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ये हैं आगरा की 'पैड वुमन', ऐसे कर रहीं महिलाओं और युवतियों को जागरूक - आगरा की पैड वुमन

आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं आगरा की पैड वुमन से. इनकी लगन और काम को जानकार आप हैरत में पड़ जाएंगे. चलिए जानते हैं इनके बारे में.

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Published : Mar 29, 2023, 5:32 PM IST

आगरा: आपने 'पैड-मैन' फिल्म तो देखी होगी जो रियल 'पैड-मैन' मुरुगनाथम अरुणाचलम की कहानी है. मुरुगनाथम अरुणाचलम ने मासिक धर्म की पीड़ा समझी और कम लागत में सैनिटरी पैड बनाने में सफलता हासिल की. आज हम बात करेंगे आगरा की 'पैड वुमन' दिव्या मलिक के बारे में. उन्होंने एमबीए किया मगर, नौकरी के बंधन में नहीं बंधी. समाज की बंदिशें तोड़कर दिव्या मलिक स्कूल-स्कूल जाकर किशोरियों को माहवारी में साफ-सफाई रखने की सलाह देने के साथ ही उन्हें कम कीमत में पैड उपलब्ध करा रहीं हैं. इसके साथ ही घर-घर जाकर वह महिलाओं को माहवारी के दौरान साफ-सफाई न रखने से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक कर रहीं हैं. 'पैड वुमन' दिव्या मलिक जागरूकता के साथ ही 15 से 20 महिलाओं को अपने साथ जोड़कर पैड बनाने के काम से रोजगार भी दे रही हैं.

जानकारी देतीं पैड वुमन दिव्या मलिक.
सिकंदरा निवासी दिव्या की स्कूली शिक्षा देहरादून से हुई है. दिव्या ने एसजीआई से एमबीए किया मगर, नौकरी के बंधन में नहीं बंधी क्योंकि, शिक्षा के दौरान ही दिव्या कई एनजीओ से जुड़ गई थीं. इस दौरान दिव्या ने महिलाओं को माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों. दकियानुसी नियमों और असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करते हुए देखा था. दिव्या मलिक बताती हैं कि यहीं से अपने जीवन का उद्देश्य बनाया कि इसको लेकर समाज को जागरूक करेंगीं. इसके बाद सन् 2015 में पश्चिमपुरी में अपनी सेनेटरी पैड बनाने की यूनिट स्थापित की. दिव्या बताती हैं कि गांव, मोहल्ले, स्कूल-कॉलेज में कार्यशालाएं भी करती हूं. वहां पर किशोरी, महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता के की जानकारी दी जाती है. माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान नहीं रखने पर किशोरी और महिलाओं को यूटीआई और सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारी होती है. इस बारे में जागरुक किया जाना बेहद जरूरी है. जिले में आशा बहू और स्कूल-काॅलेज के साथ मिलकर काम करतीं हैं. वह अपनी कार्यशालाओं में किशोरी और महिलाओं को फ्री में पैड वितरित करतीं हैं. इसके साथ ही उन्होंने छात्राओं के लिए दो व चार पैड के खास पैकेट तैयार किए हैं. दो पैड के पैकेट की कीमत सिर्फ दस रुपए है जो बाजार में मिलने वाले पैड की कीमत के मुकाबले कम है. आसान नहीं था सफरदिव्या बतातीं हैं कि उनका यह सफर आसान नहीं था. आज भी समाज में माहवारी पर कोई खुलकर बात नहीं करता है. अभिभावक भी बेटियों से इस विषय पर बात करने से कतराते हैं. उन्होंने देखा कि देश की 71 प्रतिशत लड़कियों को आज भी पहले मासिक धर्म से पूर्व जानकारी नहीं होती है. जब उन्होंने यूनिट लगाने के लिए लोगों से मुलाकात की तो लड़की होने के नाते वे बात ही नहीं करते थे. दिव्या कहती है कि, मुश्किलों से जूझना इतना आसान नहीं है. यह एक ऐसी चीज है, जिसे हर कोई छिपाना चाहता है. आज भी लोग इसे अभिशाप मानते हैं लेकिन, मैं उन्हें यह अहसास कराना चाहती हूं कि, माहवारी जीवन के अस्तित्व के लिए वरदान है. माता-पिता ने किया सहयोगदिव्या मलिक बताती हैं कि पिता जीएस मलिक का सिलिका जैल का पारिवारिक व्यापार है. मां अंग्रेजी की शिक्षिका हैं. माता-पिता मेरे व्यापार में सहयोग कर रहे हैं. मेरे भाई- बहन विदेश में रहते हैं. मेरे सैनेटरी पैड यूनिट का आज टर्नओवर 60 लाख रुपए तक पहुंच गया है जबकि, कोरोना काल में कारोबार लड़खड़ाया था.ये भी पढ़ेंः सुलतानपुर में आरिफ की तरह अफरोज की भी सारस से दोस्ती, मुकदमा दर्ज

आगरा: आपने 'पैड-मैन' फिल्म तो देखी होगी जो रियल 'पैड-मैन' मुरुगनाथम अरुणाचलम की कहानी है. मुरुगनाथम अरुणाचलम ने मासिक धर्म की पीड़ा समझी और कम लागत में सैनिटरी पैड बनाने में सफलता हासिल की. आज हम बात करेंगे आगरा की 'पैड वुमन' दिव्या मलिक के बारे में. उन्होंने एमबीए किया मगर, नौकरी के बंधन में नहीं बंधी. समाज की बंदिशें तोड़कर दिव्या मलिक स्कूल-स्कूल जाकर किशोरियों को माहवारी में साफ-सफाई रखने की सलाह देने के साथ ही उन्हें कम कीमत में पैड उपलब्ध करा रहीं हैं. इसके साथ ही घर-घर जाकर वह महिलाओं को माहवारी के दौरान साफ-सफाई न रखने से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक कर रहीं हैं. 'पैड वुमन' दिव्या मलिक जागरूकता के साथ ही 15 से 20 महिलाओं को अपने साथ जोड़कर पैड बनाने के काम से रोजगार भी दे रही हैं.

जानकारी देतीं पैड वुमन दिव्या मलिक.
सिकंदरा निवासी दिव्या की स्कूली शिक्षा देहरादून से हुई है. दिव्या ने एसजीआई से एमबीए किया मगर, नौकरी के बंधन में नहीं बंधी क्योंकि, शिक्षा के दौरान ही दिव्या कई एनजीओ से जुड़ गई थीं. इस दौरान दिव्या ने महिलाओं को माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों. दकियानुसी नियमों और असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करते हुए देखा था. दिव्या मलिक बताती हैं कि यहीं से अपने जीवन का उद्देश्य बनाया कि इसको लेकर समाज को जागरूक करेंगीं. इसके बाद सन् 2015 में पश्चिमपुरी में अपनी सेनेटरी पैड बनाने की यूनिट स्थापित की. दिव्या बताती हैं कि गांव, मोहल्ले, स्कूल-कॉलेज में कार्यशालाएं भी करती हूं. वहां पर किशोरी, महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता के की जानकारी दी जाती है. माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान नहीं रखने पर किशोरी और महिलाओं को यूटीआई और सर्वाइकल कैंसर जैसी बीमारी होती है. इस बारे में जागरुक किया जाना बेहद जरूरी है. जिले में आशा बहू और स्कूल-काॅलेज के साथ मिलकर काम करतीं हैं. वह अपनी कार्यशालाओं में किशोरी और महिलाओं को फ्री में पैड वितरित करतीं हैं. इसके साथ ही उन्होंने छात्राओं के लिए दो व चार पैड के खास पैकेट तैयार किए हैं. दो पैड के पैकेट की कीमत सिर्फ दस रुपए है जो बाजार में मिलने वाले पैड की कीमत के मुकाबले कम है. आसान नहीं था सफरदिव्या बतातीं हैं कि उनका यह सफर आसान नहीं था. आज भी समाज में माहवारी पर कोई खुलकर बात नहीं करता है. अभिभावक भी बेटियों से इस विषय पर बात करने से कतराते हैं. उन्होंने देखा कि देश की 71 प्रतिशत लड़कियों को आज भी पहले मासिक धर्म से पूर्व जानकारी नहीं होती है. जब उन्होंने यूनिट लगाने के लिए लोगों से मुलाकात की तो लड़की होने के नाते वे बात ही नहीं करते थे. दिव्या कहती है कि, मुश्किलों से जूझना इतना आसान नहीं है. यह एक ऐसी चीज है, जिसे हर कोई छिपाना चाहता है. आज भी लोग इसे अभिशाप मानते हैं लेकिन, मैं उन्हें यह अहसास कराना चाहती हूं कि, माहवारी जीवन के अस्तित्व के लिए वरदान है. माता-पिता ने किया सहयोगदिव्या मलिक बताती हैं कि पिता जीएस मलिक का सिलिका जैल का पारिवारिक व्यापार है. मां अंग्रेजी की शिक्षिका हैं. माता-पिता मेरे व्यापार में सहयोग कर रहे हैं. मेरे भाई- बहन विदेश में रहते हैं. मेरे सैनेटरी पैड यूनिट का आज टर्नओवर 60 लाख रुपए तक पहुंच गया है जबकि, कोरोना काल में कारोबार लड़खड़ाया था.ये भी पढ़ेंः सुलतानपुर में आरिफ की तरह अफरोज की भी सारस से दोस्ती, मुकदमा दर्ज
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