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तीन दिवसीय IEA की राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में इंडियन इकोनॉमिक्स एसोसिएशन (IEA) की तीन दिवसीय 103वीं वार्षिक राष्ट्रीय गोष्ठी का शुभारंभ किया गया. यह वार्षिक गोष्ठी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में आयोजित की गई है. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल मौजूद रहे.

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Published : Dec 27, 2020, 10:25 PM IST

annual national seminar inaugurated in agra
IEA की राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ.

आगरा : डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के जेपी सभागार में आज रविवार को इंडियन इकोनॉमिक्स एसोसिएशन (IEA) की तीन दिवसीय 103वीं वार्षिक राष्ट्रीय गोष्ठी का शुभारंभ किया गया. यह कार्यक्रम 29 दिसंबर तक ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रक्रिया के माध्यम से चलेगा. कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल द्वारा की गई. वहीं कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सांसद प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल मौजूद रहे.

विश्वविद्यालय के सदस्यों का व्यक्त किया आभार

कार्यक्रम के प्रारंभ में IEA के अध्यक्ष प्रोफेसर घनश्याम सिंह ने विश्वविद्यालय की प्राचीनता और विशालता का वर्णन करते हुए नई पीढ़ी का उत्साहवर्धन किया. IEA में युवाओं की भूमिका का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि इस कोरोना काल में जिस तरह से IEA और उसके सदस्यों ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया है, वह सराहनीय है. इसके लिए उन्होंने विश्वविद्यालय के सदस्यों का भी आभार प्रकट किया.

'अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है आगरा'

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने बताया कि आगरा गंगा जमुनी, गालिब मीर, सुलहकुल, दीन-ए-इलाही की धरती है. आगरा का इतिहास बहुत पुराना है और इतिहास में यह शहर अपने आर्थिक अस्तित्व के लिए भी जाना जाता है. लंबे समय तक आगरा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है. उन्होंने कहा कि IEA का गठन सन 1917 में हुआ. यह वह समय था, जब संपूर्ण विश्व तृतीय विश्व युद्ध से गुजर रहा था. उस समय IEA के गठन का उद्देश्य विश्व युद्ध के बाद हुए आर्थिक संकट से उबरने के लिए विचार-विमर्श, योजना बनाने व उनके क्रियान्वयन के लिए किया गया था.

'आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था आज की सबसे बड़ी आवश्यकता'

स्थानीय सांसद एसपी सिंह बघेल ने बताया कि आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. इस विचार को आत्मसात करते हुए ही भारत पुनः अपने विश्व गुरु बनने के गौरव को प्राप्त कर सकता है. तकनीक के महत्व को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिसके विकास में तकनीक ने महत्वपूर्ण भूमिका न निभाई हो. भारत किस तरीके से तकनीकी रूप से एक समृद्ध राष्ट्र रहा है, उसे व्यक्त करने के लिए सांसद ने प्राचीन कथाओं से करण, प्रहलाद, अग्निबाण और शल्य चिकित्सा का उदाहरण दिया.

'सेवा क्षेत्र ने लिया निर्माण उद्योग की जगह'

संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल ने बताया कि पिछले 4 दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कई उतार-चढ़ाव तथा ढांचागत परिवर्तन देखे गए हैं. निर्माण उद्योग अब इतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया. इसका स्थान सेवा क्षेत्र ने ले लिया है. वर्तमान में कोरोना ने न सिर्फ भारत को, बल्कि विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. इस संकट से उबरने के लिए आज आवश्यकता है, ऐसे सिद्धांत विकसित किए जाएं कि अर्थव्यवस्था को मंदी से उबार सकें. अर्थव्यवस्था पुनरावलोकन इस क्षेत्र में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा. यह ऐसा समय है, जिसमें हमें ऐसी तकनीकी उपकरण विकसित करने चाहिए, जो अर्थव्यवस्था के सहायक हो.

'आत्मनिर्भरता ही एकमात्र विकल्प'

ऑनलाइन माध्यम से जुड़े प्रोसेसर केजे जोसफ, निदेशक, गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड ट्रेक्शन, तिरुअनंतपुरम ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है. सन 1950 से लेकर 1960 तक आयात प्रतिस्थापन ही विकास का आधार माना गया है. सन 1980 से 1990 के बीच भारत आंतरिक उदारता की तरफ बढ़ता हुआ दिखाई दिया और विभिन्न नए व्यापारों ने अर्थव्यवस्था में अपनी जगह बनाई. सन 1991 से 2020 तक का समय वैश्वीकरण का युग माना गया, जिसमें निश्चित रूप से भारत और एशिया के अन्य देशों ने बहुत अच्छा विकास किया. किंतु फिर भी हम अपेक्षित जीडीपी दर को प्राप्त नहीं कर सके. आज 2020 में अगर भारत विकास के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है तो आत्म निर्भरता ही उसका एकमात्र विकल्प है. पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों का अगर ध्यान दें तो पता चलता है कि कृषि योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर कम हो रहा है और सेवा क्षेत्र का योगदान निरंतर रूप से बढ़ रहा है.

आगरा : डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के जेपी सभागार में आज रविवार को इंडियन इकोनॉमिक्स एसोसिएशन (IEA) की तीन दिवसीय 103वीं वार्षिक राष्ट्रीय गोष्ठी का शुभारंभ किया गया. यह कार्यक्रम 29 दिसंबर तक ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रक्रिया के माध्यम से चलेगा. कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल द्वारा की गई. वहीं कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सांसद प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल मौजूद रहे.

विश्वविद्यालय के सदस्यों का व्यक्त किया आभार

कार्यक्रम के प्रारंभ में IEA के अध्यक्ष प्रोफेसर घनश्याम सिंह ने विश्वविद्यालय की प्राचीनता और विशालता का वर्णन करते हुए नई पीढ़ी का उत्साहवर्धन किया. IEA में युवाओं की भूमिका का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि इस कोरोना काल में जिस तरह से IEA और उसके सदस्यों ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया है, वह सराहनीय है. इसके लिए उन्होंने विश्वविद्यालय के सदस्यों का भी आभार प्रकट किया.

'अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है आगरा'

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने बताया कि आगरा गंगा जमुनी, गालिब मीर, सुलहकुल, दीन-ए-इलाही की धरती है. आगरा का इतिहास बहुत पुराना है और इतिहास में यह शहर अपने आर्थिक अस्तित्व के लिए भी जाना जाता है. लंबे समय तक आगरा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है. उन्होंने कहा कि IEA का गठन सन 1917 में हुआ. यह वह समय था, जब संपूर्ण विश्व तृतीय विश्व युद्ध से गुजर रहा था. उस समय IEA के गठन का उद्देश्य विश्व युद्ध के बाद हुए आर्थिक संकट से उबरने के लिए विचार-विमर्श, योजना बनाने व उनके क्रियान्वयन के लिए किया गया था.

'आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था आज की सबसे बड़ी आवश्यकता'

स्थानीय सांसद एसपी सिंह बघेल ने बताया कि आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. इस विचार को आत्मसात करते हुए ही भारत पुनः अपने विश्व गुरु बनने के गौरव को प्राप्त कर सकता है. तकनीक के महत्व को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिसके विकास में तकनीक ने महत्वपूर्ण भूमिका न निभाई हो. भारत किस तरीके से तकनीकी रूप से एक समृद्ध राष्ट्र रहा है, उसे व्यक्त करने के लिए सांसद ने प्राचीन कथाओं से करण, प्रहलाद, अग्निबाण और शल्य चिकित्सा का उदाहरण दिया.

'सेवा क्षेत्र ने लिया निर्माण उद्योग की जगह'

संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल ने बताया कि पिछले 4 दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कई उतार-चढ़ाव तथा ढांचागत परिवर्तन देखे गए हैं. निर्माण उद्योग अब इतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया. इसका स्थान सेवा क्षेत्र ने ले लिया है. वर्तमान में कोरोना ने न सिर्फ भारत को, बल्कि विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. इस संकट से उबरने के लिए आज आवश्यकता है, ऐसे सिद्धांत विकसित किए जाएं कि अर्थव्यवस्था को मंदी से उबार सकें. अर्थव्यवस्था पुनरावलोकन इस क्षेत्र में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा. यह ऐसा समय है, जिसमें हमें ऐसी तकनीकी उपकरण विकसित करने चाहिए, जो अर्थव्यवस्था के सहायक हो.

'आत्मनिर्भरता ही एकमात्र विकल्प'

ऑनलाइन माध्यम से जुड़े प्रोसेसर केजे जोसफ, निदेशक, गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड ट्रेक्शन, तिरुअनंतपुरम ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है. सन 1950 से लेकर 1960 तक आयात प्रतिस्थापन ही विकास का आधार माना गया है. सन 1980 से 1990 के बीच भारत आंतरिक उदारता की तरफ बढ़ता हुआ दिखाई दिया और विभिन्न नए व्यापारों ने अर्थव्यवस्था में अपनी जगह बनाई. सन 1991 से 2020 तक का समय वैश्वीकरण का युग माना गया, जिसमें निश्चित रूप से भारत और एशिया के अन्य देशों ने बहुत अच्छा विकास किया. किंतु फिर भी हम अपेक्षित जीडीपी दर को प्राप्त नहीं कर सके. आज 2020 में अगर भारत विकास के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है तो आत्म निर्भरता ही उसका एकमात्र विकल्प है. पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों का अगर ध्यान दें तो पता चलता है कि कृषि योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर कम हो रहा है और सेवा क्षेत्र का योगदान निरंतर रूप से बढ़ रहा है.

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