लखनऊ: उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में पिछले तीन दशक से जातीय राजनीति निर्णायक बनती दिखाई दे रही है. मंडल कमीशन के साथ ही उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का उभार देखने को मिला. दोनों ही राजनीतिक दलों ने जातियों को राजनीति के केंद्र में रखा और विभिन्न जातियों की शासन व सरकार में हिस्सेदारी का सवाल उठाया और जातियों के ताने बाने पर सीधा प्रहार किया. जातियों में श्रेष्ठता के विभाजन को समाज और व्यवस्था में असमानता का कारण बताया. इसका परिणाम हुआ कि जातियों का रिश्ता जीत का कारक बन गया.
पांच साल पहले प्रदेश में चुनाव में विकास प्रमुख मुद्दा था, लेकिन अब जाति की गोलबंदी ही राजनीतिक दलों का लक्ष्य है. मैनपुरी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछड़ी जाति का फर्जी नेता होने का आरोप लगाया तो मोदी को भी अपनी जाति और दलित महापुरुषों के बारे में अपने विचार और काम गिनाने पड़े.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातियों का असर कितना प्रभावी है इसका अंदाजा उत्तर प्रदेश के सभी राजनीतिक दिग्गजों के बयानों से लगाया जा सकता है. मायावती और नरेंद्र मोदी के साथ ही समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भी जातीय चेतना को लेकर काफी मुखर हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान को लेकर वह पहले भी भाजपा पर तीखा हमला बोल चुके हैं. रविवार को उन्होंने एक बार फिर भाजपा पर जातीय अस्मिता को छेड़ने का आरोप लगाया और कहा कि हमें जाति क्यों याद दिलाई जा रही है.
आपको बता दें कि बसपा प्रमुख मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए कहा था कि मोदी पहले अगड़ी जाति में ही आते थे, लेकिन गुजरात में अपनी सरकार के चलते उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए और पिछड़ों का हक मारने के लिए अपनी अगड़ी जाति को पिछड़े वर्ग में शामिल करवा लिया था.