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Papankusha Ekadashi 2022: पापों से मुक्ति के लिए ऐसे करें श्रीहरि विष्णु की पूजा - papankusha ekadashi shubh muhurat

पापांकुशा एकादशी व्रत (Papankusha Ekadashi 2022) आज है. पापांकुशा एकादशी का महत्व जानने के लिए ईटीवी भारत ने ज्योतिषविद् विमल जैन से खास बात की.

ईटीवी भारत
papankusha ekadashi 2022
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Published : Oct 6, 2022, 6:40 AM IST

वाराणसी: भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मग्रन्थों में सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है. तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है. पापांकुशा एकादशी पर मौन रहकर भगवान श्री पद्मनाभ की पूजा-अर्चना करने का विधान है. पापांकुशा एकादशी के व्रत के दौरान भगवान श्रीविष्णु की उपासना से मन की पवित्रता के साथ ही कई सद्गुणों का समावेश होता है.

पापांकुशा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि आश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 5 अक्टूबर बुधवार को दिन में 12 बजकर 01 मिनट पर लग चुकी है जो कि 6 अक्टूबर, गुरुवार को प्रातः 9 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. उदयातिथि में 6 अक्टूबर, गुरुवार को एकादशी तिथि होने के फलस्वरूप पापांकुशा एकादशी का व्रत आज ही रखा जाएगा.

पापांकुशा एकादशी व्रत पूजन विधि: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के दिन व्रतकर्ता को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा स्नानादि करना चाहिए. गंगा स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् पापांकुशा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के दिन प्रातः काल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. व्रत का पारण दूसरे दिन द्वादशी तिथि को स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी- देवता तथा भगवान श्रीपद्मनाभ एवं भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना करने के पश्चात् किया जाता है. पापांकुशा एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है.

क्या करें क्या न करें: आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध हैं. विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है. व्रत कर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए. विधि-विधानपूर्वक पापांकुशा एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है. अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है. आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए.


पापांकुशा एकादशी व्रत कथा: प्राचीनकाल में विन्ध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया निवास करता था. जिसने अपनी सारी जिन्दगी हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान और मिथ्याभाषण आदि में व्यतीत कर दी. उसके जीवन का जब अन्तिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी. यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अन्तिम दिन है. मृत्युभय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा. महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उसे आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधि-विधानपूर्वक व्रत करने को कहा, बहेलिया महापात की व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान विष्णु की कृपा से विष्णुलोक को गया. उधर यमदूत इस चमत्कार को देखकर हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन (बहेलिया) के यमलोक वापस लौट गए.

ये भी पढ़ें- फिल्म आदिपुरुष के टीजर पर BJP और हिंदू महासभा नाराज, साक्षी महाराज बोले- जनता करे बहिष्कार

वाराणसी: भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मग्रन्थों में सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है. तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है. पापांकुशा एकादशी पर मौन रहकर भगवान श्री पद्मनाभ की पूजा-अर्चना करने का विधान है. पापांकुशा एकादशी के व्रत के दौरान भगवान श्रीविष्णु की उपासना से मन की पवित्रता के साथ ही कई सद्गुणों का समावेश होता है.

पापांकुशा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि आश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 5 अक्टूबर बुधवार को दिन में 12 बजकर 01 मिनट पर लग चुकी है जो कि 6 अक्टूबर, गुरुवार को प्रातः 9 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. उदयातिथि में 6 अक्टूबर, गुरुवार को एकादशी तिथि होने के फलस्वरूप पापांकुशा एकादशी का व्रत आज ही रखा जाएगा.

पापांकुशा एकादशी व्रत पूजन विधि: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के दिन व्रतकर्ता को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा स्नानादि करना चाहिए. गंगा स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् पापांकुशा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के दिन प्रातः काल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. व्रत का पारण दूसरे दिन द्वादशी तिथि को स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी- देवता तथा भगवान श्रीपद्मनाभ एवं भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना करने के पश्चात् किया जाता है. पापांकुशा एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है.

क्या करें क्या न करें: आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध हैं. विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है. व्रत कर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए. विधि-विधानपूर्वक पापांकुशा एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है. अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है. आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए.


पापांकुशा एकादशी व्रत कथा: प्राचीनकाल में विन्ध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया निवास करता था. जिसने अपनी सारी जिन्दगी हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान और मिथ्याभाषण आदि में व्यतीत कर दी. उसके जीवन का जब अन्तिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी. यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अन्तिम दिन है. मृत्युभय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा. महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उसे आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधि-विधानपूर्वक व्रत करने को कहा, बहेलिया महापात की व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान विष्णु की कृपा से विष्णुलोक को गया. उधर यमदूत इस चमत्कार को देखकर हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन (बहेलिया) के यमलोक वापस लौट गए.

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