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AMU में मुगल साम्राज्य की वास्तुकला, स्थापत्य कला और इतिहास लेखन पर प्रो. इरफान हबीब ने कहा ये...

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Published : Mar 13, 2023, 10:42 PM IST

एएमयू के इतिहास विभाग द्वारा मुगल साम्राज्यः कला, वास्तुकला और इतिहास लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई. इस दौरान मौजूदा वक्ताओं ने अपने-अपने भाषण दिए.

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अलीगढ़: प्रसिद्ध इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस प्रोफेसर इरफान हबीब ने इतिहास विभाग द्वारा मुगल साम्राज्यः कला, वास्तुकला और इतिहास लेखन विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण दिया. इस दौरान कहा कि ‘इतिहास लेखन की दृष्टि से भवन निर्माण तकनीक का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है. भारत की स्थापत्य विरासत की बहुलता बहुत ही आकर्षक है. हमारे पास अशोक काल से लेकर गुंबदों तक उत्कृष्ट गुफा वास्तुकला है, जो दिल्ली सल्तनत के दौरान और मुगल काल के दौरान बनाए गए असाधारण ताजमहल के रूप में जीवंत उदाहरण है.

मुगल वास्तुकला और इतिहास लेखन‘ पर बोलते हुए प्रोफेसर इरफान हबीब ने मुगल वास्तुकला को आकार देने वाले विविध प्रभावों को रेखांकित किया, जिसमें बताया गया कि कैसे गुंबदों को बाईजान्टिन साम्राज्य से उधार लिया गया था. जबकि मेहराब की कला यूनानियों से ली गई थी. उन्होंने कहा कि ‘यहां तक कि चूना और जिप्सम जैसी जोड़ने वाली सामग्री का उपयोग भी मुसलमानों द्वारा फारसियों और यूनानियों से उधार लिया गया था. प्रोफेसर इरफान हबीब ने मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर के महानगरीय दृष्टिकोण पर जोर दिया, जैसा कि उनके काल के लेखन में दर्शाया गया है.

कहा कि ‘आईन-ए-अकबरी और तुजुक-ए-जहांगीरी जैसे दरबारी इतिहास, मुगलों के बहुसांस्कृतिक लोकाचार के बारे में विस्तार से वर्णन करते हैं, जिसे उनकी वास्तुकला के माध्यम से आसानी से देखा जा सकता है. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए एएमयू कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने विश्वविद्यालय के प्रमुख विभाग होने के लिए उन्नत अध्ययन केंद्र के रूप में इतिहास विभाग के योगदान की सराहना की. उन्होंने मुगल युग के समग्र बौद्धिक और सांस्कृतिक उत्थान में मुगल राजकुमार दारा शिकोह के योगदान का वर्णन किया और बताया कि कैसे वह एक विविध भारतीय संस्कृति और समाज का प्रतीक बन गए.

वहीं, कुलपति प्रो तारिक मंसूर ने कश्मीर में परी महल उद्यान जैसे मुगलों द्वारा बनाए गए कई महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प चमत्कारों के बारे में बात की. उन्होंने प्रो. एब्बा कोच की हालिया पुस्तक, द प्लैनेटरी किंग का भी उल्लेख किया, जिसमें मुगलों की कला और वास्तुकला में हुमायूं के योगदान पर प्रकाश डाला गया है. कुलपति ने आगे कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने भारत की समृद्ध वास्तुकला विरासत में बहुत योगदान दिया है. इससे पूर्व, इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर गुलफिशन खान ने सर सैयद अहमद खान की विरासत और इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान पर प्रकाश डालते हुए मेहमानों और प्रतिनिधियों का स्वागत किया और उनके काम आसारुर सनादीद के माध्यम से वास्तुकला के क्षेत्र में उनके महत्व पर प्रकाश डाला.

यह भी पढ़ें- Absconding Murderer Arrested:32 साल से फरार हत्यारोपी होली पर आया परिवार से मिलने, पुलिस ने दबोचा

अलीगढ़: प्रसिद्ध इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस प्रोफेसर इरफान हबीब ने इतिहास विभाग द्वारा मुगल साम्राज्यः कला, वास्तुकला और इतिहास लेखन विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण दिया. इस दौरान कहा कि ‘इतिहास लेखन की दृष्टि से भवन निर्माण तकनीक का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है. भारत की स्थापत्य विरासत की बहुलता बहुत ही आकर्षक है. हमारे पास अशोक काल से लेकर गुंबदों तक उत्कृष्ट गुफा वास्तुकला है, जो दिल्ली सल्तनत के दौरान और मुगल काल के दौरान बनाए गए असाधारण ताजमहल के रूप में जीवंत उदाहरण है.

मुगल वास्तुकला और इतिहास लेखन‘ पर बोलते हुए प्रोफेसर इरफान हबीब ने मुगल वास्तुकला को आकार देने वाले विविध प्रभावों को रेखांकित किया, जिसमें बताया गया कि कैसे गुंबदों को बाईजान्टिन साम्राज्य से उधार लिया गया था. जबकि मेहराब की कला यूनानियों से ली गई थी. उन्होंने कहा कि ‘यहां तक कि चूना और जिप्सम जैसी जोड़ने वाली सामग्री का उपयोग भी मुसलमानों द्वारा फारसियों और यूनानियों से उधार लिया गया था. प्रोफेसर इरफान हबीब ने मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर के महानगरीय दृष्टिकोण पर जोर दिया, जैसा कि उनके काल के लेखन में दर्शाया गया है.

कहा कि ‘आईन-ए-अकबरी और तुजुक-ए-जहांगीरी जैसे दरबारी इतिहास, मुगलों के बहुसांस्कृतिक लोकाचार के बारे में विस्तार से वर्णन करते हैं, जिसे उनकी वास्तुकला के माध्यम से आसानी से देखा जा सकता है. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए एएमयू कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने विश्वविद्यालय के प्रमुख विभाग होने के लिए उन्नत अध्ययन केंद्र के रूप में इतिहास विभाग के योगदान की सराहना की. उन्होंने मुगल युग के समग्र बौद्धिक और सांस्कृतिक उत्थान में मुगल राजकुमार दारा शिकोह के योगदान का वर्णन किया और बताया कि कैसे वह एक विविध भारतीय संस्कृति और समाज का प्रतीक बन गए.

वहीं, कुलपति प्रो तारिक मंसूर ने कश्मीर में परी महल उद्यान जैसे मुगलों द्वारा बनाए गए कई महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प चमत्कारों के बारे में बात की. उन्होंने प्रो. एब्बा कोच की हालिया पुस्तक, द प्लैनेटरी किंग का भी उल्लेख किया, जिसमें मुगलों की कला और वास्तुकला में हुमायूं के योगदान पर प्रकाश डाला गया है. कुलपति ने आगे कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने भारत की समृद्ध वास्तुकला विरासत में बहुत योगदान दिया है. इससे पूर्व, इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर गुलफिशन खान ने सर सैयद अहमद खान की विरासत और इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान पर प्रकाश डालते हुए मेहमानों और प्रतिनिधियों का स्वागत किया और उनके काम आसारुर सनादीद के माध्यम से वास्तुकला के क्षेत्र में उनके महत्व पर प्रकाश डाला.

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