र कलेक्ट्रेट पहुंचे. यहां उन्हें बताया गया जिलाधिकारी मीटिंग में हैं. उम्मीद के साथ इंतजार भी करते हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है. 2008 से खेत के मेड़बंदी को लेकर महेंद्र और उनके पुत्र प्रेमचंद्र ने कवायद शुरु की थी. 2012 में तहसीलदार ने रिपोर्ट भी लगाई, लेकिन लेखपाल द्वारा पैमाइश नहीं की गई. महेन्द्र और उनके पुत्र प्रेमचंद्र सैकड़ों बार अधिकारियों के चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ मायूसी ही हाथ लगी.
नहीं हुई जमीन की पैमाइश
महेंद्र किसान हैं और खेती-बाड़ी कर अपना गुजारा करते हैं. वह अपनी 4 बीघा जमीन पर मेड़बंदी कराना चाहते हैं ताकि उस पर खंभे लगाकर आवारा पशुओं से फसल को बचा सकें. 2012 में एसडीएम के आदेश के बाद भी उनके जमीन की पैमाइश नहीं हुई, जिसको लेकर वे कलेक्ट्रेट और तहसील के चक्कर काट रहे हैं. वे बताते है कि "पिछले 12 सालों से उनकी समस्या का समाधान नहीं हो पाया है. सरकार आम लोगों की समस्याओं के लिए हर संभव कवायद करती है, लेकिन जिले में बैठे अधिकारी इतने लापरवाह है कि 75 साल के बुजुर्ग की एक छोटी सी समस्या में कोई दिलचस्पी नहीं लेते. गरीब किसान 60 किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तय करता है और उम्मीद के साथ प्रशासनिक अधिकारियों के पास पहुंचता है. इसके लिए वह यात्रा में भी अपने पैसे खर्च करता है, लेकिन जिले के अधिकारी समस्याओं के समाधान को लेकर गंभीर नहीं है."