अलीगढ़ : अभी तक आपने गोबर से खाद, बायो गैस और उपलों के बारे में ही सुना होगा, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गोशालाओं में ही गोबर से लकड़ी की तरह गोकाष्ठ भी तैयार की जा रही है. इसका इस्तेमाल मानव के अंतिम संस्कार के लिए किया जा रहा है. हालांकि हिंदू धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार में कई कुंतल लकड़ियां जलानी पड़ती है. लेकिन अब इसमें गोबर से बनी गोकाष्ठ का उपयोग हो रहा है. इससे पेड़ों का कटान रुकेगा और पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा.
गोबर से हो रही आमदनी
हालांकि एक समय था, जब गोबर के बने उपलों से ही अंतिम संस्कार किया जाता था. बड़े शहरों में आज बिजली और गैस से चलने वाले शवदाह गृह बनाए गए हैं, लेकिन अलीगढ़ में एक भी बिजली या गैस से चलने वाले शवदाह गृह नहीं हैं. गोशालाओं से निकलने वाले गोबर को आमदनी का जरिया बनाया जा रहा है. गाय के गोबर को शुद्ध मानने के साथ ही लोग इसमें भगवान का वास भी बताते हैं. वहीं अब गाय के गोबर से गोकाष्ठ तैयार की जा रही है, जिसका उपयोग अंतिम संस्कार में किया जा रहा है. इसमें सामग्री की भी आवश्यकता नहीं होती है. वायु प्रदूषण भी कम होता है, जिससे पर्यावरण स्वच्छ रहता है. गोशालाओं में गाय के गोबर का सही इस्तेमाल किया जा रहा है.
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गोशालाओं में लगाई गई मशीन
अलीगढ़ की गोशालाओं में गोकाष्ठ तैयार की जा रही है. स्वामी रामतीर्थ गोधाम की इगलास, गोंडा, अकराबाद स्थित गोशाला में मशीन लगाई गई है. अब तक गोशालाओं में गोबर का सदुपयोग नहीं हो पा रहा था. गोबर फेंकने और सफाई करने में पैसा खर्च हो रहा था. अब गोबर के जरिए गोशालाओं की आमदनी का साधन बन गया है. इन गोशालाओं में दो टन गोबर से प्रतिदिन गोकाष्ठ का निर्माण हो रहा है.
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लकड़ी छोड़ गोकाष्ठ का करें प्रयोग
स्वामी रामतीर्थ गोधाम गोशाला के संचालक राकेश रामसन ने बताया कि गोकाष्ठ का निर्माण व्यापक स्तर पर किया जा रहा है, लेकिन अभी लोगों में जागरूकता कम है. अंतिम संस्कार में लकड़ी की अपेक्षा गोकाष्ठ की लागत कम है और इसका धुंआ भी पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं है. राकेश बताते हैं कि इसके जरिए पेड़ बचेंगे, जिससे पर्यावरण की रक्षा होगी. वहीं गोशालाओं की भी आमदनी होगी.
समाज में जागरूकता की जरूरत
राकेश ने बताया कि समाज में जागरूकता की जरूरत है ताकि लोग लकड़ी छोड़कर गोकाष्ठ का प्रयोग करें. इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. राकेश रामसन कहते हैं कि लकड़ी के धुएं और गोकाष्ठ के धुएं में बड़ा अंतर है. गोकाष्ठ के धुएं से वातावरण में रोग वाहक रोगाणु समाप्त हो जाते हैं. इससे वातावरण भी सुरक्षित रहता है. पेड़ भी नहीं काटे जाएंगे, जिससे पर्यावरण स्वच्छ रहेगा.
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लोगों में ला रहे जागरूकता
मानव उपकार संस्था के अध्यक्ष विष्णु कुमार बंटी ने बताया कि अब हम लोगों में जागरूकता पैदा कर रहे हैं. हालांकि अभी बहुत से लोग इसका प्रयोग नहीं कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि लावारिस और अनाथ लोगों के अंतिम संस्कार में गोकाष्ठ का प्रयोग किया जा रहा है, जिसको देखते हुए कुछ लोगों में प्रेरणा जागृत हुई है और वे गोकाष्ठ का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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पेड़ों का हो सकेगा बचाव
गोकाष्ठ लकड़ी की अपेक्षा सस्ता पड़ता है. एक तरफ जहां लकड़ी गीली होती है तो सूखने में समय लगता है और वहीं गोकाष्ठ सस्ता होता है. विष्णु कुमार बंटी कहते हैं कि बात सस्ती या महंगी की नहीं है. इसका उद्देश्य यह है कि पेड़ों का बचाव हो रहा है क्योंकि सरकार करोड़ों रुपये पौधारोपण के लिए खर्च करती है. जहां 100 पेड़ लगाए जाते हैं तो मुश्किल से 10 पेड़ ही जीवित रह पाते हैं. इससे पेड़ों का बचाव होगा.