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भगवान विष्णु ने किया था काशी के कुंड का निर्माण, इसके जल में मौजूद है श्री हरि का पसीना - काशी के कुंड का निर्माण

वाराणसी में अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi in Varanasi) के मौके पर भक्तों ने काशी चक्र पुष्कारिणी मणिकर्णिका कुंड (Chakra Pushkarini Manikarnika Kund) में डुबकी लगाई. इस कुंड में भगवान श्री हरि विष्णु का पसीना मौजूद है.

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Published : Sep 9, 2022, 10:54 AM IST

वाराणसी: शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi in Varanasi) के मौके पर श्रद्धालुओं ने काशी के कुंड में आस्था की डुबकी लगाई. इस कुंड का निर्माण खुद भगवान श्री हरि विष्णु ने (Lord Vishnu had built Kund Kashi) किया था. इस कुंड में मौजूद जल आम नहीं है, बल्कि यह भगवान विष्णु का पसीना है. आज हम आपको उनसे जुड़ी कथा के बारे बताने जा रहे हैं, जिसके संदर्भ में बहुत कम लोग ही जानते हैं.

जानकारी देते महंत मणिकर्णिका कुंड

भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) स्वयं काशी में रहकर कठोर तप कर चुके हैं और इसी कठोर तप की वजह से काशी के मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat Varanasi) पर एक कुंड भी स्थापित है. जिसके बारे में यह बात पुराणों में वर्णित है, कि यहां पर मौजूद जल कोई आम जल नहीं बल्कि श्री हरि विष्णु का वह पसीना है, जो उन्होंने 60 हजार वर्षों तक की गई कठोर तपस्या के बाद संचय करके काशी में रखा है. इसी मान्यता के साथ स्कंद पुराण, शिव पुराण समेत कई अन्य पुराणों में वर्णित कथा आज भी बिल्कुल सत्य है और दूर-दूर से लोग काशी के इस चक्र पुष्कारिणी मणिकर्णिका कुंड (Chakra Pushkarini Manikarnika Kund) में डुबकी लगाने के लिए दूर-दूर से काशी पहुंचते हैं.

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काशी में खुद ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवाताओं ने निवास किया हैं. इस कुंड के महंत श्याम शंकर तिवारी का कहना है, कि काशी अपने आप में काफी पवित्र नगरी के रूप में जानी जाती है. लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है, कि काशी का चक्र पुष्कारिणी मणिकार्णिका कुंड काशी (Chakra Pushkarini Manikarnika Kund) के सबसे बड़े तीर्थ के रूप में स्थापित है, क्योंकि इस कुंड का निर्माण भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं अपने सुदर्शन चक्र से किया था.

पढें- Anant Chaturdashi 2022: अनंत चतुर्दशी की पूजा के बाद धारण करें ये विशेष धागा


भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) ने काशी में रहकर 60 हजार वर्षों तक तपस्या की थी और इसी कठोर तपस्या की वजह से उनके शरीर से निकलने वाले पसीने से सरोवर भर गया. जिसे आज भी संचय करके रखा गया है. सबसे बड़ी बात यह है, कि यह कुंड धरती पर गंगा के आगमन से पहले का है. यानी जब गंगा को भागीरथ धरती पर लेकर आए थे. उसके भी पहले इस कुंड का निर्माण श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu had built Kund Kashi) ने किया था, क्योंकि भगवान शंकर ने जब काशी को स्थापित किया था. उसके बाद सभी देवी-देवता यहां पर आकर इस रमणीय स्थान का आनंद लेते थे और इस पवित्र स्थल पर रहकर तपस्या करते थे और ध्यान लगाते थे. इस कुंड के बारे में पुराणों में वर्णित मंत्र भी है.

भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) ने भी काशी के इस स्थान पर तपस्या करके अपने शरीर से निकलने वाले पसीने से इस स्थान को तैयार किया. जिसकी वजह से यह पवित्र स्थान श्री हरि विष्णु के नाम से जाना जाता है. भीषण गर्मी में यह जल एकदम शीतल होता है और भयानक ठंड में यह जल बिल्कुल गर्म और गुनगुने पानी के समान होता है. अपने आप में इस स्थान की महत्ता इतनी है कि बिना यहां पर डुबकी लगाएं काशी यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता है.

मणिकर्णिका को तीर्थ (Manikarnika Ghat Varanasi) के रूप में जाना जाता है और यहां पर श्री हरि विष्णु की तरफ से इस स्थान के निर्माण के बाद काशी आने पर भगवान शंकर और माता पार्वती ने यहां पर डुबकी लगाई और उनके कानों के कुंडल इसमें गिर गया. भगवान शंकर की मणि इसमें गुम हो गई. जिसके बाद इस स्थान को मणिकर्णिका के नाम से जाना गया.


पढें- UP Gold Silver Rate: सोने चांदी की कीमत में बढ़ोतरी, जानें कितने बढ़े दाम

वाराणसी: शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi in Varanasi) के मौके पर श्रद्धालुओं ने काशी के कुंड में आस्था की डुबकी लगाई. इस कुंड का निर्माण खुद भगवान श्री हरि विष्णु ने (Lord Vishnu had built Kund Kashi) किया था. इस कुंड में मौजूद जल आम नहीं है, बल्कि यह भगवान विष्णु का पसीना है. आज हम आपको उनसे जुड़ी कथा के बारे बताने जा रहे हैं, जिसके संदर्भ में बहुत कम लोग ही जानते हैं.

जानकारी देते महंत मणिकर्णिका कुंड

भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) स्वयं काशी में रहकर कठोर तप कर चुके हैं और इसी कठोर तप की वजह से काशी के मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat Varanasi) पर एक कुंड भी स्थापित है. जिसके बारे में यह बात पुराणों में वर्णित है, कि यहां पर मौजूद जल कोई आम जल नहीं बल्कि श्री हरि विष्णु का वह पसीना है, जो उन्होंने 60 हजार वर्षों तक की गई कठोर तपस्या के बाद संचय करके काशी में रखा है. इसी मान्यता के साथ स्कंद पुराण, शिव पुराण समेत कई अन्य पुराणों में वर्णित कथा आज भी बिल्कुल सत्य है और दूर-दूर से लोग काशी के इस चक्र पुष्कारिणी मणिकर्णिका कुंड (Chakra Pushkarini Manikarnika Kund) में डुबकी लगाने के लिए दूर-दूर से काशी पहुंचते हैं.

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काशी में खुद ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवाताओं ने निवास किया हैं. इस कुंड के महंत श्याम शंकर तिवारी का कहना है, कि काशी अपने आप में काफी पवित्र नगरी के रूप में जानी जाती है. लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है, कि काशी का चक्र पुष्कारिणी मणिकार्णिका कुंड काशी (Chakra Pushkarini Manikarnika Kund) के सबसे बड़े तीर्थ के रूप में स्थापित है, क्योंकि इस कुंड का निर्माण भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं अपने सुदर्शन चक्र से किया था.

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भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) ने काशी में रहकर 60 हजार वर्षों तक तपस्या की थी और इसी कठोर तपस्या की वजह से उनके शरीर से निकलने वाले पसीने से सरोवर भर गया. जिसे आज भी संचय करके रखा गया है. सबसे बड़ी बात यह है, कि यह कुंड धरती पर गंगा के आगमन से पहले का है. यानी जब गंगा को भागीरथ धरती पर लेकर आए थे. उसके भी पहले इस कुंड का निर्माण श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu had built Kund Kashi) ने किया था, क्योंकि भगवान शंकर ने जब काशी को स्थापित किया था. उसके बाद सभी देवी-देवता यहां पर आकर इस रमणीय स्थान का आनंद लेते थे और इस पवित्र स्थल पर रहकर तपस्या करते थे और ध्यान लगाते थे. इस कुंड के बारे में पुराणों में वर्णित मंत्र भी है.

भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) ने भी काशी के इस स्थान पर तपस्या करके अपने शरीर से निकलने वाले पसीने से इस स्थान को तैयार किया. जिसकी वजह से यह पवित्र स्थान श्री हरि विष्णु के नाम से जाना जाता है. भीषण गर्मी में यह जल एकदम शीतल होता है और भयानक ठंड में यह जल बिल्कुल गर्म और गुनगुने पानी के समान होता है. अपने आप में इस स्थान की महत्ता इतनी है कि बिना यहां पर डुबकी लगाएं काशी यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता है.

मणिकर्णिका को तीर्थ (Manikarnika Ghat Varanasi) के रूप में जाना जाता है और यहां पर श्री हरि विष्णु की तरफ से इस स्थान के निर्माण के बाद काशी आने पर भगवान शंकर और माता पार्वती ने यहां पर डुबकी लगाई और उनके कानों के कुंडल इसमें गिर गया. भगवान शंकर की मणि इसमें गुम हो गई. जिसके बाद इस स्थान को मणिकर्णिका के नाम से जाना गया.


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