आगरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... कविता की ये पंक्तियां शहीदों की शहादत और उन्हें नमन करने की प्रेरणा देती हैं. चमरौला कांड के क्रांतिकारियों ने फिरंगी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी, लेकिन अब उन्हें कोई याद भी नहीं करता है. चमरौला कांड के वीर शहीदों और क्रांतिकारियों के शहीद स्मारक पर अब मेला भी नहीं लगता है.
08 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हुआ तो हर दिल आजादी के लिए मचल रहा था. शहरों से उठी आजादी की चिंगारी जब गावों में पहुंची तो ज्वाला बन गई. 14 अगस्त 1942 को बरहन और आसपास के गांवों में युवा और बुजुर्गों की मुठ्ठियां भींच गई थीं. इस दिन आजादी के दीवानों ने बरहन स्टेशन को फूंक दिया, अनाज गोदाम को लूटा और गरीबों को बांट दिया. इसमें एक क्रांतिकारी शहीद हो गए.
शहीद स्मारक का हाल बेहाल-
फिर 28 अगस्त 1942 को चमरौला रेलवे स्टेशन पर आस-पास के गांवों के क्रांतिकारियों ने धावा बोल दिया. स्टेशन फूंकने का प्रयास किया तो पहले से मौजूद गोरों की सेना ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें चार क्रांतिकारी शहीद हो गए. आजादी के इतिहास में क्रांतिकारियों की बरहन रेलवे स्टेशन फूंकना और चमरौला कांड स्वर्ण अक्षरों में लिखा है. आजाद भारत में चमरौला कांड के क्रांतिकारियों को नमन करने के लिए शहीद स्मारक बनाया गया. शहीदों के परिवार और स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र दिए गए, लेकिन अब शहीदों की शहादत में बनाए गए शहीद स्मारक की हालत बदहाल है. यहां पर 28 और 29 अगस्त को लगने वाला मेला भी तीन दशक से नहीं लग रहा है.
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बरहन कांड से हिल गई थी गोरी हुकूमत-
14 अगस्त 1942 को बरहन के आस-पास के गांवों के 1000 युवा क्रांतिकारी एकजुट हुए. अलग-अलग टुकड़ी बनाकर क्रांतिकारियों ने बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. क्रांतिकारियों ने पहले रेलवे स्टेशन की संचार व्यवस्था को भंग किया. टेलीफोन के तार काट दिए. रेल पटरियां उखाड़ दी. स्टेशन पर आग लगा दी. स्टेशन के बाद क्रांतिकारी कस्बा में स्थित सरकारी बीज और अनाज गोदाम पहुंचे. वहां पर अनाज लूट करके गरीबों को बांट दिया. कस्बा का डाकघर भी क्षतिग्रस्त किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग की. इसमें बैनई के केवल सिंह जाटव शहीद हो गए और कई क्रांतिकारी घायल भी हुए.
चमरौला कांड-
बरहन कांड के बाद क्रांतिकारियों की एकजुटता बढ़ती गई. 28 अगस्त 1942 को रक्षाबंधन के दिन क्रांतिकारी फिर एकजुट हुए. पंडित सीताराम और श्रीराम आभीर के नेतृत्व में चमरौला और आसपास के गांवों के क्रांतिकारियों ने चमरौला रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. मुखबिरी की सूचना के चलते पहले से ही फिरंगी हुकूमत के सिपाही चमरौला स्टेशन पर मौजूद थे. उन्होंने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें क्रांतिकारी सीताराम, किशन लाल, सोहन लाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह, बाबूराम, किशनलाल स्वर्णकार, घायल हो गए, जबकि क्रांतिकारी साहब सिंह, खजान सिंह, सोहन सिंह और उल्फत सिंह शहीद हो गए. उस समय इन क्रांतिकारियों की उम्र महज 20 साल थी.
विधवाओं ने नहीं उतारा सुहाग-
चमरौला कांड के शहीदों की शिनाख्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयास किया. सभी की शव एक जगह रखवा दिए गए. हजारों की संख्या में भीड़ मौके पर मौजूद हुई. शहीदों की विधवाओं और परिवार के लोग भी उस भीड़ में शामिल थे. अंग्रेज अफसर चीख-चीख कर लोगों से शिनाख्त करने के लिए बोलते रहे, लेकिन विधवाओं ने अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारे. इधर चमरौला कांड के घायलों का उपचार भी बड़ी गोपनीयता से आगरा में किया गया.
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250 लोगों की हुई थी गिरफ्तारी-
बरहन और चमरौला कांड के बाद अंग्रेज हुकूमत सख्त हो गई और उन्होंने 250 लोगों को गिरफ्तार किया. उनके खिलाफ मुकदमा चला, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता की वजह से अंग्रेजी हुकूमत कोई साक्ष्य नहीं जुटा सका. इस वजह से दो महीने बाद ही सभी को रिहा करना पड़ा. अंग्रेजी हुकूमत ने चमरौला और बरहन के आस-पास के गांव के लोगों से सामूहिक 25 हजार रुपये जुर्माना वसूला. इसे आजादी के बाद भारत सरकार ने ग्रामीणों को वापस किया था.
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह शहीद स्मारक चमरौला कांड में शहीद क्रांतिकारियों की याद में बनवाया गया है, लेकिन यह बदहाल है. यहां कोई साफ-सफाई नहीं होती है और न ही अधिकारी इसके जीर्णोद्धार को लेकर कोई कदम उठा रहे हैं. यहां पहले मेला लगता था, लेकिन अब कई सालों से यहां कोई मेला नहीं लगता है.लोगों ने सरकार से मांग की कि शहीद स्मारक की सही तरीके से देख रेख की जाए और यहां पर फिर से शहीदों की याद में लगने वाले मेले को शुरू किया जाए.