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कैद में बन गए हुनरमंद, सलाखों के पीछे से लिख रहे नई इबारत

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Published : Feb 15, 2021, 9:34 PM IST

आगरा सेंट्रल जेल में 7 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी रचनात्मकता की नई इबारत लिख रहे हैं. अपराध करने और हथियार उठाने वाले हाथ आज लकड़ी तराशने का हुनर सीखकर हुनरमंद हो गए हैं. इन हुनरमंद हाथों की कारीगरी आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के करीब 18 से ज्यादा जिलों की अदालतों में सराही जा रही है.

हुनरमंद कैदी.
हुनरमंद कैदी.

आगराः आगरा सेंट्रल जेल में इस समय करीब 30 कैदी फर्नीचर उद्योग से जुड़े हैं. जेल प्रशासन ने कैदियों के पुर्नवास की योजना के तहत फर्नीचर उद्योग शुरूआत की थी. इसका मकसद बंदियों के सजा काटकर बाहर निकलने के बाद उन्हें पुर्नस्थापित करना है. भले ही 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते जहां सारे उद्योग मंदी की मार से जूझे. वहीं, जेल में हुनरमंद कैदियों ने करीब एक करोड़ रुपये का फर्नीचर बनाकर बेचा है.

हुनरमंद कैदी.

पांच हजार रुपये कमा रहा हूं

बंदी मुख्तार अली का कहना है कि वह ग्यारह साल से यहां पर है. फर्नीचर बनाने का काम वह पहले ही करता था. यहां पर भी यह काम करने लगा. फर्नीचर बनाकर जो मेहनताना मिलता है. उससे अपना खर्चा निकालकर परिवारों को भी रुपये भेज देता हुं. अब चार से पांच हजार रुपये हर माह कमा लेता हूं.

आगरा सेंट्रल जेल.
आगरा सेंट्रल जेल.

दूसरे बंदियों को बना रहे हनुरमंद

कैदी इसरार ने बताया कि, मैं 12 साल से जेल में हूं. हम अब दूसरे बंदियों को भी हुनरबंद बना रहे हैं. जो कमा रहे हैं. उसे घर भिजवा देते हैं. अब अफसोस होता है, अपने किए पर. ऐसा नहीं किया होता तो आज जेल में नहीं होते. अपने परिवार के साथ रहते. यहां नहीं रहना पडता है. अब पछतावा हो रहा है.

लकड़ी को आकार देते कैदी.
लकड़ी को आकार देते कैदी.

एक करोड़ से ज्यादा के फर्नीचर बेचा

आगरा सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि, बीते साल 2020 में एक करोड़ से ज्यादा के फर्नीचर की बिक्री आगरा सेंट्रल जेल से की गई है. इसके साथ ही जून में अनलाॅक होने के बाद अक्टूबर के दौरान सेंट्रल जेल के कैदियों को 53 लाख रुपये से ज्यादा का फर्नीचर बनाने का आर्डर मिला. उसे तैयार करके झांसी, ललितपुर, गौतमबुद्ध नगर, हाथरस की अदालतों को भेजा गया है. अभी और बंदी भी चयनित करके उन्हें भी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना प्रशिक्षित किया जाएगा.

सात हजार रुपये कमा रहे बंदी

आगरा सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि, जेल मैन्युअल के मुताबिक, फर्नीचर उद्योग से जुड़े हुनरमंद कैदियों को 40 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है. वहीं, अर्ध कुशल कारीगर को 30 और अकुशल कारीगर को 25 रुपये दैनिक मजदूरी मिलती है. आगरा सेंट्रल जेल में फर्नीचर उद्योग से इस समय दो दर्जन से ज्यादा बंदी जुड़े हुए हैं. बंदी कल्याणकारी सहकारी समिति में पंजीकृत यह बंदी 5 से लेकर 7 हजार रुपये मासिक कमा रहे हैं. इससे जहां उनका खर्च आसानी से चल रहा है, वहीं परिजनों को भी रुपये भेज रहे हैं.

फर्नीचर बनाता कैदी.
फर्नीचर बनाता कैदी.

यह फर्नीचर बना रहे कैदी

आगरा सेंट्रल जेल के हुनरमंद कैदी अब कुर्सी, मेज, गर्वनर कुर्सी, स्टील बुक रैक, आफिस टेबल, आफिस स्टील अलमारी, कंप्यूटर टेबल, स्टील फ्रेम स्टूल, हाफ बैक कुर्सी, फुल बैक कुर्सी, सेंटर टेबल जैसे फर्नीचर को बना रहे हैं. जिसकी गुणवत्ता का स्तर बेहतर है. अभी तक फर्नीचर को लेकर कहीं से कोई भी शिकायत नहीं मिली है.

बढ़ रही फर्नीचर की डिमांड

आगरा सेंट्रल जेल में ऑन डिमांड कैदी बेहतरीन डिजाइनर और मजबूत फर्नीचर बना रहे हैं. हुनरमंद कैदियों की हाथ की दस्तकारी के साथ ही फर्नीचर की गुणवत्ता भी खूब सराही जा रही है. इस वजह से जेल के अंदर बने फर्नीचर की डिमांड भी खूब बढ़ी है. इससे यह काम अब धीरे धीरे जेल में एक उद्योग बनता जा रहा है.

आगराः आगरा सेंट्रल जेल में इस समय करीब 30 कैदी फर्नीचर उद्योग से जुड़े हैं. जेल प्रशासन ने कैदियों के पुर्नवास की योजना के तहत फर्नीचर उद्योग शुरूआत की थी. इसका मकसद बंदियों के सजा काटकर बाहर निकलने के बाद उन्हें पुर्नस्थापित करना है. भले ही 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते जहां सारे उद्योग मंदी की मार से जूझे. वहीं, जेल में हुनरमंद कैदियों ने करीब एक करोड़ रुपये का फर्नीचर बनाकर बेचा है.

हुनरमंद कैदी.

पांच हजार रुपये कमा रहा हूं

बंदी मुख्तार अली का कहना है कि वह ग्यारह साल से यहां पर है. फर्नीचर बनाने का काम वह पहले ही करता था. यहां पर भी यह काम करने लगा. फर्नीचर बनाकर जो मेहनताना मिलता है. उससे अपना खर्चा निकालकर परिवारों को भी रुपये भेज देता हुं. अब चार से पांच हजार रुपये हर माह कमा लेता हूं.

आगरा सेंट्रल जेल.
आगरा सेंट्रल जेल.

दूसरे बंदियों को बना रहे हनुरमंद

कैदी इसरार ने बताया कि, मैं 12 साल से जेल में हूं. हम अब दूसरे बंदियों को भी हुनरबंद बना रहे हैं. जो कमा रहे हैं. उसे घर भिजवा देते हैं. अब अफसोस होता है, अपने किए पर. ऐसा नहीं किया होता तो आज जेल में नहीं होते. अपने परिवार के साथ रहते. यहां नहीं रहना पडता है. अब पछतावा हो रहा है.

लकड़ी को आकार देते कैदी.
लकड़ी को आकार देते कैदी.

एक करोड़ से ज्यादा के फर्नीचर बेचा

आगरा सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि, बीते साल 2020 में एक करोड़ से ज्यादा के फर्नीचर की बिक्री आगरा सेंट्रल जेल से की गई है. इसके साथ ही जून में अनलाॅक होने के बाद अक्टूबर के दौरान सेंट्रल जेल के कैदियों को 53 लाख रुपये से ज्यादा का फर्नीचर बनाने का आर्डर मिला. उसे तैयार करके झांसी, ललितपुर, गौतमबुद्ध नगर, हाथरस की अदालतों को भेजा गया है. अभी और बंदी भी चयनित करके उन्हें भी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना प्रशिक्षित किया जाएगा.

सात हजार रुपये कमा रहे बंदी

आगरा सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि, जेल मैन्युअल के मुताबिक, फर्नीचर उद्योग से जुड़े हुनरमंद कैदियों को 40 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है. वहीं, अर्ध कुशल कारीगर को 30 और अकुशल कारीगर को 25 रुपये दैनिक मजदूरी मिलती है. आगरा सेंट्रल जेल में फर्नीचर उद्योग से इस समय दो दर्जन से ज्यादा बंदी जुड़े हुए हैं. बंदी कल्याणकारी सहकारी समिति में पंजीकृत यह बंदी 5 से लेकर 7 हजार रुपये मासिक कमा रहे हैं. इससे जहां उनका खर्च आसानी से चल रहा है, वहीं परिजनों को भी रुपये भेज रहे हैं.

फर्नीचर बनाता कैदी.
फर्नीचर बनाता कैदी.

यह फर्नीचर बना रहे कैदी

आगरा सेंट्रल जेल के हुनरमंद कैदी अब कुर्सी, मेज, गर्वनर कुर्सी, स्टील बुक रैक, आफिस टेबल, आफिस स्टील अलमारी, कंप्यूटर टेबल, स्टील फ्रेम स्टूल, हाफ बैक कुर्सी, फुल बैक कुर्सी, सेंटर टेबल जैसे फर्नीचर को बना रहे हैं. जिसकी गुणवत्ता का स्तर बेहतर है. अभी तक फर्नीचर को लेकर कहीं से कोई भी शिकायत नहीं मिली है.

बढ़ रही फर्नीचर की डिमांड

आगरा सेंट्रल जेल में ऑन डिमांड कैदी बेहतरीन डिजाइनर और मजबूत फर्नीचर बना रहे हैं. हुनरमंद कैदियों की हाथ की दस्तकारी के साथ ही फर्नीचर की गुणवत्ता भी खूब सराही जा रही है. इस वजह से जेल के अंदर बने फर्नीचर की डिमांड भी खूब बढ़ी है. इससे यह काम अब धीरे धीरे जेल में एक उद्योग बनता जा रहा है.

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