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जानें क्या है एम्स की 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बच्चा' मुहिम... वो गोल्डन ऑवर जिनमें बच सकती है जान - Golden Hour Information in Brain Stroke

दिल्ली एम्स देश में 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बचपन' मुहिम चला रहा है. जिससे माता,पिता और परिवार जागरूक हों और मासूमों की जान बचाई जा सके. बुजुर्ग, युवा और बच्चों को भी ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है. रिपोर्ट में जाने ब्रेन स्ट्रोक में तत्काल किए जाने वाले प्राथमिक उपचार....

ब्रेन स्ट्रोक
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Published : Dec 8, 2022, 8:36 PM IST

आगरा: दिल्ली एम्स देश में 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बचपन' मुहिम(AIIMS safe balcony safe child campaign) चला रहा है. जिससे माता, पिता और परिवार जागरूक हों और मासूमों की जान बचाई जा सके. इसके साथ ही एम्स के विशेषज्ञ देशभर में लोगों को ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन स्ट्रोक होने पर साढ़े चार घंटे के 'गोल्डन ऑवर' (Golden Hour Information in Brain Stroke) की जानकारी दे रहे हैं. आगरा आए एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि भारत में हर 20 सेकंड में एक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है. हर दो मिनट में एक व्यक्ति की ब्रेन स्ट्रोक से मौत हो रही है. बुजुर्ग, युवा और बच्चों को भी ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है.

जानकारी देते न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता

डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि अगर किसी को ब्रेन स्ट्रोक आता है तो घबराएं नहीं, होशियारी दिखाएं. ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को अधिकतम साढ़े चार घंटे में किसी चिकित्सक के पास लेकर पहुंचे. समय रहते मरीज को सिर्फ एक इंजेक्शन लगवाएं, जिससे आगे का नुकसान रुक जाएगा. क्षतिग्रस्त हो चुके दिमाग को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है. लेकिन, इसके दबाव से दिमाग के सेकेंडरी डैमेज (दूसरे हिस्सों) को खराब होने से बचाया जा सकता है. इसलिए, समय पर इलाज शुरू होना बेहद जरूरी है. समय पर इलाज शुरू होने से मरीज के ठीक होने की संभावना अधिक रहती है. यदि देर हो गई तो तमाम जांचें करानी पड़ती है. यदि, दिमाग में खून लीक होने या सप्लाई में गड़बड़ी हुई तो अटैक आ सकता है.

बच्चों की जान के लिए सुरक्षित छज्जा जरूरी: एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि बच्चा सबसे पहले ऊपर की ओर चढ़ना शुरू करता है. जो हादसे की वजह बनता है. एम्स में आने वाले 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे ऊंचाई से गिरकर गंभीर हालत में आते हैं. जिसमें 15 से 20 प्रतिशत बच्चे बालकनी से गिरकर आघात वाले होते हैं. इनमें से चार से पांच की मौत हो जाती है. यह बड़ी क्षति है. इसलिए छोटे बच्चों की सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत है. इसको लेकर एम्स ने 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बच्चा' मुहिम शुरू की है. कोविड के बाद लोगों में ब्रेन स्ट्रोक भी बढ़ गया है, जिसके मल्टीपल कारण हैं. कोविड के एक साल बाद लोगों में फेफड़ों की समस्या या अन्य तमाम समस्याएं हो रही हैं. इसकी वजह भी बेहद अहम है, जो कोविड के मरीज रहे हैं. उनमें रक्त का जमाव बढ़ गया है. जिससे ब्रेन स्ट्रोक बढ़ गया है.


65 में से चार को ब्रेन स्ट्रोक: एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि दिल की तरह ब्रेन स्ट्रोक में दर्द नहीं होता है. यह दर्द रहित होता है. चूंकि अटैक पड़ने पर तत्काल इलाज शुरू करना जरूरी होता है. इसलिए समय का ख्याल रखना होगा. देश में हर दो मिनट में एक व्यक्ति को स्ट्रोक पड़ता है. इस तरह के 65 मरीजों में से 4 को ब्रेन स्ट्रोक पड़ जाता है. अगर हम देश में सिर की चोट से हर साल मौत की बात करें तो आंकड़ा बहुत है. देश में हर साल 50 हजार लोगों की ब्रेन स्ट्रोक से मौत होती है.

देहात में ज्यादा बढ़े मामले: ब्रेन स्ट्रोक वैसे तो शहरी और देहात की आबादी में बराबर की स्थिति में है. लेकिन कई अध्ययन यह भी साबित करते हैं कि देहात में अब यह ज्यादा है. शहर में एक लाख आबादी में से 282 लोग इससे प्रभावित मिले तो देहात में यह आंकड़ा 334 से 424 तक है. इसलिए कोई भी इसके खतरे से मुक्त नहीं है.


दो तरह के स्ट्रोक होते हैं.

  1. इस्कीमिक स्ट्रोक: जहां कोई भी नस बंद हो जाती है. यह ट्रंजिएट यानि थोड़ी देर के लिए पड़ता है. फिर वापस होता है. यह अलार्म (खतरे की घंटी) है. इसके तत्काल इलाज शुरू कराएं.
  2. रक्तस्रावी स्ट्रोक: यह सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. इसमें दिमाग के अंदर खून बह जाता है या जमा होता है. जिससे मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचता है. यह दिमाग के किसी भी हिस्से में हो सकता है. नस फटने से अक्सर यकायक मौत भी ऐसे ही हो जाती है.

यह बरतें सावधानी
-बालकनी में ऊंची कराएं.
- बालकनी में जाली लगाएं.
- बालकनी में कुर्सी या स्टूल न रखें.
- बालकनी में बच्चे को अकेला न छोड़ें.

यह भी पढ़ें: पीजीआई में दी गई ब्रेन स्ट्रोक के निवारण की जानकारी, न्यूरोलाॅजी विभाग में हुई जागरूकता कार्यशाला

आगरा: दिल्ली एम्स देश में 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बचपन' मुहिम(AIIMS safe balcony safe child campaign) चला रहा है. जिससे माता, पिता और परिवार जागरूक हों और मासूमों की जान बचाई जा सके. इसके साथ ही एम्स के विशेषज्ञ देशभर में लोगों को ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन स्ट्रोक होने पर साढ़े चार घंटे के 'गोल्डन ऑवर' (Golden Hour Information in Brain Stroke) की जानकारी दे रहे हैं. आगरा आए एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि भारत में हर 20 सेकंड में एक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है. हर दो मिनट में एक व्यक्ति की ब्रेन स्ट्रोक से मौत हो रही है. बुजुर्ग, युवा और बच्चों को भी ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है.

जानकारी देते न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता

डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि अगर किसी को ब्रेन स्ट्रोक आता है तो घबराएं नहीं, होशियारी दिखाएं. ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को अधिकतम साढ़े चार घंटे में किसी चिकित्सक के पास लेकर पहुंचे. समय रहते मरीज को सिर्फ एक इंजेक्शन लगवाएं, जिससे आगे का नुकसान रुक जाएगा. क्षतिग्रस्त हो चुके दिमाग को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है. लेकिन, इसके दबाव से दिमाग के सेकेंडरी डैमेज (दूसरे हिस्सों) को खराब होने से बचाया जा सकता है. इसलिए, समय पर इलाज शुरू होना बेहद जरूरी है. समय पर इलाज शुरू होने से मरीज के ठीक होने की संभावना अधिक रहती है. यदि देर हो गई तो तमाम जांचें करानी पड़ती है. यदि, दिमाग में खून लीक होने या सप्लाई में गड़बड़ी हुई तो अटैक आ सकता है.

बच्चों की जान के लिए सुरक्षित छज्जा जरूरी: एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि बच्चा सबसे पहले ऊपर की ओर चढ़ना शुरू करता है. जो हादसे की वजह बनता है. एम्स में आने वाले 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे ऊंचाई से गिरकर गंभीर हालत में आते हैं. जिसमें 15 से 20 प्रतिशत बच्चे बालकनी से गिरकर आघात वाले होते हैं. इनमें से चार से पांच की मौत हो जाती है. यह बड़ी क्षति है. इसलिए छोटे बच्चों की सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत है. इसको लेकर एम्स ने 'सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बच्चा' मुहिम शुरू की है. कोविड के बाद लोगों में ब्रेन स्ट्रोक भी बढ़ गया है, जिसके मल्टीपल कारण हैं. कोविड के एक साल बाद लोगों में फेफड़ों की समस्या या अन्य तमाम समस्याएं हो रही हैं. इसकी वजह भी बेहद अहम है, जो कोविड के मरीज रहे हैं. उनमें रक्त का जमाव बढ़ गया है. जिससे ब्रेन स्ट्रोक बढ़ गया है.


65 में से चार को ब्रेन स्ट्रोक: एम्स दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि दिल की तरह ब्रेन स्ट्रोक में दर्द नहीं होता है. यह दर्द रहित होता है. चूंकि अटैक पड़ने पर तत्काल इलाज शुरू करना जरूरी होता है. इसलिए समय का ख्याल रखना होगा. देश में हर दो मिनट में एक व्यक्ति को स्ट्रोक पड़ता है. इस तरह के 65 मरीजों में से 4 को ब्रेन स्ट्रोक पड़ जाता है. अगर हम देश में सिर की चोट से हर साल मौत की बात करें तो आंकड़ा बहुत है. देश में हर साल 50 हजार लोगों की ब्रेन स्ट्रोक से मौत होती है.

देहात में ज्यादा बढ़े मामले: ब्रेन स्ट्रोक वैसे तो शहरी और देहात की आबादी में बराबर की स्थिति में है. लेकिन कई अध्ययन यह भी साबित करते हैं कि देहात में अब यह ज्यादा है. शहर में एक लाख आबादी में से 282 लोग इससे प्रभावित मिले तो देहात में यह आंकड़ा 334 से 424 तक है. इसलिए कोई भी इसके खतरे से मुक्त नहीं है.


दो तरह के स्ट्रोक होते हैं.

  1. इस्कीमिक स्ट्रोक: जहां कोई भी नस बंद हो जाती है. यह ट्रंजिएट यानि थोड़ी देर के लिए पड़ता है. फिर वापस होता है. यह अलार्म (खतरे की घंटी) है. इसके तत्काल इलाज शुरू कराएं.
  2. रक्तस्रावी स्ट्रोक: यह सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. इसमें दिमाग के अंदर खून बह जाता है या जमा होता है. जिससे मरीज गंभीर स्थिति में पहुंचता है. यह दिमाग के किसी भी हिस्से में हो सकता है. नस फटने से अक्सर यकायक मौत भी ऐसे ही हो जाती है.

यह बरतें सावधानी
-बालकनी में ऊंची कराएं.
- बालकनी में जाली लगाएं.
- बालकनी में कुर्सी या स्टूल न रखें.
- बालकनी में बच्चे को अकेला न छोड़ें.

यह भी पढ़ें: पीजीआई में दी गई ब्रेन स्ट्रोक के निवारण की जानकारी, न्यूरोलाॅजी विभाग में हुई जागरूकता कार्यशाला

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