इस्लामाबाद : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान लगातार पाकिस्तान की सरकार पर हमला कर रहे हैं. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष और पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान ने शुक्रवार को एक बार फिर पाकिस्तान सरकार और सत्ताधारी पार्टियों को आड़े हाथों लिया. उन्होंने पाकिस्तान सराकर के कामकाज के तरीकों पर टिप्पणी की. इमरान खान ने कहा कि सराकर के काम-काज के कारण विदेशों में पाकिस्तान का मजाक उड़ रहा है. उन्होंने वर्तमान में शामिल नेताओं को मसखरा कहा.
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उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पंजाब में जल्द चुनाव कराने के फैसले के संदर्भ में कहा कि इससे विदेशों में पाकिस्तान को लेकर अच्छा संदेश नहीं जायेगा. उन्होंने सत्ता में शामिल नेताओं को गुंडा कहा. उन्होंने कहा कि इन गुंडों को एक पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर झूठे एफआईआर कराने के सिवा और कोई काम नहीं सूझता. उन्होंने कहा कि एक पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर झूठे एफआईआर कराने से पाकिस्तान की छवी दुनिया भर में खराब हो रही है.
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बता दें कि इन दिनों इमरान खान सत्ताधारी गठबंधन के कुछ नेताओं को 'डर्टी हैरी' और 'साइकोपैथ' कहने के लिए मुकदमों का सामना कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व से निवेशकों को अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नहीं मान रही है. इससे खराब बात और क्या हो सकती है. उन्होंने कहा कि निवेशक पाकिस्तान में निवेश तभी करेंगे जब उन्हें कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली पर भरोसा होगा. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि बनाना रिपब्लिक का इससे बेहतर उदाहरण और क्या होगा.
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इमरान खान की यह टिप्पणी पाकिस्तान सरकार के पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बांदियाल से पद छोड़ने की मांग के बाद आयी है. बता दें कि पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल, न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर की तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) द्वारा पंजाब विधानसभा चुनाव आठ अक्टूबर तक स्थगित करने के कदम को चुनौती देने वाली पीटीआई की याचिका पर फैसला सुनाया था. और जल्द से जल्द चुनाव कराने को कहा था.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चुनाव में देरी अवैध है और दोनों प्रांतों में मतदान 30 अप्रैल से 15 मई के बीच होना चाहिए. इस फैसले को सरकार ने खारिज कर दिया. सरकार ने कहा कि यह एक अल्प मत वाला फैसला है. नेशनल असेंबली ने भी शीर्ष अदालत के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से सरकार के इनकार ने देश के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंता बढ़ा दी है.
(एएनआई)