आगराः यूपी में पहले नगर प्रमुख का कार्यकाल एक साल का होता था. एक वार्ड से दो पार्षद चुने जाते थे, जो वार्ड के विकास की नींव रखते थे. जब सन 1959 में आगरा नगर महापालिका अस्तित्व में आई, तब से पहले नगर प्रमुख चुने जाते थे. आगरा में पहले नगर प्रमुख चुना गया. सन 1973 में अंतिम नगर प्रमुख कुंज बिहारी चुने गए. इसके बाद 16 वर्ष तक चुनाव नहीं हुए. फिर, सन 1989 में आगरा में पहली बार मेयर पद के लिए चुनाव हुआ. मेयर का कार्यकाल पांच वर्ष का हुआ.
पांच बार के पार्षद शिरोमणि सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि पहले पार्षद जन सेवा करते थे. जनता पर टैक्स नहीं लगाने के लिए काम होता था. लेकिन, अब सबसे पहले पार्षद ही जनता पर टैक्स लगाने के लिए सदन में हाथ उठाते हैं. जब से पांच साल का कार्यकाल हुआ तो भ्रष्टाचार और बढ़ गया है. अब महापौर बनने पर कमीशन का खेल ही खूब चल रहा है. गौरतलब है कि यूपी निकाय चुनाव में प्रथम चरण का मतदान 4 मई को होना है. इसको लेकर महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, पार्षद और सभासद पद के उम्मीदवार चुनाव प्रचार में जुड़े हुए हैं. निकाय चुनाव का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है. अंग्रेजों ने बड़े शहरों में के समय पर सबसे पहले म्युनिसिपालिटी बनाई थी, जो आगे चलकर नगर महापालिका, नगर निगम बनी.
महापालिका पर 16 साल प्रशासक का रहा राज
बता दें कि आजादी के 12 साल बाद आगरा सन 1959 में नगर महापालिका बनी, तब एक साल के नगर प्रमुख चुने जाते थे. सन 1973 में अंतिम नगर प्रमुख कुंज बिहारी चुने गए. इसके बाद 16 वर्ष तक चुनाव नहीं हुए. इस दौरान जनता की सरकार की जगह प्रशासक ने शहर को चलाया. इसमें तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का लगाया आपातकाल का समय भी रहा है. फिर सन 1989 में कांग्रेस की जगह विपक्षी दल के साथ क्षेत्रीय दल भी तेजी से उभरे. इसी साल पहली बार मेयर के चुनाव हुए.
पहले पार्षद करते थे जनसेवा
पांच बार के पार्षद शिरोमणि सिंह का कहना है कि, जब चुंगी पर नगर पालिका का कार्यालय था, तब तक सब कुछ ठीक था. बेइमानी की कोई बात नहीं थी. आज जनता से टैक्स लगाने में पार्षद लालायत रहते हैं, तब जनता का टैक्स कम कराने की पार्षदों में ललक होती थी. पार्षद कहते थे कि सरकार पैसा दे, जनता टैक्स ज्यादा नहीं देगी. आज तो हर साल टैक्स बढ़ाया जा रहा है. अब पार्षद खुद सदन में जनता पर टैक्स बढ़वाने के लिए हाथ उठा देते हैं, पहले जन सेवा थी. अब नहीं है.
पांच साल के कार्यकाल से शुरू हुआ कमीशन का खेल
पूर्व पार्षद शिरोमणि सिंह ने बताया कि पहले नगर पालिका, महानगर पालिका में एक साल का नगर प्रमुख चुना जाता था, तब बहुत ईमानदारी थी. तब ईमानदारी से नगर प्रमुख मेयर चुन जाता था. ईमानदारी से ही पार्षद भी चुन जाते थे, पैसे की हाय तौबा नहीं थी. जब पांच साल का महापौर का कार्यकाल हुआ, तभी से ही बेईमानी शुरू हो गई. सन 1989 में पार्षद बिके, तब ईमानदारी में सबकुछ था. पांच साल का कार्यकाल हुआ, लेकिन जब से जनता ही महापौर चुनने लगी तो कुछ बेईमानी और भ्रष्टाचार कम हुआ है. कमीशन का खेल है.
नगर महापालिका के नगर प्रमुख
सन | नगर प्रमुख |
1959-60 | शंभुनाथ चतुर्वेदी |
1960-61 | कुंज बिहारी |
1961-62 | बंश कुमार मेहरा |
1962-63 | डॉ. राम चंद्र गुप्ता |
1963-70 | कल्यान दास जैन |
1970-71 | रामबाबू वर्मा |
1971-73 | कुंज बिहारी |
आगरा नगर निगम के मेयर
सन | मेयर का नाम |
1989 | रमेशकांत लवानिया |
1995 | बेबीरानी मौर्य |
2000 | किशोरी लाल माहौर |
2006 | अंजुला सिंह माहौर |
2012 | इंद्रजीत आर्य |
2017 | नवीन जैन |
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