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वाराणसी में भीष्म चंडी देवी का अनोखा मंदिर, महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का अस्तित्व - महाभारत काल के गंगा पुत्र भीष्म

वाराणसी का भीष्म चंडी माता का मंदिर अति प्राचीन है. इसका वर्णन पुराणों में मिलता है. मान्यता यह भी है कि, महाभारत काल के गंगा पुत्र भीष्म ने भी कुछ दिनों तक यहां पर तपस्या की थी. इसी कारण इस मंदिर का नाम भी भीष्म मंदिर पड़ा है. आइए जानते हैं इस मंदिर का महत्व और कथाएं ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में.

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भीष्म चंडी देवी का अनोखा मंदिर
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Published : Sep 26, 2022, 5:20 PM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने प्राचीनता के लिए जानी जाती है. काशी में बहुत से प्राचीन मंदिर हैं. ऐसा ही एक मंदिर 12वीं सदी का है. यह मंदिर जिले के नदेसर स्थित आर्मी कैंट बोर्ड में स्थित है. यह मंदिर भीष्म चंडी मां के नाम से प्रसिद्ध है. महाभारत काल से भी इस मंदिर का संबंध है. मां वैष्णो चंडी का मंदिर सुबह मंगला आरती के साथ 5 बजे भोर में खोल दिया जाता है. इस दौरान तीन पहर की पूजा की जाती है. देर रात शयन आरती के बाद मां के मंदिर का पट बंद किया जाता है.

भीष्म ने यहां की थी तपस्या : मंगला प्रसाद चौबे ने बताया कि यह भीष्म चंडी माता का अति प्राचीन मंदिर है. इसका वर्णन पुराणों में मिलता है. स्कंद पुराण, देवी पुराण, शिव पुराण काशी खंड में इसका जिक्र है. मान्यता यह भी है कि महाभारत काल के गंगा पुत्र भीष्म ने भी कुछ दिनों तक यहां पर तपस्या की है. इसी कारण इस मंदिर का नाम भीष्म मंदिर पड़ा है. बताया जाता है कि अंबा, अंबिका, अंबालिका को भीष्म काशी से ले गए थे. भीष्म ने यह प्रतिज्ञा की थी कि अगर किसी ने मेरा विरोध नहीं किया तो मैं चार दिशा में 4 शिवलिंग की स्थापना करूंगा. सबसे पहले उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के अंदर शनि देव मंदिर, दूसरा शिव मंदिर बहेलिया टोला में स्थापित किया. तीसरा भीष्म शिवलिंग हनुमान घाट पर स्थापित किया और चौथा चंदेश्वर महादेव स्थापित किया. चंदेश्वर महादेव के पास ही भीष्म महादेव का शिवलिंग है.

मंदिर पुजारी मंगला प्रसाद चौबे ने दी जानकारी

मुगल आततायी के क्रूरता का प्रमाण दे रहा मंदिर

महाज्ञानी केदारनाथ व्यास ने भी अपनी पुस्तक में स्पष्ट रूप से बताया है कि काशी दर्शन में चंडी माता का विग्रह बहुत ही ताकतवर है. इसके बारे में लिखा गया है कि यह मंदिर 12वीं सदी का है. 1660 और 1663 में मुगल आततायियों ने बहुत सी मूर्तियों को तोड़ा है. इसे पीछे से देखेंगे तो मूर्ति आज भी लगी है. सभी मूर्तियां विखंडित हैं. मंदिर के पीछे दीवारों पर साफ तौर पर नजर आती हैं. आज भी मंदिर अपने पुराने स्थल पर है. पुजारी ने बताया कि 41 दिन सच्ची श्रद्धा भाव से मां का दर्शन पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. भक्त यहां मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर नारियल बांधते हैं और अपना कलेवर छुड़ाते हैं. साथ ही हलवा व पूड़ी का मां को भोग लगाते हैं. 41 दिन दर्शन करने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं. लेकिन, वह कार्य धर्म युक्त होना चाहिए.

सरकार से मांग : यह मंदिर नदेसर स्थित कैंटोंमेंट में स्थित है. पुजारी ने बताया कि सरकार से यह मांग है कि यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं. आने वाले यात्रियों को सुविधा दी जाए. मां का एक ऊंचा बुर्ज बने. इसमें बहुत सी अड़चनें आ रही हैं. कैंटोनमेंट बोर्ड का अर्चन के लिए बहुत संघर्ष किया गया. लोग इस मंदिर को दूर करना चाहते थे. बहुत दिनों तक यहां घंटी बजाना बंद था. अब स्थिति सामान्य है. लेकिन, मंदिर का कायाकल्प होना चाहिए. भक्त रवि तिवारी ने बताया कि, मां चंडिका के मंदिर में हमेशा आते हैं.जब भी फुर्सत मिलती है मां के दरबार में आ जाते हैं. यहां पर शांति मिलती है.

इसे भी पढ़े-शारदीय नवरात्रि 2022: हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है मां विंध्यवासिनी मंदिर, आधी रात से ही आने लगे भक्त

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वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने प्राचीनता के लिए जानी जाती है. काशी में बहुत से प्राचीन मंदिर हैं. ऐसा ही एक मंदिर 12वीं सदी का है. यह मंदिर जिले के नदेसर स्थित आर्मी कैंट बोर्ड में स्थित है. यह मंदिर भीष्म चंडी मां के नाम से प्रसिद्ध है. महाभारत काल से भी इस मंदिर का संबंध है. मां वैष्णो चंडी का मंदिर सुबह मंगला आरती के साथ 5 बजे भोर में खोल दिया जाता है. इस दौरान तीन पहर की पूजा की जाती है. देर रात शयन आरती के बाद मां के मंदिर का पट बंद किया जाता है.

भीष्म ने यहां की थी तपस्या : मंगला प्रसाद चौबे ने बताया कि यह भीष्म चंडी माता का अति प्राचीन मंदिर है. इसका वर्णन पुराणों में मिलता है. स्कंद पुराण, देवी पुराण, शिव पुराण काशी खंड में इसका जिक्र है. मान्यता यह भी है कि महाभारत काल के गंगा पुत्र भीष्म ने भी कुछ दिनों तक यहां पर तपस्या की है. इसी कारण इस मंदिर का नाम भीष्म मंदिर पड़ा है. बताया जाता है कि अंबा, अंबिका, अंबालिका को भीष्म काशी से ले गए थे. भीष्म ने यह प्रतिज्ञा की थी कि अगर किसी ने मेरा विरोध नहीं किया तो मैं चार दिशा में 4 शिवलिंग की स्थापना करूंगा. सबसे पहले उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के अंदर शनि देव मंदिर, दूसरा शिव मंदिर बहेलिया टोला में स्थापित किया. तीसरा भीष्म शिवलिंग हनुमान घाट पर स्थापित किया और चौथा चंदेश्वर महादेव स्थापित किया. चंदेश्वर महादेव के पास ही भीष्म महादेव का शिवलिंग है.

मंदिर पुजारी मंगला प्रसाद चौबे ने दी जानकारी

मुगल आततायी के क्रूरता का प्रमाण दे रहा मंदिर

महाज्ञानी केदारनाथ व्यास ने भी अपनी पुस्तक में स्पष्ट रूप से बताया है कि काशी दर्शन में चंडी माता का विग्रह बहुत ही ताकतवर है. इसके बारे में लिखा गया है कि यह मंदिर 12वीं सदी का है. 1660 और 1663 में मुगल आततायियों ने बहुत सी मूर्तियों को तोड़ा है. इसे पीछे से देखेंगे तो मूर्ति आज भी लगी है. सभी मूर्तियां विखंडित हैं. मंदिर के पीछे दीवारों पर साफ तौर पर नजर आती हैं. आज भी मंदिर अपने पुराने स्थल पर है. पुजारी ने बताया कि 41 दिन सच्ची श्रद्धा भाव से मां का दर्शन पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. भक्त यहां मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर नारियल बांधते हैं और अपना कलेवर छुड़ाते हैं. साथ ही हलवा व पूड़ी का मां को भोग लगाते हैं. 41 दिन दर्शन करने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं. लेकिन, वह कार्य धर्म युक्त होना चाहिए.

सरकार से मांग : यह मंदिर नदेसर स्थित कैंटोंमेंट में स्थित है. पुजारी ने बताया कि सरकार से यह मांग है कि यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं. आने वाले यात्रियों को सुविधा दी जाए. मां का एक ऊंचा बुर्ज बने. इसमें बहुत सी अड़चनें आ रही हैं. कैंटोनमेंट बोर्ड का अर्चन के लिए बहुत संघर्ष किया गया. लोग इस मंदिर को दूर करना चाहते थे. बहुत दिनों तक यहां घंटी बजाना बंद था. अब स्थिति सामान्य है. लेकिन, मंदिर का कायाकल्प होना चाहिए. भक्त रवि तिवारी ने बताया कि, मां चंडिका के मंदिर में हमेशा आते हैं.जब भी फुर्सत मिलती है मां के दरबार में आ जाते हैं. यहां पर शांति मिलती है.

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