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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित की गई व्याख्यानमाला

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Published : Jul 4, 2020, 3:59 AM IST

यूपी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विज्ञान अनुसंधान केन्द्र के तत्वाधान में वेद व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. विषय था ज्योतिर्विज्ञान सामाजिक चुनौतियां. जिसमें सभी वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे.

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सम्पूर्णानंद विश्वविद्याल में संस्कृत व्याख्यान

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र के तत्वावधान में 'ज्योतिर्विज्ञान सामाजिक चुनौतियां' विषय पर वेद व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. जहां सभी वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्मा विज्ञान संकाय के आचार्य एवं वरिष्ठ शास्त्र वैज्ञानिक आचार्य, शत्रुध्न त्रिपाठी ने कहा कि वेदांग को नेत्र के रूप में स्थान दिया गया है. उसके द्वारा ही वेदों को निरूपित किया गया है. वेद में निहित काल का निरूपण ज्योतिष शास्त्र से ही किया जाता है.

उन्होंने कहा कि ग्रह गणना में जब किसी कालखंड के जितने टुकड़े करेंगे तो उतनी ही त्रुटियां या दोष होंगे. इसको दूर करने के लिए संगणक की सहायता लेंगे तो यह आसान हो जाएगा. ग्रह गणना हमारी बहुत बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि शास्त्रीय चुनौतियों में हमारे पंचांग की भी भिन्नता है. इसकी गणना करना बहुत ही कठिन हो जाता है. अच्छे शोध अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं. इससे भी चुनौतियों का सामना करना होता है. उच्च शोध कर नए आयाम तक चलना हमारी दृष्टि होनी चाहिए.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम एक उत्पत्ति को तैयार कर परोस देते हैं. यह भी एक चुनौती है. प्रायोगिक चुनौती सबसे बड़ी समस्या के रूप में आज की परिस्थितियों में एक है. आज हम प्रायोगिक ज्ञान के अभाव में उससे बहुत दूर होते जा रहे हैं. बिना परीक्षण के कैसे किसी बिंदु की सार्थकता सिद्ध होगी. वेधशालाओं का उपयोग आज ही देखने का एकमात्र साधन हो गया है. जिसका प्रयोग ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न आयामों को तलाश करने के लिए होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आज संहिता का लोप हो रहा है. गुरु परंपरा की कमी भी बहुत बड़ी चुनौती है. गुरु ही जीवन की सार्थकता का ज्ञान कराते हैं. इसी परंपरा को विस्मृत करते जा रहे हैं. इसके साथ ही सामाजिक चुनौती भी है. जिसमें तमाम झोलाछाप एवं तथाकथित ज्योतिषियों के द्वारा टेलीविजन एवं सोशल मीडिया पर अपने भ्रामक गणना और संकुचित ज्ञान से ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में बहुत भ्रामक स्थिति उत्पन्न कर दी जा रही है.आज विभिन्न विश्वविद्यालय में अनेक तरह के पाठ्यक्रम तथा छात्रों का आधा अधूरा अध्ययन भी एक बड़ी चुनौती है.

इस दौरान व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर राजा राम शुक्ल ने कहा कि ज्योतिर्विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र दोनों में गणना होती है. ज्योतिषशास्त्र में जो वर्तमान परिस्थितियों में चुनौतियां हैं, उसका निदान ऐसे व्याख्यान और कार्यशाला आयोजित कर निष्कर्षों से उचित परिणाम तक पहुंच पाएंगे. इसलिए जन उपयोगी बनाने के लिए यह व्यख्यान डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित किया गया है. ताकि सभी लोग इसका लाभ ले सकें और सुरक्षित रह सकें.

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र के तत्वावधान में 'ज्योतिर्विज्ञान सामाजिक चुनौतियां' विषय पर वेद व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. जहां सभी वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्मा विज्ञान संकाय के आचार्य एवं वरिष्ठ शास्त्र वैज्ञानिक आचार्य, शत्रुध्न त्रिपाठी ने कहा कि वेदांग को नेत्र के रूप में स्थान दिया गया है. उसके द्वारा ही वेदों को निरूपित किया गया है. वेद में निहित काल का निरूपण ज्योतिष शास्त्र से ही किया जाता है.

उन्होंने कहा कि ग्रह गणना में जब किसी कालखंड के जितने टुकड़े करेंगे तो उतनी ही त्रुटियां या दोष होंगे. इसको दूर करने के लिए संगणक की सहायता लेंगे तो यह आसान हो जाएगा. ग्रह गणना हमारी बहुत बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि शास्त्रीय चुनौतियों में हमारे पंचांग की भी भिन्नता है. इसकी गणना करना बहुत ही कठिन हो जाता है. अच्छे शोध अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं. इससे भी चुनौतियों का सामना करना होता है. उच्च शोध कर नए आयाम तक चलना हमारी दृष्टि होनी चाहिए.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम एक उत्पत्ति को तैयार कर परोस देते हैं. यह भी एक चुनौती है. प्रायोगिक चुनौती सबसे बड़ी समस्या के रूप में आज की परिस्थितियों में एक है. आज हम प्रायोगिक ज्ञान के अभाव में उससे बहुत दूर होते जा रहे हैं. बिना परीक्षण के कैसे किसी बिंदु की सार्थकता सिद्ध होगी. वेधशालाओं का उपयोग आज ही देखने का एकमात्र साधन हो गया है. जिसका प्रयोग ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न आयामों को तलाश करने के लिए होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आज संहिता का लोप हो रहा है. गुरु परंपरा की कमी भी बहुत बड़ी चुनौती है. गुरु ही जीवन की सार्थकता का ज्ञान कराते हैं. इसी परंपरा को विस्मृत करते जा रहे हैं. इसके साथ ही सामाजिक चुनौती भी है. जिसमें तमाम झोलाछाप एवं तथाकथित ज्योतिषियों के द्वारा टेलीविजन एवं सोशल मीडिया पर अपने भ्रामक गणना और संकुचित ज्ञान से ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में बहुत भ्रामक स्थिति उत्पन्न कर दी जा रही है.आज विभिन्न विश्वविद्यालय में अनेक तरह के पाठ्यक्रम तथा छात्रों का आधा अधूरा अध्ययन भी एक बड़ी चुनौती है.

इस दौरान व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर राजा राम शुक्ल ने कहा कि ज्योतिर्विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र दोनों में गणना होती है. ज्योतिषशास्त्र में जो वर्तमान परिस्थितियों में चुनौतियां हैं, उसका निदान ऐसे व्याख्यान और कार्यशाला आयोजित कर निष्कर्षों से उचित परिणाम तक पहुंच पाएंगे. इसलिए जन उपयोगी बनाने के लिए यह व्यख्यान डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित किया गया है. ताकि सभी लोग इसका लाभ ले सकें और सुरक्षित रह सकें.

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