अलीगढ़: भीकमपुर रियासत का एक ऐतिहासिक गेट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की खूबसूरती बढ़ा रहा है. यह गेट 18 वीं सदी का बताया जाता है. कभी आगरा किले का हिस्सा रहा यह गेट तीन जगह से होते हुए AMU में पहुंचा है.
भीकमपुर रियासत के नवाब ने खरीदा था गेट
भीकमपुर रियासत में अफगानिस्तान के जलालाबाद के शेरवानी पठान का शासन था. उस समय मुगल साम्राज्य पतन के कगार पर था और ब्रिटिश राज का उदय हो रहा था. 18 वीं शताब्दी का यह भीकमपुर गेट मुगलों ने बनवाया था और आगरा के किले का हिस्सा था. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अंग्रेजों ने सन् 1833 में इस गेट को तोड़ कर नीलाम करने का इरादा बनाया. भीकमपुर रियासत के नवाब बाज खान के पुत्र दाऊद खान ने अंग्रेजों से इसे खरीद लिया और इमारतनुमा गेट को सन् 1835 में भीकमपुर रियासत में खड़ा कर दिया.
एएमयू में ऐसे खड़ा किया गया गेट
आजादी के वक्त रियासत खत्म हो जाने का डर यहां के नवाब को सताने लगा. तब दाऊद खान के वंशज अब्दुस शबूर खान शेरवानी ने सन् 1961 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को यह गेट दे दिया. सन् 1963 में यह गेट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सर्किल पर खड़ा किया गया. इस रियासत के नवाब दाऊद खान के नाम से अलीगढ़ में रेलवे स्टेशन भी बना हुआ है.
भारी भरकम गेट आगरा से पहुंचा अलीगढ़
इस गेट में अंदर अंग्रेजी और उर्दू में लिखा पत्थर भी लगा है, जो इसके इतिहास को बयां करता है. हैरानी वाली बात यह है कि इतने भारी भरकम गेट को आगरा से भीकमपुर रियासत तक कैसे लाया गया होगा. दो जगह से ये गेट उखाड़ा गया और फिर गेट को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तीसरी बार खड़ा किया गया. उस समय एएमयू के कुलपति बदरुद्दीन तैयब हुआ करते थे.
AMU में संरक्षित हो रहीं धरोहर
एएमयू के जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते हैं कि यह 18 वीं सदी का हिस्टोरिकल गेट है. ये आगरा के किले का हिस्सा था. अंग्रेजों ने जब आगरा पर कब्जा कर लिया, तो इस गेट को नकुसान पहुंचाया गया. उन्होंने बताया कि अलीगढ़ में छोटी रियासत हुआ करती थी, जिसमें पढ़े लिखे लोग थे. फिर गेट को भीकमपुर रियासत ने खरीद कर अपनी रियासत की शान बढ़ाई. आजादी के बाद इस धरोहर को एएमयू लाकर संरक्षित किया गया.