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कोख में मारी गईं 13 हजार बेटियों को मिला मोक्ष का अधिकार, काशी में आगमन ने किया विशेष अनुष्ठान

वाराणसी के गंगा तट दशाश्वमेध घाट पर गर्भ में मारी गईं बेटियों के मोक्ष की कामना के लिए आगमन सामाजिक संस्था ने वैदिक रीति रिवाज के साथ श्राद्ध कर्म किया.

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गर्भ में मारी गयी बेटियों के मोक्ष की कामना
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Published : Sep 20, 2022, 9:44 AM IST

Updated : Sep 20, 2022, 11:29 AM IST

वाराणसी: मोक्ष के शहर बनारस में गर्भ में मारी गईं अजन्मी बेटियों को मोक्ष का अधिकार मिला. वाराणसी के गंगा तट दशाश्वमेध घाट पर गर्भ में मारी गईं बेटियों के मोक्ष की कामना के लिए आगमन सामाजिक संस्था ने वैदिक रीति रिवाज के साथ श्राद्ध कर्म किया. आचार्य पं. दिनेश शंकर दुबे के आचार्यत्व में पांच ब्राह्मणों की उपस्थिति में यह विशेष अनुष्ठान हुआ है. संस्था के संस्थापक सचिव और श्राद्धकर्ता डॉ. संतोष ओझा ने 13 हजार बेटियों का पिंडदान किया. बताते चले कि संस्था हर साल पितृ पक्ष के मातृ नवमी तिथि को यह अनुष्ठान करती है.

बदलते दौर में जहां बेटियां समाज में फाइटर प्लेन उड़ाने से लेकर देश के राष्ट्रपति पद की कमान संभाल रही हैं तो वहीं, दूसरी तरफ अब भी कुछ लोग पुत्र मोह की चाह में गर्भ में लिंग का परीक्षण कर बेटियों की हत्या कर रहे हैं. यह भी वहीं अभागी और अजन्मी बेटियां हैं जिनकी उन्हीं के माता पिता ने इस धरा पर आने से पहले ही हत्या कर दी. संस्था पिछले 9 सालों से इस अनूठे आयोजन को कर उन्हें मोक्ष का अधिकार दिला रही है. आयोजन की शुरुआत शांति पाठ से हुई. इसके बाद वैदिक ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच श्राद्ध कर्म को पूरा कराया. वाराणसी में हुए इस आयोजन में समाज के अलग-अलग वर्ग के लोग न सिर्फ साक्षी बने, बल्कि उन्होंने मृतक बच्चियों को पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए.

आगमन सामाजिक संस्था के सचिव और आचार्य पं. दिनेश शंकर दुबे ने दी जानकारी
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डॉ.संतोष ओझा ने बताया कि आगमन सामाजिक संस्था अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए प्रतिवर्ष नैमित्तिक श्राद्ध का आयोजन करती है. संस्था का मानना है कि गर्भ में मारी गईं बेटियों को जीने का अधिकार तो नहीं मिल सका. लेकिन, उन्हें मोक्ष मिलना ही चाहिए. आमतौर पर आमजन गर्भपात को एक ऑपरेशन मानता है. लेकिन, स्वार्थ में डूबे परिजन यह भूल जाते हैं कि भ्रूण में प्राण-वायु के संचार के बाद किया गया गर्भपात जीव हत्या है. जो 90% मामले में होता है.

साफ है कि अधिकतर गर्भपात के नाम पर जीव हत्या की जा रही हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार ऐसे में मृत्यु में जीव भटकता है. जो परिजनों के दुख का कारण भी बनता है. शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार किसी जीव की अकाल मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रीय विधि से पूजन अर्चन (श्राद्ध) कराकर जीव को शांति प्रदान की जा सकती है. इससे उनके परिजनों को अनचाही परेशानियों से राहत मिलती है. सम स्मृति में श्राद्ध के पांच प्रकारों का उल्लेख है. नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, श्राद्धौर और पावैण. नैमित्तिक श्राद्ध एक उद्देश्य को लेकर किए जाते हैं. श्राद्धकर्म का आचार्यत्व पं. दिनेश शंकर दुबे के सात अन्य ब्राह्मणों ने संपन्न कराया.

यह भी पढ़े-आत्मनिर्भर भारत के लिए गंगा तट पर भगवान राम से की गई प्रार्थना

वाराणसी: मोक्ष के शहर बनारस में गर्भ में मारी गईं अजन्मी बेटियों को मोक्ष का अधिकार मिला. वाराणसी के गंगा तट दशाश्वमेध घाट पर गर्भ में मारी गईं बेटियों के मोक्ष की कामना के लिए आगमन सामाजिक संस्था ने वैदिक रीति रिवाज के साथ श्राद्ध कर्म किया. आचार्य पं. दिनेश शंकर दुबे के आचार्यत्व में पांच ब्राह्मणों की उपस्थिति में यह विशेष अनुष्ठान हुआ है. संस्था के संस्थापक सचिव और श्राद्धकर्ता डॉ. संतोष ओझा ने 13 हजार बेटियों का पिंडदान किया. बताते चले कि संस्था हर साल पितृ पक्ष के मातृ नवमी तिथि को यह अनुष्ठान करती है.

बदलते दौर में जहां बेटियां समाज में फाइटर प्लेन उड़ाने से लेकर देश के राष्ट्रपति पद की कमान संभाल रही हैं तो वहीं, दूसरी तरफ अब भी कुछ लोग पुत्र मोह की चाह में गर्भ में लिंग का परीक्षण कर बेटियों की हत्या कर रहे हैं. यह भी वहीं अभागी और अजन्मी बेटियां हैं जिनकी उन्हीं के माता पिता ने इस धरा पर आने से पहले ही हत्या कर दी. संस्था पिछले 9 सालों से इस अनूठे आयोजन को कर उन्हें मोक्ष का अधिकार दिला रही है. आयोजन की शुरुआत शांति पाठ से हुई. इसके बाद वैदिक ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच श्राद्ध कर्म को पूरा कराया. वाराणसी में हुए इस आयोजन में समाज के अलग-अलग वर्ग के लोग न सिर्फ साक्षी बने, बल्कि उन्होंने मृतक बच्चियों को पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए.

आगमन सामाजिक संस्था के सचिव और आचार्य पं. दिनेश शंकर दुबे ने दी जानकारी
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डॉ.संतोष ओझा ने बताया कि आगमन सामाजिक संस्था अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए प्रतिवर्ष नैमित्तिक श्राद्ध का आयोजन करती है. संस्था का मानना है कि गर्भ में मारी गईं बेटियों को जीने का अधिकार तो नहीं मिल सका. लेकिन, उन्हें मोक्ष मिलना ही चाहिए. आमतौर पर आमजन गर्भपात को एक ऑपरेशन मानता है. लेकिन, स्वार्थ में डूबे परिजन यह भूल जाते हैं कि भ्रूण में प्राण-वायु के संचार के बाद किया गया गर्भपात जीव हत्या है. जो 90% मामले में होता है.

साफ है कि अधिकतर गर्भपात के नाम पर जीव हत्या की जा रही हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार ऐसे में मृत्यु में जीव भटकता है. जो परिजनों के दुख का कारण भी बनता है. शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार किसी जीव की अकाल मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रीय विधि से पूजन अर्चन (श्राद्ध) कराकर जीव को शांति प्रदान की जा सकती है. इससे उनके परिजनों को अनचाही परेशानियों से राहत मिलती है. सम स्मृति में श्राद्ध के पांच प्रकारों का उल्लेख है. नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, श्राद्धौर और पावैण. नैमित्तिक श्राद्ध एक उद्देश्य को लेकर किए जाते हैं. श्राद्धकर्म का आचार्यत्व पं. दिनेश शंकर दुबे के सात अन्य ब्राह्मणों ने संपन्न कराया.

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Last Updated : Sep 20, 2022, 11:29 AM IST
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