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टेस्ट ट्यूब बेबी की अदला-बदली रोकेगी RFID तकनीक

उत्तर प्रदेश के आगरा में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी ऑफ रिप्रोडक्शन पर युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन किया गया है, जिसमें बताया गया कि फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन के जरिए किसी भी अंडाणु और शुक्राणु की हो रही अदला-बदली को कैसे रोका जा सकता है.

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Published : Aug 19, 2019, 11:22 AM IST

तीन दिवसीय युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन

आगरा: इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) में अंडाणु और शुक्राणु की अदला-बदली होने से दुनिया में नई बहस शुरू हो गई है. अप्रैल में एक अमेरिकन दंपति को आईवीएफ से चाइनीज नाक और नक्शे के बच्चे का जन्म हुआ था. ऐसा ही एक मामला डच के एक आईवीएफ क्लीनिक में भी सामने आया था. भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो इसलिए रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) नई तकनीकी की खोज की गई है, जिससे अंडाणु और शुक्राणु की अदला-बदली को रोका जा सके.

तीन दिवसीय युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन

युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन-

  • आगरा में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी ऑफ रिप्रोडक्शन पर युवा इसार-2019 कार्यशाला आयोजित किया गया.
  • इस कार्यशाला में देश-विदेश के आईवीएफ के विशेषज्ञ और युवा भ्रूण वैज्ञानिक शामिल हुए.
  • भ्रूण वैज्ञानिक डॉ. केशव मल्होत्रा ने बताया कि आईवीएफ के लिए अंडाणु और शुक्राणु से तैयार भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है.
  • इस दौरान किसी भी स्तर पर अदला-बदली हो सकती है, लेकिन हमारे देश में अभी ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है.
  • एक अमेरिकन दंपति को आईवीएफ से चाइनीज नाक और नक्शे के रंग का बच्चा पैदा हुआ था.
  • ऐसा ही पिछले साल नीदरलैंड में एक आईवीएफ क्लीनिक में भी सामने आया था, जहां 26 कपल्स के आईवीएफ की अदला-बदली हुई थी.

इसे भी पढ़ें:-अब कैंसर मरीज भी बन सकते हैं बायोलॉजिकल मां-बाप

जानिए कैसे कार्य करेगा रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन-

  • लैब में दंपति आईवीएफ की फेरबदल की रोकथाम की जाए, इसके लिए नई तकनीकी रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन उपयोग में ली जा रही है.
  • इसमें दंपति के अंडाणु और शुक्राणु की पहचान करने के लिए एक चिप लगाकर रखा जाता है.
  • लैब के हर स्टेशन पर एक-एक सिस्टम लगाया जाता है और दंपती के अंडाणु और शुक्राणुओं को चेक किया जाता है.
  • जब सैंपल को रीडर्स के पास लाते हैं तो वह चिप से अपने ही सैंपल को सेलेक्ट करता है.
  • यदि दूसरे सैंपल को लाते हैं तो वह रीडर काम करना बंद कर देता है, जिससें अदला-बदली का रिस्क शून्य हो जाता है.

आईवीएफ लैब में जब भी किसी दंपती के अंडाणु और शुक्राणु का सैंपल लेते हैं तो हर जगह पर दंपती के नाम से रिकॉर्ड रखते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है तो उसके गंभीर परिणाम आ सकते हैं. हमारे देश में तमाम महिलाएं और पुरुषों एक ही नाम के होते हैं. ऐसे में इनके अंडाणु और शुक्राणु की अदला -बदली हो सकती है. इसलिए इस नई तकनीक आरएफआईडी का उपयोग किया जा रहा है.
डॉ.जयदीप मल्होत्रा, इसार की अध्यक्ष

आगरा: इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) में अंडाणु और शुक्राणु की अदला-बदली होने से दुनिया में नई बहस शुरू हो गई है. अप्रैल में एक अमेरिकन दंपति को आईवीएफ से चाइनीज नाक और नक्शे के बच्चे का जन्म हुआ था. ऐसा ही एक मामला डच के एक आईवीएफ क्लीनिक में भी सामने आया था. भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो इसलिए रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) नई तकनीकी की खोज की गई है, जिससे अंडाणु और शुक्राणु की अदला-बदली को रोका जा सके.

तीन दिवसीय युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन

युवा इसार-2019 कार्यशाला का आयोजन-

  • आगरा में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी ऑफ रिप्रोडक्शन पर युवा इसार-2019 कार्यशाला आयोजित किया गया.
  • इस कार्यशाला में देश-विदेश के आईवीएफ के विशेषज्ञ और युवा भ्रूण वैज्ञानिक शामिल हुए.
  • भ्रूण वैज्ञानिक डॉ. केशव मल्होत्रा ने बताया कि आईवीएफ के लिए अंडाणु और शुक्राणु से तैयार भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है.
  • इस दौरान किसी भी स्तर पर अदला-बदली हो सकती है, लेकिन हमारे देश में अभी ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है.
  • एक अमेरिकन दंपति को आईवीएफ से चाइनीज नाक और नक्शे के रंग का बच्चा पैदा हुआ था.
  • ऐसा ही पिछले साल नीदरलैंड में एक आईवीएफ क्लीनिक में भी सामने आया था, जहां 26 कपल्स के आईवीएफ की अदला-बदली हुई थी.

इसे भी पढ़ें:-अब कैंसर मरीज भी बन सकते हैं बायोलॉजिकल मां-बाप

जानिए कैसे कार्य करेगा रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन-

  • लैब में दंपति आईवीएफ की फेरबदल की रोकथाम की जाए, इसके लिए नई तकनीकी रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन उपयोग में ली जा रही है.
  • इसमें दंपति के अंडाणु और शुक्राणु की पहचान करने के लिए एक चिप लगाकर रखा जाता है.
  • लैब के हर स्टेशन पर एक-एक सिस्टम लगाया जाता है और दंपती के अंडाणु और शुक्राणुओं को चेक किया जाता है.
  • जब सैंपल को रीडर्स के पास लाते हैं तो वह चिप से अपने ही सैंपल को सेलेक्ट करता है.
  • यदि दूसरे सैंपल को लाते हैं तो वह रीडर काम करना बंद कर देता है, जिससें अदला-बदली का रिस्क शून्य हो जाता है.

आईवीएफ लैब में जब भी किसी दंपती के अंडाणु और शुक्राणु का सैंपल लेते हैं तो हर जगह पर दंपती के नाम से रिकॉर्ड रखते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है तो उसके गंभीर परिणाम आ सकते हैं. हमारे देश में तमाम महिलाएं और पुरुषों एक ही नाम के होते हैं. ऐसे में इनके अंडाणु और शुक्राणु की अदला -बदली हो सकती है. इसलिए इस नई तकनीक आरएफआईडी का उपयोग किया जा रहा है.
डॉ.जयदीप मल्होत्रा, इसार की अध्यक्ष

Intro:स्पेशल.....
मेरी उम्मीद है कि, इस खबर में आईवीएफ लैब के वीडियो का फिक्शन किया जाए तो बेहतर पैकेज बन सकता है.
आगरा.
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) में अंडाणु और शुक्राणु की अदला बदली होने से दुनियां में नई बहस शुरू हो गई है. गत अप्रैल में एक अमेरिकन दंपती के आईवीएफ से चाइनीज नाक, नक्श और रंग का बच्चा हुआ. ऐसा ही मामला डच के एक आईवीएफ क्लीनिक में सामने आया था. जिसमें 25 कपल्स से आईवीएफ की अदला बदली हुई थी. भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो. रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन ( आरएफआईडी) नई तकनीकी इसके लिए खोजी गई है. जिससे आईवीएफ लैब में इस टेक्निक की मदद ली जा रही है. जिससे अंडाणु और शुक्राणु की अदला-बदली को रोका जा सके.


Body:आगरा में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी ऑफ रिप्रोडक्शन पर युवा इसार-2019 कार्यशाला आयोजित की गई. जिसमें दुनियाभर के आईवीएफ के विशेषज्ञ और देश विदेश के युवा भ्रूण वैज्ञानिक शामिल हुए.
भ्रूण वैज्ञानिक डॉ. केशव मल्होत्रा ने बताया कि आईवीएफ के लिए अंडाणु और शुक्राणु से तैयार भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस दौरान किसी भी स्तर पर अदला-बदली हो सकती है. हमारे देश में अभी ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है लेकिन संभावना फिर भी है. इसका ताजा उदाहरण अप्रैल माह में अमेरिका में देखने को मिला. जिसमें एक अमेरिकन दंपती के आईवीएफ से चाइनीज नाक, नक्श और रंग का बच्चा पैदा हुआ था. ऐसा ही पिछले साल नीदरलैंड में एक आईवीएफ क्लिनिक में सामने आया था. जिसमें 26 कपल्स के आईवीएफ की अदला बदली हुई. इससे अब आईवीएफ लैब में बहुत ही सावधानी की जरूरत है. इसीलिए नई तकनीकी अब उपयोग में ली जा रही है. जिससे लैब में दंपती आईवीएफ की फेरबदल की रोकथाम की जाए. इसके लिए नई तकनीकी रेडियो फ्रिकवेंसी आईडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) उपयोग ली जा रही है. इसमें दंपती के अंडाणु और शुक्राणु की पहचान की करके एक चिप लगाकर रखा जाता है. इसके साथ ही लैब के हर स्टेशन पर एक-एक सिस्टम लगाया जाता है. जिसे आरएफआईडी से लेबल लगे हर दंपती के अंडाणु और शुक्राणुओं को चेक किया जाता है. डिज टेबल पर हम काम कर रहे होते हैं. उस पर उस चिप (आरएफआईडी) के रीडर लगे होते हैं. जब हम सैंपल को रीडर्स के पास लाते हैं तो वह चिप से अपने ही सैंपल को सेलेक्ट करता है. और दूसरे यदि किसी सैंपल को लाते हैं तो वह रीडर काम करना बंद कर देता है. इसे अदला-बदली का रिस्क शून्य हो जाता है.

इसार की अध्यक्ष डा. जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि आईवीएफ लैब में हम जब भी किसी दंपती के अंडाणु और शुक्राणु को का सैंपल लेते हैं. हर जगह पर दंपती के नाम से रिकॉर्ड रखते हैं. ऐसा नहीं होता है तो उसके गंभीर परिणाम आ सकते हैं क्योंकि
हमारे देश में तमाम महिलाएं और पुरुषों एक ही नाम के होते हैं. ऐसे में इनके अंडाणु और शुक्राणु की अदला बदली हो सकती है. इसलिए इस नई तकनीक आरएफआईडी का उपयोग किया जा रहा है. इसके बहुत ही अच्छे परिणाम आएंगे.





Conclusion:आईवीएफ सेंटर में काम करने वाले नर्सिंगकर्मी को भी ट्रेनिंग कर आनी चाहिए. जिससे आईवीएफ की अदला-बदली को रोका जा सकता है. आईवीएफ लैब में तैयार भ्रूण को फाइनल प्लास्टिक ट्यूब के जरिए गर्भ में प्रत्यारोपित करने से अच्छे रिजल्ट आते हैं. बच्चा भी स्वस्थ पैदा होता है.

.....।...
पहली बाइट डॉ. केशव मल्होत्रा, भ्रूण वैज्ञानिक की।
दूसरी बाइट डॉ. जयदीप मल्होत्रा, इसार अध्यक्ष की।

...।.।।
श्यामवीर सिंह
आगरा
8387893357
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