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दुर्लभ सर्जरी कर मासूम की रीढ़ की हड्डी से निकाला बालों का गुच्छा, अब चलने फिरने लगा बच्चा

आगरा एसएन मेडिकल कॉलेज के न्यूरोसर्जरी विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने नौ साल के बच्चे की रीढ़ की हड्डी से सर्जरी कर बालों का गुच्छा बहार निकाला है. सफल सर्जरी से मासूम और परिवार की खुशियां लौट आई है.

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मासूम की रीढ़ की हड्डी से निकाला बालों का गुच्छा
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 2, 2023, 10:12 PM IST

आगरा: एसएन मेडिकल कॉलेज (एसएनएमसी) के डॉक्टरों की टीम ने दुर्लभ सर्जरी करके एक मासूम की जिंदगी बेहतर कर दी है. 9 साल के बच्चे की रीढ़ की हड्डी के अलावा पैरों में भी दिक्कत थी. जिस पर सुपर स्पेशिलिटी न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने उसकी सफल सर्जरी की है. अब बच्चा आराम से चलने-फिरने लगा है. जिससे मासूम और परिवार की खुशियां लौट आई हैं.

एसएनएमसी के प्राचार्य डाॅ. प्रशांत गुप्ता ने बताया कि तीन माह पहले खंदौली क्षेत्र से परिजन अपने साथ स्पेशिलिटी न्यूरो सर्जरी विभाग की ओपीडी में नौ वर्षीय बच्चे को लेकर आए. जांच और एमआरआई के बाद पता चला कि बच्चे को 'डायस्टमेटोमाइलिया टाइप-1 बोनी स्पर विद टेथर्ड' नामक बीमारी है. जिसका एकमात्र उपचार सर्जरी था, क्योंकि बच्चे के पैर सुन्न हो गए थे. बच्चे के पैर में घाव भी थे, जो भर नहीं रहे थे. जिससे बच्चे के पैरों में लगातार कमजोरी आ रही थी. बच्चा चलने फिरने में असमर्थ हो गया था. इसके साथ ही बच्चे की रीढ़ की हड्डी में बालों का गुच्छा भी था.

इसे भी पढ़े-Ligament Surgery: अगर चलते-चलते लचक रहा आपका घुटना तो ये है इलाज

डाॅ. प्रशांत गुप्ता ने बताया कि न्यूरोसर्जरी विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने बच्चे की सर्जरी करने का फैसला किया. न्यूरोसर्जरी विभाग के डाॅ. गौरव धाकरे, डाॅ. मयंक अग्रवाल, डाॅ. आदित्य वार्ष्णेय, डाॅ. क्षितिज, डाॅ. अनूप और एनेस्थीसिया विभाग के डाॅ. नीतिका मित्तल और डाॅ. दीपक की टीम ने रीढ़ की हड्डी की नसों से दबाव हटाकर बोनी स्पर को निकाल लिया. अब तीन महीने बाद बच्चे के घाव पूरी तरह भर चुके हैं. पैरों का सुन्नपन और कमजोरी भी खत्म हो गई है. बच्चा अब चलने-फिरने भी लगा है.

सर्जरी टीम के न्यूरोसर्जन डाॅ. गौरव धाकरे बताते हैं कि इस तरह के ऑपरेशन के बाद मल और मूत्र पर नियंत्रण खत्म होने का खतरा रहता है. लेकिन, डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी में बेहद सावधानी बरती. इसकी वजह से ही सर्जरी के बाद बच्चे का मल मूत्र पर पहले जैसा ही नियंत्रण है. अब वो पुरानी स्थिति में आ गया है. न्यूरोसर्जन डाॅ. मयंक अग्रवाल बताते हैं कि एनोमली अल्ट्रासाउंड से गर्भ में ही जन्मजात विकृतियों का पता लगाया जा सकता है. गर्भवती महिलाओं में यह बीमारी फोलिक एसिड की कमी से होती है. इसलिए, गर्भवतियों को नियमित जांचों के साथ अल्ट्रासाउंड भी कराते रहना चाहिए.


यह भी पढ़े-EYE CARE : मोहब्बत वाला कजरा पहुंचा सकता है आंखों को नुकसान, नेत्र रोग विशेषज्ञ से जानिए समाधान

आगरा: एसएन मेडिकल कॉलेज (एसएनएमसी) के डॉक्टरों की टीम ने दुर्लभ सर्जरी करके एक मासूम की जिंदगी बेहतर कर दी है. 9 साल के बच्चे की रीढ़ की हड्डी के अलावा पैरों में भी दिक्कत थी. जिस पर सुपर स्पेशिलिटी न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने उसकी सफल सर्जरी की है. अब बच्चा आराम से चलने-फिरने लगा है. जिससे मासूम और परिवार की खुशियां लौट आई हैं.

एसएनएमसी के प्राचार्य डाॅ. प्रशांत गुप्ता ने बताया कि तीन माह पहले खंदौली क्षेत्र से परिजन अपने साथ स्पेशिलिटी न्यूरो सर्जरी विभाग की ओपीडी में नौ वर्षीय बच्चे को लेकर आए. जांच और एमआरआई के बाद पता चला कि बच्चे को 'डायस्टमेटोमाइलिया टाइप-1 बोनी स्पर विद टेथर्ड' नामक बीमारी है. जिसका एकमात्र उपचार सर्जरी था, क्योंकि बच्चे के पैर सुन्न हो गए थे. बच्चे के पैर में घाव भी थे, जो भर नहीं रहे थे. जिससे बच्चे के पैरों में लगातार कमजोरी आ रही थी. बच्चा चलने फिरने में असमर्थ हो गया था. इसके साथ ही बच्चे की रीढ़ की हड्डी में बालों का गुच्छा भी था.

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डाॅ. प्रशांत गुप्ता ने बताया कि न्यूरोसर्जरी विभाग के विशेषज्ञों की टीम ने बच्चे की सर्जरी करने का फैसला किया. न्यूरोसर्जरी विभाग के डाॅ. गौरव धाकरे, डाॅ. मयंक अग्रवाल, डाॅ. आदित्य वार्ष्णेय, डाॅ. क्षितिज, डाॅ. अनूप और एनेस्थीसिया विभाग के डाॅ. नीतिका मित्तल और डाॅ. दीपक की टीम ने रीढ़ की हड्डी की नसों से दबाव हटाकर बोनी स्पर को निकाल लिया. अब तीन महीने बाद बच्चे के घाव पूरी तरह भर चुके हैं. पैरों का सुन्नपन और कमजोरी भी खत्म हो गई है. बच्चा अब चलने-फिरने भी लगा है.

सर्जरी टीम के न्यूरोसर्जन डाॅ. गौरव धाकरे बताते हैं कि इस तरह के ऑपरेशन के बाद मल और मूत्र पर नियंत्रण खत्म होने का खतरा रहता है. लेकिन, डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी में बेहद सावधानी बरती. इसकी वजह से ही सर्जरी के बाद बच्चे का मल मूत्र पर पहले जैसा ही नियंत्रण है. अब वो पुरानी स्थिति में आ गया है. न्यूरोसर्जन डाॅ. मयंक अग्रवाल बताते हैं कि एनोमली अल्ट्रासाउंड से गर्भ में ही जन्मजात विकृतियों का पता लगाया जा सकता है. गर्भवती महिलाओं में यह बीमारी फोलिक एसिड की कमी से होती है. इसलिए, गर्भवतियों को नियमित जांचों के साथ अल्ट्रासाउंड भी कराते रहना चाहिए.


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