आगराः मुगलिया राजधानी रहे आगरा में तमाम स्मारक और पर्यटन स्थल हैं. जिनका अपना इतिहास बहुत दिलचस्प और गौरवशाली भी है. इनमें मुगलिया काल में बना एकमात्र हिंदू स्मारक 'जसवंत की छतरी' है. यमुना किनारे बल्केश्वर में रजवाड़ा स्थित 'जसवंत सिंह की छतरी' भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का संरक्षित स्मारक है. लेकिन स्मारक की चारदीवारी से सटकर निर्माण होने से स्मारक की सुंदरता बिगड़ गई है और दूर से दिखाई भी नहीं देता है.
दूर से नहीं दिखाई देती स्मारक
कोई सुगम रास्ता न होने के कारण पर्यटक 'जसवंत की छतरी' तक नहीं पहुंच पाते हैं. एएसआई की अनदेखी से स्मारक का इतिहास बताने वाला शिलापट्ट टूटने के एक साल बाद भी नहीं लगा है. यहां आसपास हुए निर्माण से स्मारक दूर से दिखाई भी नहीं देता है. यही वजह है कि छह माह में स्मारक देखने एक भी पर्यटक नहीं पहुंचा. अब यह स्मारक अब बच्चों के क्रिकेट खेलने का मैदान बन गया है. असामाजिक तत्व भी यहां डेरा डाले रहते हैं. स्मारक परिसर में लोग घरों से कचरा भी फेंकते हैं.
बाग में थे फव्वारे, अब अस्तित्व भी नहीं
जोधपुर के राजा जसवंत सिंह द्वितीय ने बड़े भाई अमर सिंह राठौड़ और उनकी रानी हाडा की याद में सन् 1644 से 1658 के मध्य बल्केश्वर में यमुना किनारे छतरी का निर्माण कराया था. इस स्मारक में मुगल और हिंदू वास्तुकला का लाजवाब मिश्रण है. इसकी जालियां काफी खूबसूरत हैं. जसवंत सिंह की छतरी के स्मारक में तीन प्रवेश द्वार हैं, जिस पर खूबसूरत छतरियां हैं. दीवार पर बेल-बूटों आकर्षित कार्विंग का काम है. इसके स्तंभों में मुगलकालीन स्थापत्य कला की झलक नजर आती है. छतरी के चारों ओर पहले बाग हुआ करता था और फव्वारे चलते थे. लेकिन आज उनका अस्तित्व ही मिट गया है.
सती मां करती हैं मुराद पूरी
जसवंत की छतरी निवासी मालती गुप्ता का कहना है कि यहां पर रानी सती हुई थीं, जिनका यह मंदिर है. इस मंदिर में स्थानीय महिलाएं अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए सती मइया से प्रार्थना करती हैं. जिनकी मुराद पूरी हो जाती है, वे यहां पर सुहाग की निशानी चढ़ाती हैं.
पर्यटक नहीं पहुंच पाते
एएसआई के देखभाल खरने वाले कर्मचारी शांति स्वरूप का कहना है कि मुझे यहां 6 महीने से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन मैंने अभी कोई पर्यटक नहीं देखा है. इसकी क्या वजह है, यह तो पता नहीं है. लेकिन यहां आने का रास्ता भी सही नहीं है. गलियों में होकर यहां आना पड़ता है. इसलिए शायद पर्यटक यहां नहीं आते हैं.
चंद स्मारकों तक सिमटा एएसआई का संरक्षण कार्य
आगरा के वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन कहते हैं कि आगरा में करीब 200 स्मारक एएसआई की लिस्ट में है. लेकिन इनके संरक्षण के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है. एएसआई का संरक्षण कार्य सिर्फ ताजमहल, आगरा किला, फतेहपुर सीकरी के अलावा एत्मादउद्दौला और सिकंदरा तक ही सिमट कर रह गया है. यही वजह है कि पुरातत्व के तमाम स्मारकों पर अवैध निर्माण हो रहा है. स्मारकों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. लेकिन एसआई का इस ओर ध्यान नहीं है.
जसवंत सिंह ने कराया था छतरी का निर्माण
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि बल्केश्वर में गांव रजवाड़ा में स्थिति जसवंत की छतरी एकमात्र ऐसा हिंदू स्मारक है, जिसका मुगल काल में निर्माण हुआ था. सन् 1644 में अमर सिंह राठौड़ ने शाहजहां के भरे दरबार में उसके दरबारी सलावत खां का कत्ल कर दिया था. इसके बाद अमर सिंह राठौड़ की भी कत्ल हो गया था. अमर सिंह राठौड़ के शरीर के साथ जिस जगह उनकी पत्नी हाड़ा रानी सती हुई थीं. वही जगह जसवंत की छतरी कहलाती है. अमर सिंह राठौड़ के बाद निधन के बाद उनके छोटे भाई जसवंत सिंह ने इस छतरी का निर्माण कराया था.
संरक्षित स्मारकों पर कराया जा रहा संरक्षण कार्य
एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि संरक्षित स्मारकों के संरक्षण के लिए लगातार कार्य चलता रहता है. एएसआई एक्ट के तहत 100 मीटर की परिधि में किसी भी संरक्षित स्मारक के पास निर्माण नहीं कराया जा सकता है. शिकायत मिलने पर निर्माण कार्य को रुकवा कर पुलिस थाना में एफआईआर दर्ज कराई जाती है. अवैध निर्माण करने वाले व्यक्ति को नोटिस जारी किया जाता है. एएसआई की ओर से तमाम एफआईआर भी दर्ज कराई गई है. आगरा सर्किल में एएसआई के संरक्षित स्मारक पर कब्जा नहीं है.
स्मारक का गौरवशाली इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि जोधपुर के राजा गज सिंह के बड़े बेटे अमर सिंह राठौड़ वीर योद्धा थे. मगर, उनका अपने पिता से मतभेद रहता था. इस वजह से अमर सिंह राठौड़ ने जोधपुर छोड़ दिया था. वीर योद्धा होने की वजह से शहंशाह के दरबार में अमरसिंह राठौड़ की अहमियत बहुत थी. सन् 1644 में एक दिन अमर सिंह राठौर लंबी छुट्टी के बाद आगरा किला के दीवान-ए-आम पहुंचे तो उन पर भारी जुर्माना लगाएगा.
1644 में अमरसिंह राठौड़ का हुआ था कत्ल
दीवान-ए- आम में शहंशाह शाहजहां के मीर बख्शी सलावत खां ने जुर्माने को लेकर अमर सिंह राठौड़ पर टिप्पणी कर दी थी. इस पर अमर सिंह राठौड़ को गुस्सा आ गया और उन्होंने भरे दरबार में सलावत खां का कत्ल कर दिया था. इसके बाद अमर सिंह राठौड़ बड़ी बहादुरी और निर्भीकता से आगरा किला से बाहर निकल आए. लेकिन बाद में 25 जुलाई-1644 को अमरसिंह राठौड़ का भी कत्ल कर दिया गया. अमर सिंह राठौड़ के अंतिम संस्कार यमुना किनारे बल्केश्वर के रजवाड़ा में किया गया था. जहां उनकी रानी हाड़ा उनके साथ सती हुईं थीं.