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महाकवि सूरदास की तपोस्थली में बेनूर आंखों के सपनों को उड़ान दे रहा यह संस्थान

आगरा में महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान में नेत्रों से दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बना रहा है. इस संस्थान की स्थापना सन् 1976 में हुई थी. यहां पर ब्रेल लिपि की मदद से वर्तमान में 67 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. जानिए इस संस्थान की खास बातें-

नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बना रहा यह संस्थान.
नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बना रहा यह संस्थान.
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Published : Feb 12, 2021, 10:58 PM IST

आगरा: महाकवि सूरदास की तपोस्थली रुनकता स्थित सूरकुटी के महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान बेनूर आंखों को राह दिखाकर उनके सभी सपनों को पूरा कर रहा है. यहां पर दिव्यांग बच्चे शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. सन् 1976 में विद्यालय की स्थापना हुई थी. यहां पर ब्रेल लिपि की मदद से वर्तमान में 67 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. विद्यालय में आठ शिक्षक हैं. दिव्यांग यहां पर पढ़ाई के साथ ही आत्मनिर्भर बनने का प्रशिक्षण भी हासिल करते हैं. इस विद्यालय की खास बात यह है कि यहां पर पढ़ने वाले छात्र और पढ़ाने वाले शिक्षकों सहित प्रधानाचार्य सभी आंखों से दिव्यांग हैं. यहां पर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद दिव्यांग सूरदास ब्रजरानी महाविद्यालय और रोशन लाल महाविद्यालय में उच्च शिक्षा हासिल करते हैं. जहां पर वे सामान्य स्टूडेंटस के साथ पढ़ते हैं.

महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान



विद्यालय परिसर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ
विद्यालय परिसर के चप्पे चप्पे से नेत्रों से दिव्यांग छात्र वाकिफ हैं. दिव्यांग हाॅस्टल, कक्षा, मेस, शौचालय, खेल के मैदान समेत अन्य स्थानों से भलीभांत वाकिफ हो गए हैं. नए दिव्यांग छात्र को सीनियर छात्र और शिक्षक एक सप्ताह तक हाथ पकड़कर विद्यालय परिसर का कोना कोना घुमाते हैं. जिससे कि बाद में वह खुद ही हर जगह आ-जा सकें.

संस्थान की शान बने 11 छात्र
विद्यालय के प्रधानाचार्य महेश कुमार का कहना है कि, हर दिव्यांग आत्मनिर्भर बन रहा है. पढाई के साथ कुर्सी बुनना, मोमबत्ती बनाना, कम्प्युटर चलाना भी सिखाया जा रहा है. जिससे यह भी आम बच्चों की तरह आत्मनिर्भर बन सकें. संस्थान के 11 छात्र आत्मनिर्भर बनकर दूसरों के लिए मिसाल बने हैं. इनमें श्रवण कुमार, नाथूराम, गोविंद सिंह, श्याम सुंदर यादव, गर्वनर सिंह, हरकेश सिंह, शिव शंकर, रामशरण, अमरीश पुरी, श्रीचंद और नरेश हैं. जो स्कूल, विश्वविद्यालय, बैंक और रेलवे में नौकरी कर रहे हैं.

खेलते हैं क्रिकेट
ईटीवी भारत की टीम जब विद्यालय पहुंची. तब वहां पर स्कूली के दिव्यांग बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. एक छोर पर बल्लेबाज तो दूसरे छोर पर गेंदबाज था. जैसे ही गेंदबाज के हाथ से गेंद छूटी, वैसे ही क्षेत्ररक्षक और बल्लेबाज सतर्क हो गए. गेंद की आवाज पर बल्लेबाज ने शाॅटस जडा तो गेंद की आवाज सुनकर क्षेत्ररक्षक भी उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े.

गाते हैं सूरदास के पद
विद्यालय के दिव्यांग छात्र पढ़ाई के साथ ही वाद्य यन्त्र बजाना, संगीत और गीत भी सीखते हैं. यहां के छात्र जहां सूरदास के पद को लय और ताल से गाते ही हैं. वहीं, फिल्मी गीतों पर भी संगीत की ऐसी सुरलहरियां छेडते हैं कि, जो भी देखता और सुनता है. वह दंग रह जाता है. हर कोई उनकी तारीफ करते नहीं थकता है.

सीख रहे हैं अंग्रेजी
अंग्रेजी के शिक्षक रवि कुमार प्रजापति ने बताया कि ब्रेन लिपि में अंग्रेजी पढाते हैं. छह डाॅट के बाद आधार पर पढाया जाता है. उन्होंने बताया कि कोडवर्ड में पढाया जाता है. बीए के छात्र रोहित कुमार ने बताया कि हर मोबाइल में एक सेटिंग होती है. उसे ऑन कर लेते हैं. जो हम बटन दबाते हैं. उसकी आवाज आती है. रोहित ने बताया कि वह पढने के साथ ही दरी और टोकरी बनाना भी जानते हैं.

35 छात्र कर रहे कम्प्यूटर की पढ़ाई
कम्प्यूटर शिक्षक दिनेश कुमार का कहना है कि इस समय नौवीं से 12वीं तक के 35 छात्र कम्प्यूटर चलाना सीख रहे हैं. कम्प्यूटर का बेसिक, हिंदी और अंग्रेजी की टाइपिंग भी सिखाई जाती है. कम्प्यूटर सीखने से रेलवे और अन्य विभाग में छात्रों को नौकरी मिल जाती है.


सरकारी नौकरी पाने को पढ़ रहे कम्प्यूटर
छात्र हरिबाबू ने बताया कि वह कम्प्यूटर चलाना सरकारी या प्राइवेट नौकरी के लिए सीख रहे हैं. अभी वह टाइपिंग सीख रहे हैं. धीरे धीरे सीख रहा हूं. छात्र पंकज प्रजापति का कहना है कि वह यहां पहली कक्षा में पढने आया थे.अब वह नौवीं कक्षा में पढ रहा हैं. पंकज ने छठवीं से कम्प्यूटर पढना शुरू किया था. वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों की टाइपिंग कर लेता हूं. उन्होंने बताया कि वह रेलवे की नौकरी करना चाहते हैं.

सूरकुटी के महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान में पढ़ने वाले दृष्टिबाधित छात्र कंप्यूटर सीखने के साथ-साथ एसएससी और रेलवे की तैयारी में जुटे हैं. भले ही वे देख नहीं सकते हैं. मगर, कंप्यूटर स्क्रीन पर हिंदी और अंग्रेजी में आवाज के संकेत से सब कुछ टाइप कर लेते हैं.

आगरा: महाकवि सूरदास की तपोस्थली रुनकता स्थित सूरकुटी के महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान बेनूर आंखों को राह दिखाकर उनके सभी सपनों को पूरा कर रहा है. यहां पर दिव्यांग बच्चे शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. सन् 1976 में विद्यालय की स्थापना हुई थी. यहां पर ब्रेल लिपि की मदद से वर्तमान में 67 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. विद्यालय में आठ शिक्षक हैं. दिव्यांग यहां पर पढ़ाई के साथ ही आत्मनिर्भर बनने का प्रशिक्षण भी हासिल करते हैं. इस विद्यालय की खास बात यह है कि यहां पर पढ़ने वाले छात्र और पढ़ाने वाले शिक्षकों सहित प्रधानाचार्य सभी आंखों से दिव्यांग हैं. यहां पर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद दिव्यांग सूरदास ब्रजरानी महाविद्यालय और रोशन लाल महाविद्यालय में उच्च शिक्षा हासिल करते हैं. जहां पर वे सामान्य स्टूडेंटस के साथ पढ़ते हैं.

महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान



विद्यालय परिसर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ
विद्यालय परिसर के चप्पे चप्पे से नेत्रों से दिव्यांग छात्र वाकिफ हैं. दिव्यांग हाॅस्टल, कक्षा, मेस, शौचालय, खेल के मैदान समेत अन्य स्थानों से भलीभांत वाकिफ हो गए हैं. नए दिव्यांग छात्र को सीनियर छात्र और शिक्षक एक सप्ताह तक हाथ पकड़कर विद्यालय परिसर का कोना कोना घुमाते हैं. जिससे कि बाद में वह खुद ही हर जगह आ-जा सकें.

संस्थान की शान बने 11 छात्र
विद्यालय के प्रधानाचार्य महेश कुमार का कहना है कि, हर दिव्यांग आत्मनिर्भर बन रहा है. पढाई के साथ कुर्सी बुनना, मोमबत्ती बनाना, कम्प्युटर चलाना भी सिखाया जा रहा है. जिससे यह भी आम बच्चों की तरह आत्मनिर्भर बन सकें. संस्थान के 11 छात्र आत्मनिर्भर बनकर दूसरों के लिए मिसाल बने हैं. इनमें श्रवण कुमार, नाथूराम, गोविंद सिंह, श्याम सुंदर यादव, गर्वनर सिंह, हरकेश सिंह, शिव शंकर, रामशरण, अमरीश पुरी, श्रीचंद और नरेश हैं. जो स्कूल, विश्वविद्यालय, बैंक और रेलवे में नौकरी कर रहे हैं.

खेलते हैं क्रिकेट
ईटीवी भारत की टीम जब विद्यालय पहुंची. तब वहां पर स्कूली के दिव्यांग बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. एक छोर पर बल्लेबाज तो दूसरे छोर पर गेंदबाज था. जैसे ही गेंदबाज के हाथ से गेंद छूटी, वैसे ही क्षेत्ररक्षक और बल्लेबाज सतर्क हो गए. गेंद की आवाज पर बल्लेबाज ने शाॅटस जडा तो गेंद की आवाज सुनकर क्षेत्ररक्षक भी उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े.

गाते हैं सूरदास के पद
विद्यालय के दिव्यांग छात्र पढ़ाई के साथ ही वाद्य यन्त्र बजाना, संगीत और गीत भी सीखते हैं. यहां के छात्र जहां सूरदास के पद को लय और ताल से गाते ही हैं. वहीं, फिल्मी गीतों पर भी संगीत की ऐसी सुरलहरियां छेडते हैं कि, जो भी देखता और सुनता है. वह दंग रह जाता है. हर कोई उनकी तारीफ करते नहीं थकता है.

सीख रहे हैं अंग्रेजी
अंग्रेजी के शिक्षक रवि कुमार प्रजापति ने बताया कि ब्रेन लिपि में अंग्रेजी पढाते हैं. छह डाॅट के बाद आधार पर पढाया जाता है. उन्होंने बताया कि कोडवर्ड में पढाया जाता है. बीए के छात्र रोहित कुमार ने बताया कि हर मोबाइल में एक सेटिंग होती है. उसे ऑन कर लेते हैं. जो हम बटन दबाते हैं. उसकी आवाज आती है. रोहित ने बताया कि वह पढने के साथ ही दरी और टोकरी बनाना भी जानते हैं.

35 छात्र कर रहे कम्प्यूटर की पढ़ाई
कम्प्यूटर शिक्षक दिनेश कुमार का कहना है कि इस समय नौवीं से 12वीं तक के 35 छात्र कम्प्यूटर चलाना सीख रहे हैं. कम्प्यूटर का बेसिक, हिंदी और अंग्रेजी की टाइपिंग भी सिखाई जाती है. कम्प्यूटर सीखने से रेलवे और अन्य विभाग में छात्रों को नौकरी मिल जाती है.


सरकारी नौकरी पाने को पढ़ रहे कम्प्यूटर
छात्र हरिबाबू ने बताया कि वह कम्प्यूटर चलाना सरकारी या प्राइवेट नौकरी के लिए सीख रहे हैं. अभी वह टाइपिंग सीख रहे हैं. धीरे धीरे सीख रहा हूं. छात्र पंकज प्रजापति का कहना है कि वह यहां पहली कक्षा में पढने आया थे.अब वह नौवीं कक्षा में पढ रहा हैं. पंकज ने छठवीं से कम्प्यूटर पढना शुरू किया था. वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों की टाइपिंग कर लेता हूं. उन्होंने बताया कि वह रेलवे की नौकरी करना चाहते हैं.

सूरकुटी के महाकवि सूरदास नेत्रहीन शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान में पढ़ने वाले दृष्टिबाधित छात्र कंप्यूटर सीखने के साथ-साथ एसएससी और रेलवे की तैयारी में जुटे हैं. भले ही वे देख नहीं सकते हैं. मगर, कंप्यूटर स्क्रीन पर हिंदी और अंग्रेजी में आवाज के संकेत से सब कुछ टाइप कर लेते हैं.

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