नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शराब की बिक्री के सभी स्थानों पर अनिवार्य आयु सत्यापन प्रणाली स्थापित करने के लिए एक मजबूत नीति लागू करने की मांग वाली याचिका पर सोमवार को केंद्र से जवाब मांगा. यह मामला बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की बेंच के समक्ष आया. जनहित याचिका दिल्ली स्थित कम्युनिटी अगेंस्ट ड्रंकन ड्राइविंग (सीएडीडी) द्वारा दायर की गई थी, जो एक गैर-सरकारी संगठन है जो शराब से संबंधित त्रासदियों को रोकने के लिए 23 वर्षों से काम कर रहा है.
जनहित याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता संगठन द्वारा एकत्र किए गए शोध और आंकड़ों के अनुसार, शराब पीकर गाड़ी चलाना 70 प्रतिशत से अधिक सड़क दुर्घटनाओं का कारण है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में हर साल 1 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं.
शराब पीना मौलिक अधिकार नहीं
याचिका में जोर दिया गया है कि, शराब पीने के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. याचिका में यह भी कहा गया है कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार, "राज्य का यह कर्तव्य है कि, वह औषधीय प्रयोजनों को छोड़कर मादक पेय पदार्थों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करे, जो न केवल एक दूर का सपना है, बल्कि एक डेड लेटर है".
जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया. याचिका में राज्यों में शराब विनियमन के लिए एक समान ढांचा बनाने और शराब पीकर गाड़ी चलाने की बढ़ती समस्या को कम करने और रोकने की भी मांग की गई है. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता पी बी सुरेश और अधिवक्ता विपिन नायर ने किया.
शराब पीने की कानूनी उम्र में भारी असमानता
याचिका में भारत के विभिन्न राज्यों में शराब पीने की कानूनी उम्र में भारी असमानता को उजागर किया गया है. याचिका में कहा गया है कि, गोवा में 18 साल की आयु से शराब पीने की अनुमति है, जबकि दिल्ली में 25 वर्ष की उच्च सीमा है. इसमें कहा गया है कि, यह भिन्नता अन्य राज्यों में भी लागू होती है. वहीं, महाराष्ट्र में शराब पीने के लिए 25 साल की आयु निर्धारित की गई है, जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु में 18 साल की आयु में शराब पीने की अनुमति है.
याचिकाकर्ता ने कम उम्र में शराब पीने और आपराधिक व्यवहार के बीच संबंध की ओर भी ध्यान आकर्षित किया. जनहित याचिका में उद्धृत अध्ययनों के अनुसार, शराब के संपर्क में आने से डकैती, यौन उत्पीड़न और हत्या सहित हिंसक अपराधों का जोखिम काफी बढ़ जाता है.
शराब पीने के बाद होने वाली दुर्घटनाओं पर नजर
याचिका में हाल ही में पुणे में हुए कार दुर्घटना मामले को भी उजागर किया गया है, जिसमें शराब के नशे में गाड़ी चला रहे एक नाबालिग ने दो युवाओं की जान ले ली थी. याचिका में कहा गया है कि कोई भी बार, पब, रेस्तरां, शराब विक्रेता आदि शराब पीने या खरीदने वाले लोगों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं और शराब परोसे जाने पर कभी भी पहचान या आयु प्रमाण नहीं मांगा जाता है. याचिका में आगे कहा गया है, "इसका परिणाम यह है कि शराब पीने की कानूनी उम्र से कम के लोगों को बिना उम्र की जांच के शराब परोसी जा रही है और अक्सर ये नशे में धुत व्यक्ति गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं, जिससे अक्सर लोगों को गंभीर नुकसान पहुंचता है या मौतें होती हैं."
शराब पीकर गाड़ी चलाने का अपराध जमानती है, याचिका में कहा गया
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि 18 से 25 वर्ष की आयु के लगभग 42.3 प्रतिशत लड़कों ने 18 साल की आयु से पहले शराब पी थी और उनमें से 90 फीसदी बिना किसी आयु सत्यापन के विक्रेताओं से शराब खरीद सकते हैं.
याचिका में कहा गया है, "शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए सजा की दर न के बराबर बनी हुई है. शराब पीकर गाड़ी चलाने का अपराध जमानती है, इसलिए अपराधियों को लगभग तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया जाता है. मामले को और जटिल बनाने के लिए, कम उम्र में शराब पीकर गाड़ी चलाना अब कोई असामान्य घटना नहीं है. कम उम्र में शराब पीकर गाड़ी चलाने की घटनाओं को मीडिया द्वारा भी व्यापक रूप से कवर किया गया है.
उम्र की जांच व सत्यापन के लिए कोई कानूनी ढांचा या ठोस तंत्र नहीं
याचिका में कहा गया है कि किसी व्यक्ति की उम्र की जांच व सत्यापन के लिए कोई कानूनी ढांचा या ठोस तंत्र नहीं है, जो या तो बार, पब, रेस्तरां से या सीधे शराब की दुकान से शराब खरीदता है. याचिका में कहा गया है, "इसके अभाव में, यह एक शून्यता बन गई है जिसका पूरे देश में शराब विक्रेताओं और शराब की दुकानों से सीधे खरीदने वाले लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. इसके परिणामस्वरूप शराब के नशे में गाड़ी चलाने वाले नाबालिगों से जुड़ी कई घातक दुर्घटनाएं हुई हैं."
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