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वाराणसी में गणेश चतुर्थी की तैयारियां तेज, काशी में नजर आएगी बंगाल की कला

वाराणसी में गणेश चतुर्थी की तैयारियां (Preparations for ganesh chaturthi) तेज कर दी गई हैं. अब काशी में पश्चिम बंगाल की कला (Art of bengal seen in kashi) देखने को मिलेगी.

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Published : Aug 27, 2022, 12:44 PM IST

वाराणसी: धर्म नगरी काशी में प्रत्येक त्यौहार को उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसकी एक तस्वीर गणेश चतुर्थी के पर्व पर देखने को मिलेगी. ऐसे में काशी के बाजारों में एक अलग ही रौनक छाई हुई है. इस बार बाजारों में भगवान श्री गणेश (Lord Shri Ganesh) की खास तरह की प्रतिमाएं आई हैं, जो कि लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हैं.

काशी में गणेश उत्सव (Ganesh festival in Kashi) हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. गणेश उत्सव के नजदीक आने पर बाजार सज गए हैं. बाजारों में गणेश जी की कई तरह की प्रतिमाएं लोगों के मन को मोह रही हैं. वहीं, इस बार बाजार में गणेश जी की एक खास तरीके की प्रतिमाएं भी लोगों को पसंद आ रही हैं. यह प्रतिमाएं पश्चिम बंगाल के कुछ खास कारीगरों ने बनाई हैं. इसको बनाने में कारीगरों को काफी बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

जानकारी देतीं महिला दुकानदार.
गणेश उत्सव में पश्चिम बंगाल की कला: बाजारों में सजी गणेश जी की मूर्तियां डोकरा शिल्प कला (dokra craft art of west bengal) से बनी हुई हैं. यह पश्चिम बंगाल की हजारों साल पुरानी शिल्प कला है. इसके तहत मिट्टी, धातु और मोम की मदद से मूर्तियां, गहनों को बनाया जाता है. पश्चिम बंगाल के अलावा आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश, उड़ीसा में भी आदिवासी जनजातीय इस कला की मूर्तियों को बनाते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने दुकानदार से जानकारी ली. सौरनली ने बताया कि पहली बार काशी में इस तरीके की मूर्तियों को लाया गया है, जिसमें गणेश जी की अलग-अलग मुद्राओं की मूर्तियां शामिल हैं.


यह भी पढ़ें: काशी की इस तीसरी आंख से जनता को मिल रही बड़ी मदद, चेहरों पर लौट रही खुशी

उन्होंने बताया कि इसकी प्रक्रिया बेहद ही कठिन मानी जाती है. इसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है. सबसे पहले मोम के सांचे को तैयार किया जाता है. उसके बाद इस सांचे को मिट्टी के सांचे से ढक दिया जाता है और फिर मोम के सांचे में पहले से बने हुए छेद में धातु को पिघलाकर डाला जाता है. उसके बाद धातु के सख्त होने पर मिट्टी और मोम को तोड़कर धातु की वस्तु को बाहर निकाला जाता है, तब इसे तराश करके मूर्ति तैयार की जाती हैं. वहीं, ग्राहकों ने बताया कि यह बेहद अच्छी और नई तरीके की मूर्ति है. इस बार हम अपने घर में इन्हीं गणेश जी का प्रयोग करेंगे. ये धातु और मिट्टी की वजह से शुद्ध हैं. इन मूर्तियों की कीमत भी साधारण मूर्तियों की तरह ही है.

PM की काशी है मिनी भारत: महादेव की नगरी काशी को मिनी भारत (Kashi mini india) कहा जाता है. यहां पर हर धर्म के साथ अलग-अलग हिस्सों की कलाएं भी देखने को मिलती हैं और इनमें से एक डोकरा की कला भी अब काशी में प्रवेश कर चुकी है. पीएम मोदी की काशी के जरिए इस कला को एक नई संजीवनी मिलेगी और इससे जुड़े कारीगरों को भी खासा लाभ होगा.

यह भी पढ़ें: वाराणसी में खतरे के निशान के ऊपर पहुंची गंगा, अब सड़क पर हो रही है गंगा आरती

वाराणसी: धर्म नगरी काशी में प्रत्येक त्यौहार को उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसकी एक तस्वीर गणेश चतुर्थी के पर्व पर देखने को मिलेगी. ऐसे में काशी के बाजारों में एक अलग ही रौनक छाई हुई है. इस बार बाजारों में भगवान श्री गणेश (Lord Shri Ganesh) की खास तरह की प्रतिमाएं आई हैं, जो कि लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हैं.

काशी में गणेश उत्सव (Ganesh festival in Kashi) हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. गणेश उत्सव के नजदीक आने पर बाजार सज गए हैं. बाजारों में गणेश जी की कई तरह की प्रतिमाएं लोगों के मन को मोह रही हैं. वहीं, इस बार बाजार में गणेश जी की एक खास तरीके की प्रतिमाएं भी लोगों को पसंद आ रही हैं. यह प्रतिमाएं पश्चिम बंगाल के कुछ खास कारीगरों ने बनाई हैं. इसको बनाने में कारीगरों को काफी बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

जानकारी देतीं महिला दुकानदार.
गणेश उत्सव में पश्चिम बंगाल की कला: बाजारों में सजी गणेश जी की मूर्तियां डोकरा शिल्प कला (dokra craft art of west bengal) से बनी हुई हैं. यह पश्चिम बंगाल की हजारों साल पुरानी शिल्प कला है. इसके तहत मिट्टी, धातु और मोम की मदद से मूर्तियां, गहनों को बनाया जाता है. पश्चिम बंगाल के अलावा आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश, उड़ीसा में भी आदिवासी जनजातीय इस कला की मूर्तियों को बनाते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने दुकानदार से जानकारी ली. सौरनली ने बताया कि पहली बार काशी में इस तरीके की मूर्तियों को लाया गया है, जिसमें गणेश जी की अलग-अलग मुद्राओं की मूर्तियां शामिल हैं.


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उन्होंने बताया कि इसकी प्रक्रिया बेहद ही कठिन मानी जाती है. इसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है. सबसे पहले मोम के सांचे को तैयार किया जाता है. उसके बाद इस सांचे को मिट्टी के सांचे से ढक दिया जाता है और फिर मोम के सांचे में पहले से बने हुए छेद में धातु को पिघलाकर डाला जाता है. उसके बाद धातु के सख्त होने पर मिट्टी और मोम को तोड़कर धातु की वस्तु को बाहर निकाला जाता है, तब इसे तराश करके मूर्ति तैयार की जाती हैं. वहीं, ग्राहकों ने बताया कि यह बेहद अच्छी और नई तरीके की मूर्ति है. इस बार हम अपने घर में इन्हीं गणेश जी का प्रयोग करेंगे. ये धातु और मिट्टी की वजह से शुद्ध हैं. इन मूर्तियों की कीमत भी साधारण मूर्तियों की तरह ही है.

PM की काशी है मिनी भारत: महादेव की नगरी काशी को मिनी भारत (Kashi mini india) कहा जाता है. यहां पर हर धर्म के साथ अलग-अलग हिस्सों की कलाएं भी देखने को मिलती हैं और इनमें से एक डोकरा की कला भी अब काशी में प्रवेश कर चुकी है. पीएम मोदी की काशी के जरिए इस कला को एक नई संजीवनी मिलेगी और इससे जुड़े कारीगरों को भी खासा लाभ होगा.

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