आगरा: यूपी पॉवर कॉर्पोरेशन कर्मचारियों के जीपीएफ को ब्लैक लिस्टेड कंपनी में निवेश के मामले में ऊर्जा मंत्री सवालों के घेरे में आ गए हैं. वहीं अब पॉवर कॉर्पोरेशन के हजारों कर्मचारियों की मांग ने यूपी सरकार को सांसत में डाल दिया है. एम्प्लाइज अब जीपीएफ और सीपीएफ की गारंटी सरकार से मांग रहे हैं.
बता दें कि यूपी स्टेट पॉवर एंप्लाइज ट्रस्ट और यूपी पावर कॉर्पोरेशन अंशदाई भविष्य निधि ट्रस्ट की जीपीएफ और सीपीएफ की धनराशि निजी संस्था दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में नियम विरुद्ध निवेश की गई. इस मामले में तत्कालीन सचिव ट्रस्ट प्रवीण कुमार गुप्ता और तत्कालीन निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी को अरेस्ट कर लिया गया है.
अभियंता संघ के क्षेत्रीय सचिव वीपी सिंह का कहना है कि ट्रस्ट के जरिए जो भी पैसा गया है, उसके लिए ट्रस्ट के पदाधिकारी जिम्मेदार हैं. एक-दो के खिलाफ कार्रवाई करना हमारी नजर में सिर्फ आईवॉश है. जीपीएफ का पैसा कर्मचारी के बुढ़ापे की लाठी होता है. इस पैसे से कोई अपनी बेटी की शादी करता है तो कोई व्यापार या अन्य गांवों में लगाता है. अगर पैसा चला गया तो उनकी पूरी जिंदगी की कमाई चली गई. सरकार से हमारी मांग यही है कि सरकार जो कार्रवाई कर रही है, उसे तो करे. साथ ही कर्मचारियों की मेहनत की कमाई को दांव पर लगाया गया है, उसे दिलाने की सरकार गारंटी ले.
अभियंता संघ के आगरा शाखा सचिव ओपी गुप्ता ने कहा कि पूरे प्रदेश के 35 हजार अधिकारियों और कर्मचारियों के मेहनत की कमाई को दांव पर लगा दिया गया है. यह कोई छोटे स्तर का काम नहीं है. जिस तरह से कार्यवाही हो रही है वह सही नहीं है. छोटे कर्मचारी को इस में फंसा कर बड़े को बचाने का काम हो रहा है. एक कोई छोटा कर्मचारी इस तरह से कार्य नहीं कर सकता है, क्योंकि जब ट्रस्ट के अध्यक्ष की अनुमति के बिना चंद रुपए नहीं निकाले जा सकते हैं तो फिर इतनी भारी-भरकम रकम कैसे ऐसी असुरक्षित कंपनी में निवेश की गई. उन्होंने कहा कि बड़ी मछलियों पर भी शिकंजा कसा जाए, इसमें बड़े लोग भी शामिल हैं. पूरे प्रदेश के अधिकारी और कर्मचारी बस यही मांग कर रहे हैं कि उनका जो पैसा है उन्हें मिले और सरकार इस बारे में कर्मचारियों को लिखित आश्वासन दें.
35 हजार अधिकारी का काम करते हैं यूपी पावर कॉरपोरेशन
यूपी पावर कॉरपोरेशन में करीब 35 हजार अधिकारी और कर्मचारी हैं, जिनका जीपीएफ और सीपीएफ का अरबों रुपए डीएचएफएल में फंस गया है. कर्मचारियों का सरकार से यह सवाल है कि भले ही अखिलेश राज में 21 अप्रैल 2014 में बोर्ड की मीटिंग में जीपीएफ को हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करने का फैसला लिया गया हो, लेकिन 2017 से अब तक वर्तमान सरकार क्या कर रही थी, जिससे अरबों रुपए का घोटाला हो गया.