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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: हर 5 में से 2 लोग मानसिक तनाव का शिकार

कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों में मानसिक तनाव का स्तर काफी बढ़ गया है. सोशल डिस्टेंसिंग के कारण अकेलापन और आर्थिक तंगी के चलते तनाव आदि बढ़ने से लोग डिप्रेशन की ओर बढ़ रहे हैं. एक स्टडी के मुताबिक, हर 5 में से 2 व्यक्ति मानसिक विकार से ग्रसित हैं.

कॉन्सेप्ट इमेज.
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Published : Oct 10, 2020, 10:20 PM IST

आगरा: दुनिया भर के करोड़ों लोग कोरोना महामारी से प्रभावित हुए हैं. इसका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर और बुरा प्रभाव पड़ रहा है. चिंता हमें तनाव देती है और यह लंबे समय तक रहा तो डिप्रेशन यानी अवसाद में तब्दील हो सकता है. ताजनगरी में कोरोना संक्रमण का असर लोगों की मानसिक दशा पर खूब देखने को मिल रहा है. रोजाना एसएन मेडिकल कॉलेज की ट्राएज ओपीडी, मोबाइल ओपीडी और क्लीनिकों पर कोरोना संक्रमण से उपजे मनोरोगी पहुंच रहे हैं. अनलॉक में जिला अस्पताल की ओपीडी और क्लीनिकों पर ऐसे मनोरोगियों की संख्या बढ़ी है. बच्चे, युवा और बुजुर्ग भी कोरोना के कारण डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है. इस बार देखा गया कि कोरोना की वजह से भी लोगों में तनाव की स्थिति है. ताजनगरी में कोरोना संक्रमितों की संख्या और संक्रमितों की मौत का आंकड़ा लोगों को मनोरोगी बना रहा है. भले ही आगरा में कोरोना का रिकवरी रेट 88.75 प्रतिशत है, बावजूद इसके कोरोना का डर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है.

खांसी और जुकाम होने पर किसी की नींद हराम हो गई है, तो कोई बुखार आने पर अपनों से दूरी बना रहा है. कोई दिन में 40 से 50 बार हाथ धो रहा है. तमाम ऐसे कोरोना वॉरियर्स भी हैं, जो फिर से संक्रमित होने के डर से डिप्रेशन में आ गए हैं. वहीं गर्भवती महिलाएं भी शिशु को लेकर चिंतित हैं. हर दिन जिला अस्पताल में 15 से 20 ऐसे लोग पहुंच रहे हैं, जिनके मस्तिष्क में कोरोना की वजह से केमिकल लोचा है.

पांच में से दो लोग मनोरोगी
एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष गुप्ता का कहना है कि हाल ही में देश भर के 2 हजार लोगों पर एक स्टडी की गई. स्टडी के मुताबिक, हर 5 में से 2 लोग मनोरोगी हैं. लोगों के मनोरोगी होने की वजह कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और बेरोजगारी के साथ ही अन्य समस्याएं हैं. इससे लोग घबराहट और एंग्जायटी जैसी बीमारियां से ग्रसित हो रहे हैं.

लग रहा था मैं ठीक नहीं हूंगा
कोरोना वॉरियर्स अर्जुन का कहना है कि जब वे कोरोना संक्रमित हुए थे, तब ऐसा लग रहा था कि वह स्वस्थ नहीं हो सकते. उनका कहना है कि जिस क्वॉरंटाइन सेंटर में उन्हें रखा गया, उसमें संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही थी और सभी लोगों को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. कमरे से न कोई बाहर निकल सकता था और न कोई मिलने आता था. अकेले में मन में बुरे विचार आते थे. डिप्रेशन जैसी स्थिति बन गई थी, लेकिन अब वे बिल्कुल ठीक हैं तो उन्हें अब ऐसे ख्याल नहीं आते.

कोरोना से एंजाइटी के मरीज बढ़े
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट ममता यादव ने बताया कि जिला अस्पताल की ओपीडी में हर रोज तमाम मरीज आ रहे हैं. इसमें कई कोविड से पहले और कई कोविड के बाद की एंजाइटी या अन्य अपनी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं. कई ऐसे मरीज भी आए हैं, जिन्हें तीन-चार दिन से ज्यादा बुखार, सर्दी जुकाम है. मरीजों का कहना है कि उन्हें घबराहट हो रही है, वे डरे हुए हैं. उन्हें डर लग रहा है कि उन्हें कहीं कोरोना तो नहीं हो गया है.

साथ ही कोरोना से स्वस्थ हुए लोगों को दोबारा कोरोना का डर सता रहा है. वे अकेलापन महसूस कर रहे हैं. बता दें कि कोरोना काल में एक ही कमरे में बंद रहने से और लोगों से दूर रहने से भी लोग मानसिक तनाव का शिकार हो जा रहे हैं. ममता यादव ने बताया कि कोरोना के चलते लोग सामाजिक दूरी बना रहे हैं, इसीलिए ऐसे मरीजों की काउंसलिंग की जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर बेहतर उपचार उपलब्ध कराया जा सके.

कोरोना से तीन कैटेगिरी में आ रहे मरीज
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. यूसी गर्ग का कहना है कि हर दिन क्लीनिक पर आने वाले तमाम लोगों का कहना है कि जब वे घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें कोरोना से संक्रमित होने का डर सताता रहता है. यूसी गर्ग के मुताबिक, यह एक मानसिक रोग है. इसमें काउंसलिंग और इलाज की जरूरत है.

इस समय दूसरा ग्रुप उन मरीजों का है, जो कोरोना संक्रमित पाए गए और उनका उपचार चल रहा है. इन मरीजों में आत्मविश्वास की कमी देखी गई. इन मरीजों को लगता है कि अब वे ठीक नहीं होंगे. कोरोना से कहीं उनकी मौत न हो जाए. वहीं तीसरी तरह के वे मरीज आ रहे हैं, जिन्हें जून में, मई में या जुलाई में कोरोना हुआ था और अभी भी यही डर रहता है कि कहीं वे दोबारा से कोरोना संक्रमित न हो जाएं. ऐसे मरीजों को थकान और कमजोरी महसूस होती है तो वे तुरंत तनाव में आते हैं. इस प्रकार डिप्रेशन भी ऐसे लोगों पर हावी होता है.

यह बीमारियां बना रहीं डिप्रेशन का शिकार

  • एंग्जायटी.
  • इंसोमेनिया.
  • डिप्रेशन.
  • ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर.
  • पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर.

महामारी में ऐसे रखें खुद का ध्यान

  • ध्यान बांटने की कोशिश करें, केवल जरूरत मात्र ही कोरोना की खबरें पढ़ें.
  • डिप्रेशन दूर करने के लिए आठ घंटे की नींद लें.
  • नींद पूरी होगी तो दिमाग तरोताजा होगा और सकारात्मकता आएगी.
  • मन में नकारात्मक भाव को कम से कम लाएं.
  • प्रतिदिन सूरज की रोशनी में कुछ देर जरूर रहें, इससे अवसाद जल्दी हटेगा.
  • इस समय घर की छत अथवा बालकनी में थोड़ी देर टहलने जाएं.
  • अपनी पसंदीदा चीजों को टाइम दें. म्यूजिक, पेंटिंग, डांस जो पसंद हो उसे करें.
  • अपने काम का पूरा हिसाब रखें. दिन भर में आप कितना काम करते हैं और किस गतिविधि को कितना समय देते हैं.
  • दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत करते रहें, अपनी बातों को शेयर करें.
  • ध्यान और योग को दिनचर्या में शामिल करें.

आगरा: दुनिया भर के करोड़ों लोग कोरोना महामारी से प्रभावित हुए हैं. इसका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर और बुरा प्रभाव पड़ रहा है. चिंता हमें तनाव देती है और यह लंबे समय तक रहा तो डिप्रेशन यानी अवसाद में तब्दील हो सकता है. ताजनगरी में कोरोना संक्रमण का असर लोगों की मानसिक दशा पर खूब देखने को मिल रहा है. रोजाना एसएन मेडिकल कॉलेज की ट्राएज ओपीडी, मोबाइल ओपीडी और क्लीनिकों पर कोरोना संक्रमण से उपजे मनोरोगी पहुंच रहे हैं. अनलॉक में जिला अस्पताल की ओपीडी और क्लीनिकों पर ऐसे मनोरोगियों की संख्या बढ़ी है. बच्चे, युवा और बुजुर्ग भी कोरोना के कारण डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है. इस बार देखा गया कि कोरोना की वजह से भी लोगों में तनाव की स्थिति है. ताजनगरी में कोरोना संक्रमितों की संख्या और संक्रमितों की मौत का आंकड़ा लोगों को मनोरोगी बना रहा है. भले ही आगरा में कोरोना का रिकवरी रेट 88.75 प्रतिशत है, बावजूद इसके कोरोना का डर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है.

खांसी और जुकाम होने पर किसी की नींद हराम हो गई है, तो कोई बुखार आने पर अपनों से दूरी बना रहा है. कोई दिन में 40 से 50 बार हाथ धो रहा है. तमाम ऐसे कोरोना वॉरियर्स भी हैं, जो फिर से संक्रमित होने के डर से डिप्रेशन में आ गए हैं. वहीं गर्भवती महिलाएं भी शिशु को लेकर चिंतित हैं. हर दिन जिला अस्पताल में 15 से 20 ऐसे लोग पहुंच रहे हैं, जिनके मस्तिष्क में कोरोना की वजह से केमिकल लोचा है.

पांच में से दो लोग मनोरोगी
एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष गुप्ता का कहना है कि हाल ही में देश भर के 2 हजार लोगों पर एक स्टडी की गई. स्टडी के मुताबिक, हर 5 में से 2 लोग मनोरोगी हैं. लोगों के मनोरोगी होने की वजह कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और बेरोजगारी के साथ ही अन्य समस्याएं हैं. इससे लोग घबराहट और एंग्जायटी जैसी बीमारियां से ग्रसित हो रहे हैं.

लग रहा था मैं ठीक नहीं हूंगा
कोरोना वॉरियर्स अर्जुन का कहना है कि जब वे कोरोना संक्रमित हुए थे, तब ऐसा लग रहा था कि वह स्वस्थ नहीं हो सकते. उनका कहना है कि जिस क्वॉरंटाइन सेंटर में उन्हें रखा गया, उसमें संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही थी और सभी लोगों को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. कमरे से न कोई बाहर निकल सकता था और न कोई मिलने आता था. अकेले में मन में बुरे विचार आते थे. डिप्रेशन जैसी स्थिति बन गई थी, लेकिन अब वे बिल्कुल ठीक हैं तो उन्हें अब ऐसे ख्याल नहीं आते.

कोरोना से एंजाइटी के मरीज बढ़े
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट ममता यादव ने बताया कि जिला अस्पताल की ओपीडी में हर रोज तमाम मरीज आ रहे हैं. इसमें कई कोविड से पहले और कई कोविड के बाद की एंजाइटी या अन्य अपनी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं. कई ऐसे मरीज भी आए हैं, जिन्हें तीन-चार दिन से ज्यादा बुखार, सर्दी जुकाम है. मरीजों का कहना है कि उन्हें घबराहट हो रही है, वे डरे हुए हैं. उन्हें डर लग रहा है कि उन्हें कहीं कोरोना तो नहीं हो गया है.

साथ ही कोरोना से स्वस्थ हुए लोगों को दोबारा कोरोना का डर सता रहा है. वे अकेलापन महसूस कर रहे हैं. बता दें कि कोरोना काल में एक ही कमरे में बंद रहने से और लोगों से दूर रहने से भी लोग मानसिक तनाव का शिकार हो जा रहे हैं. ममता यादव ने बताया कि कोरोना के चलते लोग सामाजिक दूरी बना रहे हैं, इसीलिए ऐसे मरीजों की काउंसलिंग की जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर बेहतर उपचार उपलब्ध कराया जा सके.

कोरोना से तीन कैटेगिरी में आ रहे मरीज
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. यूसी गर्ग का कहना है कि हर दिन क्लीनिक पर आने वाले तमाम लोगों का कहना है कि जब वे घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें कोरोना से संक्रमित होने का डर सताता रहता है. यूसी गर्ग के मुताबिक, यह एक मानसिक रोग है. इसमें काउंसलिंग और इलाज की जरूरत है.

इस समय दूसरा ग्रुप उन मरीजों का है, जो कोरोना संक्रमित पाए गए और उनका उपचार चल रहा है. इन मरीजों में आत्मविश्वास की कमी देखी गई. इन मरीजों को लगता है कि अब वे ठीक नहीं होंगे. कोरोना से कहीं उनकी मौत न हो जाए. वहीं तीसरी तरह के वे मरीज आ रहे हैं, जिन्हें जून में, मई में या जुलाई में कोरोना हुआ था और अभी भी यही डर रहता है कि कहीं वे दोबारा से कोरोना संक्रमित न हो जाएं. ऐसे मरीजों को थकान और कमजोरी महसूस होती है तो वे तुरंत तनाव में आते हैं. इस प्रकार डिप्रेशन भी ऐसे लोगों पर हावी होता है.

यह बीमारियां बना रहीं डिप्रेशन का शिकार

  • एंग्जायटी.
  • इंसोमेनिया.
  • डिप्रेशन.
  • ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर.
  • पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर.

महामारी में ऐसे रखें खुद का ध्यान

  • ध्यान बांटने की कोशिश करें, केवल जरूरत मात्र ही कोरोना की खबरें पढ़ें.
  • डिप्रेशन दूर करने के लिए आठ घंटे की नींद लें.
  • नींद पूरी होगी तो दिमाग तरोताजा होगा और सकारात्मकता आएगी.
  • मन में नकारात्मक भाव को कम से कम लाएं.
  • प्रतिदिन सूरज की रोशनी में कुछ देर जरूर रहें, इससे अवसाद जल्दी हटेगा.
  • इस समय घर की छत अथवा बालकनी में थोड़ी देर टहलने जाएं.
  • अपनी पसंदीदा चीजों को टाइम दें. म्यूजिक, पेंटिंग, डांस जो पसंद हो उसे करें.
  • अपने काम का पूरा हिसाब रखें. दिन भर में आप कितना काम करते हैं और किस गतिविधि को कितना समय देते हैं.
  • दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत करते रहें, अपनी बातों को शेयर करें.
  • ध्यान और योग को दिनचर्या में शामिल करें.
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