आगरा : विकास कार्यों के नाम पर किसानों की जमीन अधिग्रहण को लेकर अन्नदाता आज भी संघर्ष कर रहे हैं. बिना अधिग्रहण किए खतौनी से जमीन हड़प लेने और 64 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा न मिलने की वजह से किसान करीब छह महीने से धरने पर बैठे हैं, लेकिन इनकी सुनने वाला यहां कोई नहीं है. यहां एक दो नहीं बल्कि 300 से ज्यादा किसान धरना दे रहे हैं. जिले के अलग-अलग दो जगहों पर किसानों का धरना न तो मीडिया की नजरों में आ रहा है, और न ही अधिकारी उनकी इस समस्या का कोई हल बता पा रहे हैं. लिहाजा किसान अपनी जमीन वापसी के लिए हलफनामा दाखिल कर संघर्ष कर रहे हैं.
क्या है पूरा मामला
वर्ष 2007 में यमुना एक्सप्रेस-वे और साल 2009 में जेपी टाउनशिप के लिए एत्मादपुर तहसील के गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई. यमुना एक्सप्रेस-वे चालू हो गया,लेकिन अभी भी जेपी टाउनशिप नहीं बसाई गई है. इन दोनों प्रोजेक्ट में जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई, वे किसान पिछले छह महीने से धरने पर बैठे हैं. धरने पर बैठे किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि यमुना एक्सप्रेसवे और जेपी टाउनशिप को लेकर किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई थी. उसके विरोध में ही यह धरना दिया जा रहा है.
धरने में विशेष रूप से शामिल 339 किसान वैसे हैं जिन्होंने अधिग्रहित जमीन वापस करने के लिए एफिडेविट दिया है. धरने देने वाले कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनसे जबरन करार कराया गया था, लेकिन उनकी जमीन न वापस हुई और न ही उन्हें अतिरिक्त 64 फीसदी का भुगतान किया गया. इस पूरे प्रोजेक्ट में 8000 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित किया गया है जिससे लगभग 2000 किसान प्रभावित हैं.
मामले से जुड़े कुछ अहम बिंदु
- किसानों के खिलाफ 2009 से अब तक 84 मुकदमे हुए दर्ज
- अकेले किसान मनोज शर्मा के खिलाफ 32 मुकदमे हैं दर्ज
- 250 किसानों के खिलाफ यमुना एक्सप्रेसवे और जेपी टाउनशिप में जमीन अधिग्रहित होने के विरोध में लिखे गए मुकदमे.
- 2010 में पहली बार किसान धरने पर बैठे, तब कैबिनेट सचिव शशांक शेखर ने 19 दिन बाद धरना खत्म कराया.
- 2012 में दूसरी बार तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के आश्वासन पर 28 दिन बाद धरना खत्म हुआ
- 2014 में किसान फिर धरने पर बैठे और 14 दिन तक धरना चला.
- 3 अक्टूबर 2018 को चौथी बार किसान धरने पर बैठे, जिसे 6 माह पूरे हो चुके हैं.
किसानों का यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया है. ऐसे में जिले के अधिकारी इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. उनसे जब भी बात की जाती है तो उनका बस एक ही कहना होता है कि कोर्ट के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकता है.