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आगरा: प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वापस मिला नवजात, अब अस्पताल संचालक पर होगी कार्रवाई - new born baby sold in agra

यूपी के आगरा में अस्पताल का बिल न चुका पाने के कारण अस्पताल प्रशासन द्वारा एक दंपति से उसके नवजात शिशु को एक लाख रुपये में ले लेने के मामले का जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह ने संज्ञान लिया है. इस मामले में जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह के हस्तक्षेप के बाद पीड़ित परिवार को उनका बच्चा वापस मिल गया. साथ ही मामले में आशा और एएनएम को भी नोटिस जारी किया गया है.

प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वापस मिला नवजात.
प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वापस मिला नवजात.
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Published : Sep 2, 2020, 12:38 PM IST

आगरा: जिले के यमुना पार फेस 2 स्थित जेपी अस्पताल में एक गरीब परिवार की मजबूरी का फायदा उठाकर प्राइवेट अस्पताल द्वारा मंगलवार को उसके नवजात शिशु को बेचने का मामला सामने आया था. आरोप है कि डिलीवरी का पैसा न चुका पाने की वजह से डॉक्टर ने गरीब परिवार को पहले बच्चा नहीं दिया और फिर कागजों में अंगूठा लगवा कर नवजात को बेच दिया. यह मामला सामने आने के बाद प्रशासन ने इसमें हस्तक्षेप किया. इसके बाद आखिरकार देर रात बच्चे को गोद लेने वाले दीपक मंगल नामक व्यक्ति ने पीड़ित परिवार को उसका बच्चा सौंप दिया. बच्चा वापस पाकर परिवार की खुशी देखते ही बन रही थी. जिलाधिकारी ने मामले को संज्ञान में लेते हुए सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. एसीएम वीके गुप्ता और सीओ छत्ता को इस मामले की जांच दी गयी है. साथ ही स्वास्थ्य विभाग भी अब अस्पताल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है.

प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वापस मिला नवजात.
बता दें कि थाना एत्माउद्दौला के नराइच क्षेत्र के रहने वाले शिव चरण की पत्नी बबिता की डिलीवरी यमुना पार फेस-2 स्थित जेपी अस्पताल में हुई थी. डिलीवरी होने पर अस्पताल ने अपना बिल 35 हजार रुपये बताया था. पैसे न होने पर संचालिका सीमा गुप्ता ने परिवार पर दबाव बनाकर एक लाख में अपने कथित रिश्तेदार को बच्चा दिलवा दिया था. अस्पताल प्रशासन ने एक लाख में से अपना बिल काटकर शेष रकम परिवार को दे दी थी. मामला सुर्खियों में आने के बाद सीएमओ आरसी पांडे ने अस्पताल में जांच के लिए टीम भेजी थी. जांच टीम को वहां चौकीदार और मैनेजर ही मिले थे. चार मंजिला इमारत के प्रथम तल पर चार कमरों का अस्पताल चल रहा था. इस अस्पताल मे कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है और ग्राहक (मरीज) आने पर डॉक्टर बुला कर इलाज और ऑपरेशन किये जाते हैं. जानकारी मिली है कि अस्पताल में कोविड-19 की कोई गाइडलाइंस नहीं मानी जाती थी. बबिता की डिलीवरी से पहले भी उसकी कोविड जांच नहीं की गयी थी. बता दें कि पूर्व में आगरा के पारस अस्पताल द्वारा ऐसी गलती करने के कारण आगरा समेत आस पास के तमाम जिलों में कोरोना का संक्रमण फैल गया था. वहीं 2015 से अस्पताल का रजिस्ट्रेशन भी रिन्यू नहीं हुआ था. पूरे प्रकरण की जांच में स्वास्थ्य विभाग भी कठघरे में खड़ा हो रहा है क्योंकि आगरा का यमुना पार क्षेत्र ऐसे अस्पतालों की बड़ी मंडी बन चुका है. यहां तमाम अस्पताल बिना डॉक्टरों के वर्षों से इलाज कर रहे हैं. फिलहाल बच्चा वापस मिलने के बाद शिवचरण का परिवार बहुत खुश है. जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह के हस्तक्षेप के बाद उन्हें आखिरकार उनका बच्चा वापस मिल गया है. मामले में सीएमओ आरसी पांडे ने फोन पर बताया कि अस्पताल संचालक के खिलाफ विभाग द्वारा कानूनी कार्रवाई की जाएगी. मामले में आशा और एएनएम को भी नोटिस जारी किया गया है.

आगरा: जिले के यमुना पार फेस 2 स्थित जेपी अस्पताल में एक गरीब परिवार की मजबूरी का फायदा उठाकर प्राइवेट अस्पताल द्वारा मंगलवार को उसके नवजात शिशु को बेचने का मामला सामने आया था. आरोप है कि डिलीवरी का पैसा न चुका पाने की वजह से डॉक्टर ने गरीब परिवार को पहले बच्चा नहीं दिया और फिर कागजों में अंगूठा लगवा कर नवजात को बेच दिया. यह मामला सामने आने के बाद प्रशासन ने इसमें हस्तक्षेप किया. इसके बाद आखिरकार देर रात बच्चे को गोद लेने वाले दीपक मंगल नामक व्यक्ति ने पीड़ित परिवार को उसका बच्चा सौंप दिया. बच्चा वापस पाकर परिवार की खुशी देखते ही बन रही थी. जिलाधिकारी ने मामले को संज्ञान में लेते हुए सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. एसीएम वीके गुप्ता और सीओ छत्ता को इस मामले की जांच दी गयी है. साथ ही स्वास्थ्य विभाग भी अब अस्पताल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है.

प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वापस मिला नवजात.
बता दें कि थाना एत्माउद्दौला के नराइच क्षेत्र के रहने वाले शिव चरण की पत्नी बबिता की डिलीवरी यमुना पार फेस-2 स्थित जेपी अस्पताल में हुई थी. डिलीवरी होने पर अस्पताल ने अपना बिल 35 हजार रुपये बताया था. पैसे न होने पर संचालिका सीमा गुप्ता ने परिवार पर दबाव बनाकर एक लाख में अपने कथित रिश्तेदार को बच्चा दिलवा दिया था. अस्पताल प्रशासन ने एक लाख में से अपना बिल काटकर शेष रकम परिवार को दे दी थी. मामला सुर्खियों में आने के बाद सीएमओ आरसी पांडे ने अस्पताल में जांच के लिए टीम भेजी थी. जांच टीम को वहां चौकीदार और मैनेजर ही मिले थे. चार मंजिला इमारत के प्रथम तल पर चार कमरों का अस्पताल चल रहा था. इस अस्पताल मे कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है और ग्राहक (मरीज) आने पर डॉक्टर बुला कर इलाज और ऑपरेशन किये जाते हैं. जानकारी मिली है कि अस्पताल में कोविड-19 की कोई गाइडलाइंस नहीं मानी जाती थी. बबिता की डिलीवरी से पहले भी उसकी कोविड जांच नहीं की गयी थी. बता दें कि पूर्व में आगरा के पारस अस्पताल द्वारा ऐसी गलती करने के कारण आगरा समेत आस पास के तमाम जिलों में कोरोना का संक्रमण फैल गया था. वहीं 2015 से अस्पताल का रजिस्ट्रेशन भी रिन्यू नहीं हुआ था. पूरे प्रकरण की जांच में स्वास्थ्य विभाग भी कठघरे में खड़ा हो रहा है क्योंकि आगरा का यमुना पार क्षेत्र ऐसे अस्पतालों की बड़ी मंडी बन चुका है. यहां तमाम अस्पताल बिना डॉक्टरों के वर्षों से इलाज कर रहे हैं. फिलहाल बच्चा वापस मिलने के बाद शिवचरण का परिवार बहुत खुश है. जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह के हस्तक्षेप के बाद उन्हें आखिरकार उनका बच्चा वापस मिल गया है. मामले में सीएमओ आरसी पांडे ने फोन पर बताया कि अस्पताल संचालक के खिलाफ विभाग द्वारा कानूनी कार्रवाई की जाएगी. मामले में आशा और एएनएम को भी नोटिस जारी किया गया है.
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