आगरा: ताजनगरी की खट्टी-मीठी रसभरी दिल्ली, भोपाल और मुंबई में लोगों की जुबान पर रस घोलने के साथ ही किसानों की किस्मत का ताला भी खोल रही है. आलू की फसल में हुए घाटे की मार से उबरने के लिए आंवलखेड़ा के किसानों ने तीन दशक पहले रसभरी की खेती शुरू की थी. अब आंवलखेड़ा और बरहन क्षेत्र में दर्जनों गांव की सैकड़ों बीघा जमीन में रसभरी की फसल लहलहा रही है. पिछले पांच वर्षों की बात करें तो आगरा में रसभरी के रकबे में और ज्यादा इजाफा हुआ है. किसानों को मालामाल करने वाली रसभरी का सेवन करने वालों की चेहरे पर चमक आती है. झुर्रियां गायब और दाग-धब्बे कम होते हैं. कैंसर की कोशिकाएं भी खत्म करने के साथ ही रसभरी के सेवन से रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है.
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किसान राम प्रकाश ने बताया कि, आलू की खेती में एक साल मुनाफा तो दो साल घाटा होता है. सब्जियों की खेती भी घाटे का सौदा साबित हो रही है. किसानों ने बरेली और बदायूं में मंडी आते-जाते रसभरी की खेती देखी तो वहां रसभरी की खेती करने वाले किसानों से बातचीत की. आलू और सब्जियों की खेती में घाटे से आहत किसानों ने करीब 30 साल पहले रसभरी की खेती शुरू की थी. रसभरी की पौध की रोपाई सावन माह में होती है. फिर जनवरी माह में फल आने लगते हैं, जो मार्च माह तक खूब लगते हैं. आगरा की रसभरी खरीदने के लिए मथुरा, लखनऊ, दिल्ली, जयपुर समेत अन्य जगह के व्यापारी आते हैं. खेत में ही खड़ी फसल का सौदा हो जाता है. यही वजह है कि, आगरा में रसभरी की खेती से करोड़ों रुपए का कारोबार है. जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
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रसभरी में नुकसान कम, मुनाफा ज्यादा
आंवलखेड़ा किसान राजेश का कहना है कि, हमारे गांव में 30 वर्ष से रसभरी की फसल उगाई जा रही है. रसभरी की फसल नुकसान की नहीं है. जबकि, आलू की फसल में किसान को नुकसान हो अधिक है. किसान गोविंद का कहना है कि, भले ही साल में हम ही फसल लेते हैं. मगर, आलू और बाजरा से अच्छी फसल रसभरी की रह रही है. रसभरी की खेती में मुनाफा सही है. किसान सुल्तान सिंह का कहना है कि, आंवलखेड़ा के साथ साथ अब चावली और कुरगवा में भी रसभरी की खूब खेती हो रही है. क्षेत्र में रसभरी की पैदावार की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है.
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