अलीगढ़ : जिले के कार सेवक भगवान सिंह का राम मंदिर आंदोलन में अहम योगदान था. 24 साल की उम्र में राम मंदिर आंदोलन में भाग लिया और अपना बलिदान दे दिया. उनके परिजनों को भगवान सिंह के शव का अभी भी इंतजार है. कारसेवा करने के दौरान पुलिस की गोली लगने से भगवान सिंह की मौत हो गई थी. जब परिजन शव तलाश करने गये तो बताया गया कि उनका अंतिम संस्कार पुलिस ने करवा दिया है. वहीं, कोई कहता है कि उनके शव को सरयू नदी में बहा दिया गया.
परिजनों को बिना बताए पहुंच गये थे अयोध्या : अलीगढ़ की मिट्टी से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन को धार देने का काम किया था. वही, आंदोलन में गोंडा के नगला बलराम गांव में रहने वाले भगवान सिंह ने राम मंदिर कार सेवा में हिस्सा लेने परिजनों को बिना बताए अयोध्या पहुंच गये. मां से यही कहा था कि शायद अब लौट नहीं पाऊंगा. तब परिजनों को इस बात का एहसास नहीं था कि उनका बेटा राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनने जा रहा है. 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह सरकार ने दावा किया था कि 'अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता'. तब देशभर के कार सेवकों का जत्था अयोध्या जाने के लिए निकला था. भगवान सिंह का परिवार खेती किसानी करता है. भगवान सिंह के दो अन्य भाइयों में विजयपाल सिंह और नेपाल सिंह भी हैं. भगवान सिंह के भतीजे हरिओम ने बताया कि 'चाचा की उम्र 24 वर्ष की थी. वह बचपन से ही RSS की शाखा में जाते थे.'
अलीगढ़ में हुई शुरुआती पढ़ाई : भगवान सिंह की शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ में हुई. इसके बाद वह आगे की शिक्षा हासिल करने के लिए मथुरा चले गए. वहीं पर ही हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार करने लगे, हालांकि उन्होंने विवाह में रुचि नहीं जताई. जब परिवार के लोग विवाह की बात करते तो वे टाल देते थे. वहीं, उनको जब पता चला कि अयोध्या में कार सेवा के लिए राम भक्तों का जमावड़ा शुरू हो रहा है, तो वह अपने आप को रोक नहीं सके. अयोध्या कुछ करने से पहले वह मथुरा से अपने घर अलीगढ़ आए. यहां उन्होंने अपनी मां के पैर छुए और कहा कि मैं शायद अब लौटकर न आ पाऊं, तब मां शीशकौर देवी नहीं समझ पाई कि उनका बेटा अयोध्या आंदोलन में जाने की बात कह रहा है. उन्हें लगा कि वह मथुरा जा रहा है.
नाकेबंदी के बाद भी पहुंच गए थे अयोध्या : भगवान सिंह 28 अक्टूबर 1990 को अलीगढ़ से निकले थे, तब चारों तरफ पुलिस का पहरा बैठाया गया था. अलीगढ़ से अयोध्या की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है. तब रेल और बस मार्ग के अलावा ग्रामीण इलाकों की पगडंडियों पर भी पुलिस गश्त करती थी. अयोध्या जाने वालों को पकड़ कर जेल भेज दिया जाता था, हालांकि तमाम नाकेबंदी के बाद भी भगवान सिंह अयोध्या पहुंच गए थे. वहीं, दो नवम्बर 1990 में अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चली, जिसमें भगवान सिंह भी शिकार हो गए. परिजनों के अनुसार, भगवान सिंह को गोली सीने में लगी थी. उनके प्राण राम जन्मभूमि के ही पास में निकले थे. उनके बलिदान होने की जानकारी उनके जत्थे में शामिल अन्य कार सेवकों को भी हुई. हालांकि परिजनों को जब पता चला कि भगवान सिंह की अयोध्या में गोली लगने से मौत हो गई है तो अयोध्या पहुंचे. कई दिन तक शव के लिए अयोध्या में भटकते रहे. अयोध्या की गली-गली और नदी के किनारे भगवान सिंह को तलाश किया. इस दौरान शासन-प्रशासन के लोगों ने कोई मदद नहीं की. परिजनों को शव नहीं मिला. कोई कहता था कि पुलिस ने अंतिम संस्कार करवा दिया तो कोई कहता था सरयू नदी में बहा दिया गया.
मां को बेटे के शव का आज भी इंतजार : भगवान सिंह की 92 वर्षीय मां शीशकौर देवी आज भी जीवित हैं. वह अपने बलिदानी बेटे को अंतिम बार नहीं देख पाने के चलते दुखी हैं. लेकिन अयोध्या में राम का मंदिर बनने पर परिवार खुश है. मां को आज भी अपने बेटे के शव का इंतजार है. हालांकि उनके परिवार को मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का अभी कोई निमंत्रण नहीं मिला है. विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री मुकेश राजपूत ने बताया कि जिस समय राम मंदिर आंदोलन चला था और बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाया गया. भगवान सिंह ने एक कार सेवक के रूप में अपना बलिदान दिया. वह गोंडा क्षेत्र में रहते थे. उनके परिवार में उनकी माता बहुत बुजुर्ग हैं, वहीं भाई भतीजों से विश्व हिन्दू परिषद के लोग मिले हैं. उन्होंने कहा कि '22 जनवरी के बाद उनके परिवार को अयोध्या के लिए आमंत्रण दिया जा रहा है.'