हैदराबाद : जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखेंगे तब शायद उम्मीद है कि वह 50 साल से अधिक पुराने सबसे जटिल और हिंसक रहे सांप्रदायिक मुद्दे पर पूर्ण विराम लगा देंगे.
राम मंदिर का निर्माण हमेशा संघ परिवार के दिल के करीब रहा है. हाल के सभी चुनावी घोषणापत्रों में यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. हालांकि अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के बारे में संघ अस्पष्ट रहा है. ज्यादातर प्रयास गोलमेज वार्ता के आसपास रहे. उनमें से एक दर्जन से अधिक अंतरिम समय में आयोजित किए गए, लेकिन उनका कोई परिणाम नहीं निकला. अंतिम फैसले के लिए मंच निर्धारित करने के लिए प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को दूसरे कार्यकाल के लिए वापसी जरूरत थी. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उस मामले में सर्वसम्मति से सिर्फ 40 दिन में फैसला दे दिया, जो पांच दशकों तक नहीं किया जा सका था.
संघ परिवार ने राम मंदिर/बाबरी मस्जिद मुद्दे को 1980 के दशक की शुरुआत में हिंदुत्व एजेंडा के कारण चुना था. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने जनवरी 1984 में अयोध्या में सरयू नदी के किनारे संघ परिवार के कार्यकर्ताओं का विशाल प्रदर्शन किया.
इस प्रदर्शन का नारा था, 'ताला खोलो-तालो खोलो, जन्मभूमि का ताल खोलो'. भाजपा, विहिप के इस आंदोलन पर सवार हो गई. फरवरी 1986 में फैजाबाद की एक अदालत द्वारा राम जन्मभूमि के ताले खोलने और हिंदुओं को प्रार्थना का अधिकार देने की अनुमति ने विहिप आंदोलन को तेज कर दिया.
अगस्त 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि/बाबरी मस्जिद मामले में जमीन मालिकी के मुकदमा की सुनवाई शुरू कर दी.
फिर नवंबर 1989 में इस मामले के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया. आम चुनावों से पहले तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने विवादित जगह के पास पूजा करने के लिए अनुमति दे दी. विहिप ने मंदिर निर्माण के मुद्दे को लेकर उन्माद फैलाना शुरू कर दिया.
नवंबर 1990 में सरकार की रोक के बावजूद संघ परिवार के लाखों कार्यकर्ता अयोध्या पहुंचे. जब वे विवादित धर्मस्थल की ओर जाने लगे, तब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हिंसक भीड़ पर फायरिंग का आदेश दिया. पुलिस की गोलीबारी में 30 से अधिक लोग मारे गए.
बहरहाल, 1991 में लोकसभा चुनावों में भाजपा को बढ़त हासिल हुई, जिसमें उसने 45 सीटें जीतीं लेकिन विधानसभा में भाजपा ने 57 से बढ़कर 193 सीटों पर बढ़त बना ली. कांग्रेस का नेतृत्व सोच नहीं पा रहा था कि कैसे भाजपा के रथ को रोका जाए. सितंबर 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक आडवाणी की रथयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी और एक हिंदू लहर को उभरने में भारी मदद मिली.
हालांकि विवादित मामले में ताले खोलने सहित अधिकांश महत्वपूर्ण निर्णय कांग्रेस ने लिए, संघ परिवार हमेशा स्थिति का फायदा उठाने के लिए सतर्क रहा. प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के पास कम से कम संघ परिवार में सेंध लगाने की एक ठोस योजना थी. वह कमंडल का मुकाबला करने के लिए मंडल लाए. 7 अगस्त 1990 को वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और घोषणा की कि 27 प्रतिशत नौकरियों को अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित रखा जाएगा. मंडल योजना ने कुछ हद तक काम किया, लेकिन भाजपा के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने में वह विफल रहा.
6 दिसंबर, 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया. कार सेवकों द्वारा कई पत्रकारों को जमीन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया, उनके टेप रिकार्डर और कैमरे छीन लिए गए. चार घंटे में विशाल संरचना समूचा ढहा दिया गया. इस मामले में प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव की निष्क्रियता पर भी सवाल उठे.
1993 में पी.वी. नरसिम्हा राव ने विवादित स्थल के पास 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया. 1992 में विध्वंस के बाद विवादित स्थल पूरी तरह से खत्म हो गया था. जून 2009 में लिब्रहान आयोग ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती सहित 68 संघ परिवार के नेताओं पर आरोप लगाते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की.
30 सितंबर 2010 को एक और देशव्यापी हंगामा हुआ जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल का दोतरफा विभाजन करने का फैसला सुनाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 को इस फैसले पर रोक लगा दी.
जनवरी 2019 को, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की और मध्यस्थता का सुझाव दिया. मध्यस्थता प्रयासों की विफलता के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त, 2019 से दिन-प्रतिदिन की सुनवाई शुरू की और वादे के अनुसार 40वें दिन अपना फैसला सुनाया. अयोध्या में नए राम मंदिर की नींव पांच अगस्त को रखी जाएगी, जिसके निर्माण की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया है.
(दिलीप अवस्थी, वरिष्ठ पत्रकार)