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चमरौला-बरहन कांड के क्रांतिकारियों ने हिला दी थी गोरी हुकूमत, याद में बना शहीद स्मारक बदहाल

यूपी के आगरा में चमरौला कांड के वीर शहीदों और क्रांतिकारियों की याद में शहीद स्मारक बनाया गया था. वहीं अब शहीद स्मारक बदहाल की स्थिति में है. स्मारक की बदहाल हालत के चलते हर साल लगने वाला मेला भी अब कई सालों से बंद हो गया है.

क्रांतिकारियों की याद में बना शहीद स्मारक बदहाल.
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Published : Aug 17, 2019, 12:22 PM IST

आगरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... कविता की ये पंक्तियां शहीदों की शहादत और उन्हें नमन करने की प्रेरणा देती हैं. चमरौला कांड के क्रांतिकारियों ने फिरंगी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी, लेकिन अब उन्हें कोई याद भी नहीं करता है. चमरौला कांड के वीर शहीदों और क्रांतिकारियों के शहीद स्मारक पर अब मेला भी नहीं लगता है.

क्रांतिकारियों की याद में बना शहीद स्मारक बदहाल.


08 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हुआ तो हर दिल आजादी के लिए मचल रहा था. शहरों से उठी आजादी की चिंगारी जब गावों में पहुंची तो ज्वाला बन गई. 14 अगस्त 1942 को बरहन और आसपास के गांवों में युवा और बुजुर्गों की मुठ्ठियां भींच गई थीं. इस दिन आजादी के दीवानों ने बरहन स्टेशन को फूंक दिया, अनाज गोदाम को लूटा और गरीबों को बांट दिया. इसमें एक क्रांतिकारी शहीद हो गए.


शहीद स्मारक का हाल बेहाल-
फिर 28 अगस्त 1942 को चमरौला रेलवे स्टेशन पर आस-पास के गांवों के क्रांतिकारियों ने धावा बोल दिया. स्टेशन फूंकने का प्रयास किया तो पहले से मौजूद गोरों की सेना ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें चार क्रांतिकारी शहीद हो गए. आजादी के इतिहास में क्रांतिकारियों की बरहन रेलवे स्टेशन फूंकना और चमरौला कांड स्वर्ण अक्षरों में लिखा है. आजाद भारत में चमरौला कांड के क्रांतिकारियों को नमन करने के लिए शहीद स्मारक बनाया गया. शहीदों के परिवार और स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र दिए गए, लेकिन अब शहीदों की शहादत में बनाए गए शहीद स्मारक की हालत बदहाल है. यहां पर 28 और 29 अगस्त को लगने वाला मेला भी तीन दशक से नहीं लग रहा है.

पढ़ें:- हरदोई में शहीदों के परिजनों को सांसद और जिला प्रशासन ने किया सम्मानित

बरहन कांड से हिल गई थी गोरी हुकूमत-
14 अगस्त 1942 को बरहन के आस-पास के गांवों के 1000 युवा क्रांतिकारी एकजुट हुए. अलग-अलग टुकड़ी बनाकर क्रांतिकारियों ने बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. क्रांतिकारियों ने पहले रेलवे स्टेशन की संचार व्यवस्था को भंग किया. टेलीफोन के तार काट दिए. रेल पटरियां उखाड़ दी. स्टेशन पर आग लगा दी. स्टेशन के बाद क्रांतिकारी कस्बा में स्थित सरकारी बीज और अनाज गोदाम पहुंचे. वहां पर अनाज लूट करके गरीबों को बांट दिया. कस्बा का डाकघर भी क्षतिग्रस्त किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग की. इसमें बैनई के केवल सिंह जाटव शहीद हो गए और कई क्रांतिकारी घायल भी हुए.

चमरौला कांड-
बरहन कांड के बाद क्रांतिकारियों की एकजुटता बढ़ती गई. 28 अगस्त 1942 को रक्षाबंधन के दिन क्रांतिकारी फिर एकजुट हुए. पंडित सीताराम और श्रीराम आभीर के नेतृत्व में चमरौला और आसपास के गांवों के क्रांतिकारियों ने चमरौला रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. मुखबिरी की सूचना के चलते पहले से ही फिरंगी हुकूमत के सिपाही चमरौला स्टेशन पर मौजूद थे. उन्होंने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें क्रांतिकारी सीताराम, किशन लाल, सोहन लाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह, बाबूराम, किशनलाल स्वर्णकार, घायल हो गए, जबकि क्रांतिकारी साहब सिंह, खजान सिंह, सोहन सिंह और उल्फत सिंह शहीद हो गए. उस समय इन क्रांतिकारियों की उम्र महज 20 साल थी.

विधवाओं ने नहीं उतारा सुहाग-
चमरौला कांड के शहीदों की शिनाख्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयास किया. सभी की शव एक जगह रखवा दिए गए. हजारों की संख्या में भीड़ मौके पर मौजूद हुई. शहीदों की विधवाओं और परिवार के लोग भी उस भीड़ में शामिल थे. अंग्रेज अफसर चीख-चीख कर लोगों से शिनाख्त करने के लिए बोलते रहे, लेकिन विधवाओं ने अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारे. इधर चमरौला कांड के घायलों का उपचार भी बड़ी गोपनीयता से आगरा में किया गया.

पढ़ें:- बुलंदशहर: करगिल विजय दिवस के मौके वीर सपूतों को नमन

250 लोगों की हुई थी गिरफ्तारी-
बरहन और चमरौला कांड के बाद अंग्रेज हुकूमत सख्त हो गई और उन्होंने 250 लोगों को गिरफ्तार किया. उनके खिलाफ मुकदमा चला, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता की वजह से अंग्रेजी हुकूमत कोई साक्ष्य नहीं जुटा सका. इस वजह से दो महीने बाद ही सभी को रिहा करना पड़ा. अंग्रेजी हुकूमत ने चमरौला और बरहन के आस-पास के गांव के लोगों से सामूहिक 25 हजार रुपये जुर्माना वसूला. इसे आजादी के बाद भारत सरकार ने ग्रामीणों को वापस किया था.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह शहीद स्मारक चमरौला कांड में शहीद क्रांतिकारियों की याद में बनवाया गया है, लेकिन यह बदहाल है. यहां कोई साफ-सफाई नहीं होती है और न ही अधिकारी इसके जीर्णोद्धार को लेकर कोई कदम उठा रहे हैं. यहां पहले मेला लगता था, लेकिन अब कई सालों से यहां कोई मेला नहीं लगता है.लोगों ने सरकार से मांग की कि शहीद स्मारक की सही तरीके से देख रेख की जाए और यहां पर फिर से शहीदों की याद में लगने वाले मेले को शुरू किया जाए.

आगरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... कविता की ये पंक्तियां शहीदों की शहादत और उन्हें नमन करने की प्रेरणा देती हैं. चमरौला कांड के क्रांतिकारियों ने फिरंगी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी, लेकिन अब उन्हें कोई याद भी नहीं करता है. चमरौला कांड के वीर शहीदों और क्रांतिकारियों के शहीद स्मारक पर अब मेला भी नहीं लगता है.

क्रांतिकारियों की याद में बना शहीद स्मारक बदहाल.


08 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हुआ तो हर दिल आजादी के लिए मचल रहा था. शहरों से उठी आजादी की चिंगारी जब गावों में पहुंची तो ज्वाला बन गई. 14 अगस्त 1942 को बरहन और आसपास के गांवों में युवा और बुजुर्गों की मुठ्ठियां भींच गई थीं. इस दिन आजादी के दीवानों ने बरहन स्टेशन को फूंक दिया, अनाज गोदाम को लूटा और गरीबों को बांट दिया. इसमें एक क्रांतिकारी शहीद हो गए.


शहीद स्मारक का हाल बेहाल-
फिर 28 अगस्त 1942 को चमरौला रेलवे स्टेशन पर आस-पास के गांवों के क्रांतिकारियों ने धावा बोल दिया. स्टेशन फूंकने का प्रयास किया तो पहले से मौजूद गोरों की सेना ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें चार क्रांतिकारी शहीद हो गए. आजादी के इतिहास में क्रांतिकारियों की बरहन रेलवे स्टेशन फूंकना और चमरौला कांड स्वर्ण अक्षरों में लिखा है. आजाद भारत में चमरौला कांड के क्रांतिकारियों को नमन करने के लिए शहीद स्मारक बनाया गया. शहीदों के परिवार और स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र दिए गए, लेकिन अब शहीदों की शहादत में बनाए गए शहीद स्मारक की हालत बदहाल है. यहां पर 28 और 29 अगस्त को लगने वाला मेला भी तीन दशक से नहीं लग रहा है.

पढ़ें:- हरदोई में शहीदों के परिजनों को सांसद और जिला प्रशासन ने किया सम्मानित

बरहन कांड से हिल गई थी गोरी हुकूमत-
14 अगस्त 1942 को बरहन के आस-पास के गांवों के 1000 युवा क्रांतिकारी एकजुट हुए. अलग-अलग टुकड़ी बनाकर क्रांतिकारियों ने बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. क्रांतिकारियों ने पहले रेलवे स्टेशन की संचार व्यवस्था को भंग किया. टेलीफोन के तार काट दिए. रेल पटरियां उखाड़ दी. स्टेशन पर आग लगा दी. स्टेशन के बाद क्रांतिकारी कस्बा में स्थित सरकारी बीज और अनाज गोदाम पहुंचे. वहां पर अनाज लूट करके गरीबों को बांट दिया. कस्बा का डाकघर भी क्षतिग्रस्त किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग की. इसमें बैनई के केवल सिंह जाटव शहीद हो गए और कई क्रांतिकारी घायल भी हुए.

चमरौला कांड-
बरहन कांड के बाद क्रांतिकारियों की एकजुटता बढ़ती गई. 28 अगस्त 1942 को रक्षाबंधन के दिन क्रांतिकारी फिर एकजुट हुए. पंडित सीताराम और श्रीराम आभीर के नेतृत्व में चमरौला और आसपास के गांवों के क्रांतिकारियों ने चमरौला रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. मुखबिरी की सूचना के चलते पहले से ही फिरंगी हुकूमत के सिपाही चमरौला स्टेशन पर मौजूद थे. उन्होंने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. इसमें क्रांतिकारी सीताराम, किशन लाल, सोहन लाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह, बाबूराम, किशनलाल स्वर्णकार, घायल हो गए, जबकि क्रांतिकारी साहब सिंह, खजान सिंह, सोहन सिंह और उल्फत सिंह शहीद हो गए. उस समय इन क्रांतिकारियों की उम्र महज 20 साल थी.

विधवाओं ने नहीं उतारा सुहाग-
चमरौला कांड के शहीदों की शिनाख्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयास किया. सभी की शव एक जगह रखवा दिए गए. हजारों की संख्या में भीड़ मौके पर मौजूद हुई. शहीदों की विधवाओं और परिवार के लोग भी उस भीड़ में शामिल थे. अंग्रेज अफसर चीख-चीख कर लोगों से शिनाख्त करने के लिए बोलते रहे, लेकिन विधवाओं ने अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारे. इधर चमरौला कांड के घायलों का उपचार भी बड़ी गोपनीयता से आगरा में किया गया.

पढ़ें:- बुलंदशहर: करगिल विजय दिवस के मौके वीर सपूतों को नमन

250 लोगों की हुई थी गिरफ्तारी-
बरहन और चमरौला कांड के बाद अंग्रेज हुकूमत सख्त हो गई और उन्होंने 250 लोगों को गिरफ्तार किया. उनके खिलाफ मुकदमा चला, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता की वजह से अंग्रेजी हुकूमत कोई साक्ष्य नहीं जुटा सका. इस वजह से दो महीने बाद ही सभी को रिहा करना पड़ा. अंग्रेजी हुकूमत ने चमरौला और बरहन के आस-पास के गांव के लोगों से सामूहिक 25 हजार रुपये जुर्माना वसूला. इसे आजादी के बाद भारत सरकार ने ग्रामीणों को वापस किया था.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह शहीद स्मारक चमरौला कांड में शहीद क्रांतिकारियों की याद में बनवाया गया है, लेकिन यह बदहाल है. यहां कोई साफ-सफाई नहीं होती है और न ही अधिकारी इसके जीर्णोद्धार को लेकर कोई कदम उठा रहे हैं. यहां पहले मेला लगता था, लेकिन अब कई सालों से यहां कोई मेला नहीं लगता है.लोगों ने सरकार से मांग की कि शहीद स्मारक की सही तरीके से देख रेख की जाए और यहां पर फिर से शहीदों की याद में लगने वाले मेले को शुरू किया जाए.

Intro:एक्सक्लुसिव.....
आगरा.
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।।
कविता की यह पंक्तियां शहीदों की शहादत और उन्हें नमन करने की प्रेरणा देती हैं. मगर चमरोला कांड के वीर शहीदों और क्रांतिकारियों के शहीद स्मारक पर अब न मेला लगता है और न ही कोई उन्हें याद करने जाता है. यही वजह है कि, जिस चमरोला कांड के क्रांतिकारियों ने फिरंगी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी. उन्हें कोई नमन भी नहीं करता है.
9 अगस्त 1947 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हुआ तो हर दिल आजादी के मचल रहा था. शहरों से उठी आजादी की चिंगारी जब गावों में पहुंची तो ज्वाला बन गई. 14 अगस्त 1942 को बरहन और आसपास के गांवों में युवा, वयस्कों और बुजुर्गों की मुठ्ठियां भिंच गई थीं. इस दिन आजादी के दीवानों ने बरहन स्टेशन फूंका दिया. अनाज गोदाम लूटा और गरीबों को बांट दिया. इसमें एक क्रांतिकारी शहीद हो गए.
फिर 28 अगस्त 1942 को चमरोला रेलवे स्टेशन पर आसपास के गांवों के क्रांतिकारियों ने धावा बोल दिया. स्टेशन फूंकने का प्रयास किया तो पहले से मौजूद गोरों की सेना ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. जिसमें 4 क्रांतिकारी शहीद हो गए. आजादी के इतिहास में क्रांतिकारियों की बरहन रेलवे स्टेशन फूंकना और चमरोला कांड स्वर्ण अक्षरों में लिखा है. आजाद भारत में चमरोला कांड के क्रांतिकारियों को नमन करने के लिए शहीद स्मारक बनाया गया. शहीदों के परिवार और स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र दिए गए. लेकिन अब शहीदों की शहादत में बनाए गए शहीद स्मारक की हालत बदहाल है. यहां पर 28 और 29 अगस्त को लगने वाला मेला तीन दशक से नहीं लग रहा है. युवा भी शहीदों के इतिहास से अनजान है.



Body:बरहन कांड
बात 14 अगस्त 1942 की है. बरहन के आसपास के गांवों के 1000 युवा क्रांतिकारी एकजुट हुए. अलग अलग टुकड़ी बनाकर
क्रांतिकारियों ने बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. क्रांतिकारियों ने पहले रेलवे स्टेशन की संचार व्यवस्था को भंग किया. टेलीफोन के तार काट दिए. रेल पटरियां उखाड़ दी. स्टेशन पर आग लगा दी. स्टेशन के बाद क्रांतिकारी कस्बा में स्थित सरकारी बीज व अनाज गोदाम पर पहुंचे. वहां पर अनाज लूट करके गरीबों को बांट दिया. कस्बा का डाकघर भी क्षतिग्रस्त किया. अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग की. जिसमें बैनई के केवल सिंह जाटव शहीद हो गए और कई क्रांतिकारी घायल भी हुए.

चमरोला कांड
बरहन कांड के बाद क्रांतिकारियों की एकजुटता बढ़ती गई. 28 अगस्त 1942 को रक्षाबंधन के दिन क्रांतिकारी फिर एकजुट हुए. पंडित सीताराम और श्रीराम आभीर के नेतृत्व में चमरोला और आसपास के गांवों के क्रांतिकारियों ने चमरोला रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया. लेकिन मुखबिरी के चलते पहले से ही फिरंगी हुकूमत के सिपाही चमरोला स्टेशन पर मौजूद थे. उन्होंने क्रांतिकारियों पर फायरिंग कर दी. जिसमें क्रांतिकारी सीताराम, किशन लाल, सोहन लाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह, बाबूराम, किशनलाल स्वर्णकार, घायल हो गए. जबकि क्रांतिकारी साहब सिंह, खजान सिंह, सोहन सिंह और उल्फत सिंह शहीद हो गए. उस समय इन क्रांतिकारियों की उम्र महज 20 साल थी.

विधवाओं ने नहीं उतारा सुहाग
चमरोला कांड के शहीदों की शिनाख्त के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयास किया. सभी की शव एक जगह रखवा दिए गए. हजारों की संख्या में भीड़ मौके पर मौजूद हुए. शहीदों की विधवाओं और परिवार के लोग भी उस भीड़ में शामिल थे. अंग्रेज अफसर चीख चीख कर के लोगों से शिनाख्त करने के लिए बोलते रहे, लेकिन विधवाओं ने अपने सुहाग चिन्ह नहीं उतारे. इधर चमरोला कांड के घायलों का उपचार भी बड़ी गोपनीयता से आगरा में किया गया.

250 लोगों की गिरफ्तारी हुई
बरहन और चमरोला कांड के बाद अंग्रेज हुकूमत सख्त हो गई और उन्होंने ढाई सौ लोगों को गिरफ्तार किया. उनके खिलाफ मुकदमा चला, लेकिन ग्रामीणों की एकजुटता की वजह से अंग्रेजी हुकूमत कोई साक्ष्य नहीं जुटा सके. इस वजह से 2 महीने बाद ही सभी को रिहा करना पड़ा. अंग्रेजी हुकूमत ने चमरोला और बरहन के आसपास के गांव के लोगों से सामूहिक ₹25000 जुर्माना वसूला. जिसे आजादी के बाद भारत सरकार ने ग्रामीणों को वापस किया था.

सतपाल सिंह का कहना है कि, यह शहीद स्मारक चमरोला कांड में शहीद और क्रांतिकारियों की याद में बनवाया गया है. लेकिन यह बदहाल है. यहां झाड़ियां खड़ी हैं. कोई साफ सफाई नहीं होती है. और ना ही अधिकारी इसके जीर्णोद्धार को लेकर के कोई कदम उठा रहे हैं.

बृजेश कुमार यादव का कहना है कि, हमारे पूर्वज बताते थे कि आसपास के गांव के लोगों ने एक साथ चमरोला रेलवे स्टेशन पर धावा बोला था और अपने प्राणों की चिंता न करते हुए स्टेशन फूंक दिया था. उनकी याद में यह शहीद स्मारक बनाया गया है. जहां पहले मेला लगता था, लेकिन अब कई सालों से यहां कोई मेला नहीं लगता है, न कोई इस शहीद स्मारक की देखरेख करने आता है.

गुरुदयाल सिंह यादव का कहना है कि, हमारी सरकार से बस यही मांग है कि शहीद स्मारक की सही तरीके से देखरेख की जाए और यहां पर फिर से शहीदों की याद में लगने वाले मेले को शुरू किया जाए.

शहीद के परिजन श्यामसिंह का कहना है कि, चमरोला कांड में मेरे परिवार के 5 लोग शामिल थे. जिनमें से 1 शहीद हुए थे. शहीद स्मारक बदहाल है. शहीदों की याद में 28 और 29 अगस्त को हर साल शहीद स्मारक पर बड़ा मेला लगता था. स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किया जाता था, लेकिन 1999 से शहीद स्मारक पर मेला नहीं लग रहा है. ना कोई कार्यक्रम होता है. सरकार और जिला प्रशासन से यही मांग है शहीदों की शहादत की नमन करने के लिए वहां पर फिर से मेला लगाया जाए. स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किया जाए और शहीद स्मारक की सही तरह से देखरेख की जाए. जिससे आगे आने वाली पीढ़ी शहीदों के शहादत के इतिहास को जान सके.



Conclusion:9 अगस्त 1947. अगस्त क्रांति. अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा. हर दिल आजादी के मचल रहा था. शहरों से उठी आजादी की चिंगारी जब गावों में पहुंची तो ज्वाला बन गई.

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पहली बाइट सतपाल सिंह, निवासी चमरोला ।
दूसरी बाइट बृजेश यादव, हलवाई चमरोला रेलवे स्टेशन।
तीसरी बाइट गुरुदयाल सिंह यादव, स्थानीय शिक्षक ।
चौथी बाइट श्यामसिंह, शहीद के परिजन।

डेस्क ध्यानार्थ
सभी के नाम रिनेम करके भेज रहा हूं जिससे किसी का नाम गलत प्रसारित न हो.
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श्यामवीर सिंह
आगरा
8387893357
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