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मुरादाबाद: पीतल नगरी में चुनावी मुद्दों से गायब है "पीतल की बदहाली" का मुद्दा - पीतल कारोबार

पीतल नगरी मुरादाबाद में पीतल कारोबार अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है. स्थानीय लोगों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में पीतल उद्योग की बदहाली सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था लेकिन एक बार फिर यह मुद्दा राजनैतिक दलों के एजेंडे से गायब है.

पीतल नगरी मुरादाबाद में पीतल कारोबार चुनावी मुद्दों से गायब है.
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Published : Apr 7, 2019, 4:34 AM IST

मुरादाबाद: लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात भले ही बिछ चुकी हो लेकिन स्थानीय मुद्दे एक बार फिर राजनैतिक दलों के एजेंडे से गायब दिखाई दे रहे हैं. पीतल नगरी के नाम से दुनिया में अपनी पहचान रखने वाले मुरादाबाद जिले में पीतल का कारोबार अपनी आखिरी सांसें गिन रहा हैं, बावजूद इसके चुनावी मैदान में इसकी चर्चा तक नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक पीतल कारोबार की बदहाली के बाद पांच लाख से ज्यादा कारीगर इस कारोबार को छोड़कर दूसरे कामों के जरिये रोजी-रोटी कमा रहे हैं.

पीतल नगरी मुरादाबाद में पीतल कारोबार चुनावी मुद्दों से गायब है.

जिले के तहसील स्कूल के पास निर्यात फर्म चला रहे मसूद अली गौहर के मुताबिक पीतल के कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, सरकार द्वारा निर्यात पर ड्रॉ बैक की दर कम करने और लगातार बढ़ते विदेशी मुकाबले से पीतल उद्योग बुरे दौर में पहुंच गया है. मसूद के पास कुछ समय पहले तक 200 कारीगर काम करते थे, लेकिन आज यह संख्या पचास तक सिमट गई है. मसूद के मुताबिक चुनाव में कोई भी पार्टी पीतल कारोबार को अपना मुद्दा नहीं बनाती और न ही नेता इस तरफ ध्यान देते हैं.

मसूद अकेले कारोबारी नहीं है जो पीतल उद्योग की बदहाली का रोना रो रहे हैं. आंकड़ों की बात की जाए तो मौजूदा वक्त में पीतल उत्पाद की जगह मिक्स मैटल और अन्य धातुओं ने ले ली है और पीतल का शुद्ध कारोबार महज बीस फीसदी तक सिमट कर रह गया है. कारोबार की बदहाली के बाद इस उद्योग से जुड़े स्थानीय कारीगर देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर गए है या फिर रोजगार के दूसरे साधनों को अपना रहे हैं.

स्थानीय स्तर पर पीतल उत्पादों को तैयार करने वाले दस्तकारों के मुताबिक नेताओं ने आज तक पीतल उद्योग को कोई मदद नहीं दी और चुनाव के वक्त महज वोट हासिल करने के लिए कारीगरों को भ्रमित करने का काम किया. स्थानीय लोगों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में पीतल उद्योग की बदहाली सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था, लेकिन एक बार फिर चुनाव राजनैतिक दलों के अपने तय एजेंडे पर ही लड़ा जा रहा है. चुनावी मौसम में शहर की गलियों में इक्का- दुक्का जगहों पर जरूर पीतल की नक्काशी करते कारीगर नजर आते हैं, लेकिन मुद्दों से गायब पीतल ज्यादातर गलियों से भी गायब हो चुका है.

मुरादाबाद: लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात भले ही बिछ चुकी हो लेकिन स्थानीय मुद्दे एक बार फिर राजनैतिक दलों के एजेंडे से गायब दिखाई दे रहे हैं. पीतल नगरी के नाम से दुनिया में अपनी पहचान रखने वाले मुरादाबाद जिले में पीतल का कारोबार अपनी आखिरी सांसें गिन रहा हैं, बावजूद इसके चुनावी मैदान में इसकी चर्चा तक नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक पीतल कारोबार की बदहाली के बाद पांच लाख से ज्यादा कारीगर इस कारोबार को छोड़कर दूसरे कामों के जरिये रोजी-रोटी कमा रहे हैं.

पीतल नगरी मुरादाबाद में पीतल कारोबार चुनावी मुद्दों से गायब है.

जिले के तहसील स्कूल के पास निर्यात फर्म चला रहे मसूद अली गौहर के मुताबिक पीतल के कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, सरकार द्वारा निर्यात पर ड्रॉ बैक की दर कम करने और लगातार बढ़ते विदेशी मुकाबले से पीतल उद्योग बुरे दौर में पहुंच गया है. मसूद के पास कुछ समय पहले तक 200 कारीगर काम करते थे, लेकिन आज यह संख्या पचास तक सिमट गई है. मसूद के मुताबिक चुनाव में कोई भी पार्टी पीतल कारोबार को अपना मुद्दा नहीं बनाती और न ही नेता इस तरफ ध्यान देते हैं.

मसूद अकेले कारोबारी नहीं है जो पीतल उद्योग की बदहाली का रोना रो रहे हैं. आंकड़ों की बात की जाए तो मौजूदा वक्त में पीतल उत्पाद की जगह मिक्स मैटल और अन्य धातुओं ने ले ली है और पीतल का शुद्ध कारोबार महज बीस फीसदी तक सिमट कर रह गया है. कारोबार की बदहाली के बाद इस उद्योग से जुड़े स्थानीय कारीगर देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर गए है या फिर रोजगार के दूसरे साधनों को अपना रहे हैं.

स्थानीय स्तर पर पीतल उत्पादों को तैयार करने वाले दस्तकारों के मुताबिक नेताओं ने आज तक पीतल उद्योग को कोई मदद नहीं दी और चुनाव के वक्त महज वोट हासिल करने के लिए कारीगरों को भ्रमित करने का काम किया. स्थानीय लोगों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में पीतल उद्योग की बदहाली सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था, लेकिन एक बार फिर चुनाव राजनैतिक दलों के अपने तय एजेंडे पर ही लड़ा जा रहा है. चुनावी मौसम में शहर की गलियों में इक्का- दुक्का जगहों पर जरूर पीतल की नक्काशी करते कारीगर नजर आते हैं, लेकिन मुद्दों से गायब पीतल ज्यादातर गलियों से भी गायब हो चुका है.

Intro:एंकर: मुरादाबाद: लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात भले ही बिछ चुकी हो लेकिन स्थानीय मुद्दें एक बार फिर राजनैतिक दलों के एजेंडे से गायब है. पीतल नगरी के नाम से दुनिया में अपनी पहचान रखने वाले मुरादाबाद में पीतल कारोबार अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है लेकिन चुनावी मैदान में इसकी चर्चा तक नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक पीतल कारोबार की बदहाली के बाद पांच लाख से ज्यादा कारीगर इस कारोबार को छोड़कर दूसरे कामों के जरिये रोजी-रोटी कमा रहे है. कारोबार कर रहें लोगों के मुताबिक चुनावी मौसम में नेताओं से उम्मीद करना बेमानी ही साबित हुआ है क्योंकि चुनाव के बाद कोई उनकी तरफ पलट कर भी नहीं देखता.


Body:वीओ वन: मुरादाबाद के तहशील स्कूल के पास निर्यात फर्म चला रहे मसूद अली गौहर की उम्र चालीस साल है. बचपन से ही परिवार के कारोबार के साथ पले- बढ़े मसूद पिछले काफी समय से लगातार हो रहें कारोबारी नुकशान से परेशान है. घर के एक कमरे में पीतल के कई कीमती सामान और उपकरण धूल खा रहे है. मसूद के मुताबिक पीतल के कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, सरकार द्वारा निर्यात पर ड्रा बैक की दर कम करने और लगातार बढ़ते विदेशी मुकाबले से पीतल उधोग बुरे दौर में पहुंच गया है. मसूद के पास कुछ समय पहले तक दो सौ कारीगर काम करते थे लेकिन आज यह संख्या पचास तक सिमट गई है. मसूद के मुताबिक चुनाव में कोई भी पार्टी पीतल कारोबार को अपना मुद्दा नहीं बनाती और न ही नेता इस तरफ ध्यान देते है.
बाइट: मसूद अली गौहर: निर्यातक
वीओ टू: मसूद अकेले कारोबारी नहीं है जो पीतल उधोग की बदहाली का रोना रो रहें है. आंकड़ो की बात की जाय तो मौजूदा वक्त में पीतल उत्पाद की जगह मिक्स मैटल और अन्य धातुओं ने ले ली है और पीतल के शुद्ध कारोबार महज बीस फीसदी तक सिमट कर रह गया है. कारोबार की बदहाली के बाद इस उधोग से जुड़े स्थानीय कारीगर देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर गए है या रोजगार के दूसरे साधनों को अपना रहें है. स्थानीय स्तर पर पीतल उत्पादों को तैयार करने वाले दस्तकारों के मुताबिक नेताओं ने आज तक पीतल उधोग को कोई मदद नहीं दी और चुनाव के वक्त महज वोट हासिल करने के लिए कारीगरों को भृमित करने का काम किया. नेताओ से नाखुश कारीगर लगातर हो रहें नुकशान के बाद अब नेताओं से ज्यादा उम्मीद नहीं रख रखें.
बाइट: नदीम: कारीगर
बाइट: वसीम: कारीगर


Conclusion:वीओ तीन:मुरादाबाद का पीतल उधोग लगातार इतिहास के पन्नों में दर्ज हो रहा है. पीतल उधोग से जुड़े लाखों कारीगरों का परिवार इसी उधोग से अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करता आया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में पीतल उधोग की बदहाली सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था लेकिन एक बार फिर चुनाव राजनैतिक दलों के अपने तय एजेंडे पर ही लड़ा जा रहा है. चुनावी मौसम में शहर की गलियों में इक्का- दुक्का जगहों पर जरूर पीतल की नक्काशी करते कारीगर नजर आते है लेकिन मुद्दों से गायब पीतल ज्यादातर गलियों से भी गायब हो चुका है.
भुवन चन्द्र
ईटीवी भारत
मुरादाबाद
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