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140 साल में बदल गया प्रदर्शनी का रंगरूप, पर नहीं बदला गंगा-जमुनी तहजीब का संदेश

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Published : Feb 7, 2021, 7:33 AM IST

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में लगने वाली नुमाइश यानी अलीगढ़ महोत्सव इस शहर को अलग ही पहचान देता है. आज इसका स्वरूप बेशक भव्य हो गया हो लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है. समय के साथ इसके रंग भी बदलते चले गए लेकिन सौहार्द और समन्वय का रंग आज भी ज्यों का त्यों है.

अलीगढ़
अलीगढ़

अलीगढ़ : जिले में लगने वाली प्रदर्शनी का सब लोग साल भर इंतजार करते हैं. यहां के नुमाइश ग्राउंड में हर वर्ष राजकीय औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. आमतौर पर लोग इसे नुमाइश या अलीगढ़ महोत्सव के नाम से ही जानते हैं. इसकी शुरुआत 'अश्व प्रदर्शनी' के रूप में हुई थी. सन् 1880 में कलेक्टर मार्शल के दरबार में राजा हरनारायण सिंह के प्रस्ताव पर इसे 'अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट फेयर' का नाम दिया गया. नुमाइश मैदान में दरबार हॉल का निर्माण 1914 में कलेक्टर डब्ल्यू एस मैरिस ने करवाया था, जहां पहले डेरा तंबू लगाकर दरबार लगाया जाता था. वहीं 1929 में महात्मा गांधी के स्वागत एवं प्रवास का सौभाग्य भी इस दरबार हाल को प्राप्त है. स्वतंत्रता प्राप्ति तक प्रदर्शनी का स्वरूप एक मेले तक सीमित था. इसमें घोड़ों एवं घुड़दौड़ के अतिरिक्त राजाओं, नवाबों तथा अंग्रेज अफसरों के कैंपों के साथ-साथ डेली उपयोग की वस्तुओं का बाजार लगता था.

अलीगढ़ में नुमाइश यानी अलीगढ़ महोत्सव
धीरे धीरे बदलता गया स्वरूप आजादी के बाद 1947 में वर्तमान नामकरण के साथ प्रदर्शनी के स्वरूप में धीरे-धीरे परिवर्तन आया. देश के कोने-कोने से दुकानदार इस नुमाइश की ओर आकर्षित होने लगे. सन् 1952 में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में प्रतिष्ठित लोगों की कार्यकारिणी गठित की गई. प्रदर्शनी का मुख्य द्वार मित्तल गेट उस समय के जिला अधिकारी केसी मित्तल ने बनवाया. 1961 में प्रदर्शनी को पूर्णता औद्योगिक एवं कृषि स्वरूप मिल गया था. 1971 से यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला जुड़ गई.140 साल के अतीत को समेटे है नुमाइशकरीब 40 एकड़ फैले प्रदर्शनी परिसर में 28 विशाल द्वारों का निर्माण किया जा चुका है. गांधी जी की प्रतिमा की स्थापना भी 1978 में हुई. इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कृष्णांजलि सभागार 1987 में तैयार हुआ. इस मैदान में पक्की दुकानों का निर्माण भी 1985 में हुआ. 1994 में यहां सड़क बननी शुरू हुई. वहीं 1995 में ही लाल ताल, गेस्ट हाउस, मुक्ताकाश मंच का निर्माण हुआ, वहीं 2007 में शिल्पग्राम और कृषि कक्ष की स्थापना की गई. धीरे-धीरे इस नुमाइश का विस्तार होता चला गया. प्रदर्शनी की भूमि के निकट ही तहसील परिसर के पास किसान भवन के निर्माण की आधार शिला रखी गई. वर्तमान समय में प्रदर्शनी न केवल औद्योगिक, व्यापारिक एवं कृषि जगत में अपना स्थान रखती है, बल्कि संपूर्ण उत्तर भारत में एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विख्यात है. इस नुमाइश के 140 साल के अतीत और गौरवशाली वर्तमान पर नजर डालें तो स्वर्णिम उज्जवल भविष्य की संभावना नजर आती है. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का संदेश देती हैअलीगढ़ की नुमाइश गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक रही है. नुमाइश में सेकुलर ट्रेडीशन को बढ़ावा दिया जाता है. यहां मैदान के अंदर गोपालदास नीरज और शहरयार पार्क बनाया गया है. हालांकि यहां नुमाइश की खुशियों के साथ कुछ दर्द भी मिले हैं. 1979 दंगों के चलते पांच साल नुमाइश नहीं लगाई गई. इस बार नुमाइश में कवि सम्मेलन के साथ मुशायरा भी आयोजित किया जाएगा. जिलाधिकारी चंद्र भूषण सिंह कहते है कि इस बार प्रयास है कि मतभेद भूलकर सभी नुमाइश में प्रतिभाग करें.करोड़ों के बजट से यहां होते हैं रंगारंग कार्यक्रम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए यहां पुष्पांजलि सभागार, कोहिनूर मंच और मुक्ताकाश मंच को भव्यता से सजाया गया है. देश प्रदेश के अलग-अलग शहरों से यहां आए कलाकार इसका आकर्षण बढ़ाते हैं. इस बार नुमाइश के लिए करीब ₹12 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रस्ताव किया गया था. जिसे घटाकर 8 करोड़ रुपए में कराने की तैयारी है. इस प्रदर्शनी में उठने वाले ठेकों, बाजार, दुकान आदि से करीब दस करोड़ रुपये की आय प्रस्तावित थी, लेकिन ठेके की दरों में कमी की गई है. यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ उद्योग व कृषि विकास के क्षेत्र में हो रही प्रगति की झलक भी देखने को मिलती है.नुमाइश में बच्चों का पूरा मनोरंजन इस नुमाइश में बच्चों के मनोरंजन के लिए पूरे साधन मौजूद हैं. यहां खाने पीने की दुकानों से लेकर बच्चों के खिलौने मौजूद हैं. वहीं झूले, डांस पार्टियों के साथ ही सर्कस का भी मजा बच्चे ले सकते हैं. सॉफ्टी, आइसक्रीम की दुकानें सजी हुई हैं. वही खजला, नानखटाई, पॉपकॉर्न,हलवा पराठा, आलू टिक्की, गोलगप्पे , आलू के बरुले भी लोगों को खूब भा रहे हैं. लोगों को इस नुमाइश का साल भर इंतजार रहता है. बच्चों से ही इस नुमाइश की रौनक होती है.पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा मेला कोरोना के चलते इस बार ऐसा लग रहा था कि अलीगढ़ की नुमाइश का आयोजन नहीं हो पाएगा. कोरोना महामारी के चलते जिला प्रशासन कोई फैसला नहीं ले पा रहा था. 1880 से चली आ रही यह नुमाइश पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा मेला माना जाता है. इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलता है. यहां उन्नत कृषि से लेकर आधुनिक उद्योग का प्रदर्शन होता है. यहां नुमाइश विविधता में एकता को दर्शाती है. गांव प्रधान बच्चू सिंह बताते हैं कि नुमाइश ही एक ऐसा स्थान है. जहां शहरी और ग्रामीण अंचल के लोग अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि आजादी के बाद इस प्रदर्शनी का स्वरूप बदलता चला गया है और अभी 'अलीगढ़ महोत्सव' में बदल चुका है. यहां जनता के लिए अच्छे मनोरंजन के साधन मौजूद है. इस बार 26 दिन चलने वाली इस नुमाइश में वालीवुड कलाकारों से लेकर स्थानीय कलाकार अपनी प्रस्तुति देते नजर आएंगे.हजारों लोगों को मिलता है रोजगारकोरोना लाकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं. नुमाइश में पूरे मेले जैसा नजारा देखने को मिलता है. इस नुमाइश में सर्कस और झूले सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रहता है. लोग पूरे साल भर इनका इंतजार करते हैं .वहीं पूरे प्रदेश के दुकानदार यहां अपनी दुकान लगाते हैं. एक साल के बाद नुमाइश में वही रौनक और उत्साह एक बार फिर लोगों को लुभाने के लिए तैयार है. यहां मनोरंजन के साथ स्वाद का भी ख्याल रखा जाता है. खजला, हलवा, पराठा, बरूले, नानखटाई की दुकानें सज चुकी हैं. बरेली का सुरमा, कालीन, लखनवी कुर्ती, कश्मीरी साल इस बार भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. सर्कस, झूले, नौटंकी, मौत का कुआं, जादूगरी के कारनामे लोगों को रोमांचित करते हैं, यहां रंगारंग आयोजन लोगों को आनंद देता है.

अलीगढ़ : जिले में लगने वाली प्रदर्शनी का सब लोग साल भर इंतजार करते हैं. यहां के नुमाइश ग्राउंड में हर वर्ष राजकीय औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. आमतौर पर लोग इसे नुमाइश या अलीगढ़ महोत्सव के नाम से ही जानते हैं. इसकी शुरुआत 'अश्व प्रदर्शनी' के रूप में हुई थी. सन् 1880 में कलेक्टर मार्शल के दरबार में राजा हरनारायण सिंह के प्रस्ताव पर इसे 'अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट फेयर' का नाम दिया गया. नुमाइश मैदान में दरबार हॉल का निर्माण 1914 में कलेक्टर डब्ल्यू एस मैरिस ने करवाया था, जहां पहले डेरा तंबू लगाकर दरबार लगाया जाता था. वहीं 1929 में महात्मा गांधी के स्वागत एवं प्रवास का सौभाग्य भी इस दरबार हाल को प्राप्त है. स्वतंत्रता प्राप्ति तक प्रदर्शनी का स्वरूप एक मेले तक सीमित था. इसमें घोड़ों एवं घुड़दौड़ के अतिरिक्त राजाओं, नवाबों तथा अंग्रेज अफसरों के कैंपों के साथ-साथ डेली उपयोग की वस्तुओं का बाजार लगता था.

अलीगढ़ में नुमाइश यानी अलीगढ़ महोत्सव
धीरे धीरे बदलता गया स्वरूप आजादी के बाद 1947 में वर्तमान नामकरण के साथ प्रदर्शनी के स्वरूप में धीरे-धीरे परिवर्तन आया. देश के कोने-कोने से दुकानदार इस नुमाइश की ओर आकर्षित होने लगे. सन् 1952 में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में प्रतिष्ठित लोगों की कार्यकारिणी गठित की गई. प्रदर्शनी का मुख्य द्वार मित्तल गेट उस समय के जिला अधिकारी केसी मित्तल ने बनवाया. 1961 में प्रदर्शनी को पूर्णता औद्योगिक एवं कृषि स्वरूप मिल गया था. 1971 से यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला जुड़ गई.140 साल के अतीत को समेटे है नुमाइशकरीब 40 एकड़ फैले प्रदर्शनी परिसर में 28 विशाल द्वारों का निर्माण किया जा चुका है. गांधी जी की प्रतिमा की स्थापना भी 1978 में हुई. इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कृष्णांजलि सभागार 1987 में तैयार हुआ. इस मैदान में पक्की दुकानों का निर्माण भी 1985 में हुआ. 1994 में यहां सड़क बननी शुरू हुई. वहीं 1995 में ही लाल ताल, गेस्ट हाउस, मुक्ताकाश मंच का निर्माण हुआ, वहीं 2007 में शिल्पग्राम और कृषि कक्ष की स्थापना की गई. धीरे-धीरे इस नुमाइश का विस्तार होता चला गया. प्रदर्शनी की भूमि के निकट ही तहसील परिसर के पास किसान भवन के निर्माण की आधार शिला रखी गई. वर्तमान समय में प्रदर्शनी न केवल औद्योगिक, व्यापारिक एवं कृषि जगत में अपना स्थान रखती है, बल्कि संपूर्ण उत्तर भारत में एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विख्यात है. इस नुमाइश के 140 साल के अतीत और गौरवशाली वर्तमान पर नजर डालें तो स्वर्णिम उज्जवल भविष्य की संभावना नजर आती है. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का संदेश देती हैअलीगढ़ की नुमाइश गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक रही है. नुमाइश में सेकुलर ट्रेडीशन को बढ़ावा दिया जाता है. यहां मैदान के अंदर गोपालदास नीरज और शहरयार पार्क बनाया गया है. हालांकि यहां नुमाइश की खुशियों के साथ कुछ दर्द भी मिले हैं. 1979 दंगों के चलते पांच साल नुमाइश नहीं लगाई गई. इस बार नुमाइश में कवि सम्मेलन के साथ मुशायरा भी आयोजित किया जाएगा. जिलाधिकारी चंद्र भूषण सिंह कहते है कि इस बार प्रयास है कि मतभेद भूलकर सभी नुमाइश में प्रतिभाग करें.करोड़ों के बजट से यहां होते हैं रंगारंग कार्यक्रम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए यहां पुष्पांजलि सभागार, कोहिनूर मंच और मुक्ताकाश मंच को भव्यता से सजाया गया है. देश प्रदेश के अलग-अलग शहरों से यहां आए कलाकार इसका आकर्षण बढ़ाते हैं. इस बार नुमाइश के लिए करीब ₹12 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रस्ताव किया गया था. जिसे घटाकर 8 करोड़ रुपए में कराने की तैयारी है. इस प्रदर्शनी में उठने वाले ठेकों, बाजार, दुकान आदि से करीब दस करोड़ रुपये की आय प्रस्तावित थी, लेकिन ठेके की दरों में कमी की गई है. यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ उद्योग व कृषि विकास के क्षेत्र में हो रही प्रगति की झलक भी देखने को मिलती है.नुमाइश में बच्चों का पूरा मनोरंजन इस नुमाइश में बच्चों के मनोरंजन के लिए पूरे साधन मौजूद हैं. यहां खाने पीने की दुकानों से लेकर बच्चों के खिलौने मौजूद हैं. वहीं झूले, डांस पार्टियों के साथ ही सर्कस का भी मजा बच्चे ले सकते हैं. सॉफ्टी, आइसक्रीम की दुकानें सजी हुई हैं. वही खजला, नानखटाई, पॉपकॉर्न,हलवा पराठा, आलू टिक्की, गोलगप्पे , आलू के बरुले भी लोगों को खूब भा रहे हैं. लोगों को इस नुमाइश का साल भर इंतजार रहता है. बच्चों से ही इस नुमाइश की रौनक होती है.पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा मेला कोरोना के चलते इस बार ऐसा लग रहा था कि अलीगढ़ की नुमाइश का आयोजन नहीं हो पाएगा. कोरोना महामारी के चलते जिला प्रशासन कोई फैसला नहीं ले पा रहा था. 1880 से चली आ रही यह नुमाइश पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा मेला माना जाता है. इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलता है. यहां उन्नत कृषि से लेकर आधुनिक उद्योग का प्रदर्शन होता है. यहां नुमाइश विविधता में एकता को दर्शाती है. गांव प्रधान बच्चू सिंह बताते हैं कि नुमाइश ही एक ऐसा स्थान है. जहां शहरी और ग्रामीण अंचल के लोग अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि आजादी के बाद इस प्रदर्शनी का स्वरूप बदलता चला गया है और अभी 'अलीगढ़ महोत्सव' में बदल चुका है. यहां जनता के लिए अच्छे मनोरंजन के साधन मौजूद है. इस बार 26 दिन चलने वाली इस नुमाइश में वालीवुड कलाकारों से लेकर स्थानीय कलाकार अपनी प्रस्तुति देते नजर आएंगे.हजारों लोगों को मिलता है रोजगारकोरोना लाकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं. नुमाइश में पूरे मेले जैसा नजारा देखने को मिलता है. इस नुमाइश में सर्कस और झूले सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रहता है. लोग पूरे साल भर इनका इंतजार करते हैं .वहीं पूरे प्रदेश के दुकानदार यहां अपनी दुकान लगाते हैं. एक साल के बाद नुमाइश में वही रौनक और उत्साह एक बार फिर लोगों को लुभाने के लिए तैयार है. यहां मनोरंजन के साथ स्वाद का भी ख्याल रखा जाता है. खजला, हलवा, पराठा, बरूले, नानखटाई की दुकानें सज चुकी हैं. बरेली का सुरमा, कालीन, लखनवी कुर्ती, कश्मीरी साल इस बार भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. सर्कस, झूले, नौटंकी, मौत का कुआं, जादूगरी के कारनामे लोगों को रोमांचित करते हैं, यहां रंगारंग आयोजन लोगों को आनंद देता है.
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