अलीगढ़ : गोपाल दास नीरज का नाम सुनते ही उनकी कविताएं और गाने मन को ताजा कर देते है. उनके गीतों में प्रेम और विरह की वेदना थी. उनके लिखे गीत आज भी लोगों की जुबां पर है. नीरज मुंबई में 6 साल रहें. उन्हें फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लिखने के लिए लगातार तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया था. उनके लिखे गीत गुबार देखते रहे और जीवन की बगिया महकेगी लोगों ने खूब पसंद किए. सोमवार को उनकी जयंती पर उनके प्रशंसकों ने केपी इंटर कॉलेज में उनके व्यक्तित्व पर परिचर्चा का आयोजन किया. इस दौरान शहर के बुद्धिजीवियों ने उनके जीवन और सफर पर प्रकाश डाला. इस मौके पर उनके व्यक्तित्व पर संग्रहालय बनाने की भी मां की गई, जिससे कि नई पीढ़ी उन पर शोध कर सकें.
तीन फिल्म फेयर अवार्ड से हुए थे सम्मानित
उनकी कविताओं और से प्रभावित होकर फिल्म निर्माता आर चंद्रा ने उन्हें अपनी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' में गीत लिखने का मौका दिया. आर चंद्रा अलीगढ़ में पले बढ़े और अभिनेता भारत भूषण के बड़े भाई थे. इसलिए अलीगढ़ से उनका जुड़ाव था. साल 1964 में गोपाल दास नीरज मुंबई चले गए. आर चंद्रा की फिल्म जब 1966 में रिलीज हुई, लेकिन सफल नहीं हुई. मोहम्मद रफी की आवाज में फिल्म का गाना कारवां गुजर गया बहुत लोकप्रिय हुआ.
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मझली दीदी' देवानंद अभिनीत फिल्म दुनिया, प्रेमपुजारी, राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर, आत्माराम निर्देशित फिल्म चंदा और बिजली, साल 1971 में मनोज कुमार की फिल्म पहचान व शशि कपूर की फिल्म शर्मीली में उन्होंने गीत लिखें. फिल्म चंदा और बिजली के गीत काल पहिया घूमे रे भैया, पहचान फिल्म का गीत बस यही अपराध में हर बार करता हूं, मेरा नाम जोकर फिल्म का गीत ए भाई जरा देखकर चलो के लिए उन्हें तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था.
छह साल मुंबई में गुजारे
मुंबई की रंगीन दुनिया गोपाल दास नीरज को ज्यादा दिन रास नहीं आई. वहां की चकाचौंध को साल 1971 में छोड़कर वापस आ गए. उन्हें साल 1991 में पद्मश्री और साल 2007 में पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया. 19 जुलाई 2018 को उनका निधन हो गया था.