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जिले में साढ़े तीन दशक से कांग्रेस को वनवास, आख़िर क्यों नहीं खोल पा रही पार्टी यहां खाता - कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष बबिता गुर्जर

पार्टी के वरिष्ट नेता महेंद्र शर्मा मेरठ में कांग्रेस के हाशिये पर जाने की वजह बताते हैं. उनका कहना है कि 1985 से पहले राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते थे. राष्ट्रीय हित को लेकर मतदाता वोट करते थे. 1989-90 से जातिवादी राजनीति ने उफान लिया व सांप्रदायिक राजनीति ने पैर पसारे. इसने कांग्रेस की साख को खासा प्रभावित किया.

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
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Published : Oct 12, 2021, 7:23 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 9:04 PM IST

मेरठ : जिले में आखिरी बार कांग्रेस के दो विधायक 1985 में चुनकर आए थे. तब के बाद से मेरठ में पंजे की पकड़ धीमी होती चली गई. अब पार्टी जिले में अपनी खोई जमीन को फिर से हांसिल करने को क्या कर रही है. साथ ही ये भी जानेंगे कि इन 36 सालों में जिले में कांग्रेस कैसे लगातार कमजोर होती गई. एक रिपोर्ट..

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास


कहते हैं राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. एक समय था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का एकछत्र राज हुआ करता था. समय ने करवट ली और देश के अन्य प्रांतों की तरह उत्तर प्रदेश से भी कांग्रेस पार्टी का जनाधार रसातल में चला गया. पश्चिमी यूपी में राजनीति का केंद्र माने जाने वाले मेरठ में भी इसका असर दिखा. यही वजह थी कि कांग्रेस का पंजा 1985 के बाद से यहां लगातार कमजोर पड़ता चला गया.

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास

बता दें कि 1985 में कैंट विधानसभा सीट पर 1985 में तब अजीत सेठी विधायक चुने गए थे जबकि शहर विधानसभा सीट पर पंडित जयनारायण शर्मा, हस्तिनापुर से हरसरण सिंह और सिवालखास से नानक चंद तब चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. 1980 में किठौर विधानसभा पर सीट पर भीम सिंह, सरधना से सैयद जकीउद्दीन 1980 में MLA चुने गए थे.

पार्टी के वरिष्ट नेता महेंद्र शर्मा मेरठ में कांग्रेस के हाशिये पर जाने की वजह बताते हैं. उनका कहना है कि 1985 से पहले राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते थे. राष्ट्रीय हित को लेकर मतदाता वोट करते थे. उनका कहना है कि 1989-90 से जातिवादी राजनीति ने उफान लिया व सांप्रदायिक राजनीति ने पैर पसारे. हालांकि वो कई राजनेताओं का नाम लेते हैं.

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास

यह भी पढ़ें : मेरठ: प्रियंका गांधी के बदले तेवर का कांग्रेस को मिल रहा फायदा, टिकट के लिए 65 दावेदार मैदान में

साथ ही इस दौरान अस्तित्व में आईं कई राजनीतिक पार्टियों की भी बात करते हैं. कांग्रेस नेता कहते हैं कि जहां एक ओर प्रदेश में सपा और बसपा अस्तित्व में आए, वहीं कांग्रेस ने सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीति की जिसका खमियाजा उठाना पड़ा.

कांग्रेस नेता मानते हैं कि पिछले 25 साल में कांग्रेस ने न्याय पंचायत, ग्राम पंचायत लेवल पर व ब्लॉक लेवल पर एक्टिव कार्यकर्ताओं को तैयार किया है. दावा किया कि जिले में इस वक्त कांग्रेस के साढ़े पांच हजार सक्रिय कार्यकर्ता हैं. इससे बदलाव की उम्मीद जगी है.

पार्टी की जिला उपाध्यक्ष बबिता गुर्जर कहतीं हैं कि ये हमारे लिए आत्मविश्लेषण का समय है. हमने बदलाव किए हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी में कहीं न कहीं अतिआत्मविश्वास रहा जिस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ. बबिता कहतीं हैं कि प्रियंका गांधी चाहे हाथरस की घटना हो, उन्नाव केस या ताजा लखीमपुर खीरी प्रकरण, वह पूरे दमखम के साथ एक्टिव हैं. कार्यकर्ताओं में भी जोश है. 2022 में इस बार पार्टी शानदार प्रदर्शन करेगी.

वहीं इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक हरी जोशी की अपनी अलग राय है. वे कहते हैं कि कांग्रेस के ग्राफ के यूपी में गिरने के कई कारण रहे हैं. उन्होंने कहा कि धर्म और जाति का विभाजन पहला कारण है. धर्म और जाति के विभाजन से कांग्रेस का प्रदेश में पतन शुरू हुआ. दूसरी वजह क्षेत्रीय पार्टियों का उदय होना रहा. बकौल हरी जोशी, क्षेत्रीय पार्टियों के आने के बाद कांग्रेस को काफी झटका लगा.

वहीं वो एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री का नाम लेकर कहते हैं कि उस काल खंड में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में उत्तरभारत में कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में आ गयी. इसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है. हरि जोशी कहते हैं कि कांग्रेसी नेताओं की संघर्ष की आदत नहीं रही है. AC रूम वाली पॉलिटिक्स की वजह से पूरे प्रदेश में पिछले 30 सालों में कांग्रेस का जनाधार खिसकता दिखाई दिया है.

मेरठ : जिले में आखिरी बार कांग्रेस के दो विधायक 1985 में चुनकर आए थे. तब के बाद से मेरठ में पंजे की पकड़ धीमी होती चली गई. अब पार्टी जिले में अपनी खोई जमीन को फिर से हांसिल करने को क्या कर रही है. साथ ही ये भी जानेंगे कि इन 36 सालों में जिले में कांग्रेस कैसे लगातार कमजोर होती गई. एक रिपोर्ट..

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास


कहते हैं राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. एक समय था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का एकछत्र राज हुआ करता था. समय ने करवट ली और देश के अन्य प्रांतों की तरह उत्तर प्रदेश से भी कांग्रेस पार्टी का जनाधार रसातल में चला गया. पश्चिमी यूपी में राजनीति का केंद्र माने जाने वाले मेरठ में भी इसका असर दिखा. यही वजह थी कि कांग्रेस का पंजा 1985 के बाद से यहां लगातार कमजोर पड़ता चला गया.

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास

बता दें कि 1985 में कैंट विधानसभा सीट पर 1985 में तब अजीत सेठी विधायक चुने गए थे जबकि शहर विधानसभा सीट पर पंडित जयनारायण शर्मा, हस्तिनापुर से हरसरण सिंह और सिवालखास से नानक चंद तब चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. 1980 में किठौर विधानसभा पर सीट पर भीम सिंह, सरधना से सैयद जकीउद्दीन 1980 में MLA चुने गए थे.

पार्टी के वरिष्ट नेता महेंद्र शर्मा मेरठ में कांग्रेस के हाशिये पर जाने की वजह बताते हैं. उनका कहना है कि 1985 से पहले राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते थे. राष्ट्रीय हित को लेकर मतदाता वोट करते थे. उनका कहना है कि 1989-90 से जातिवादी राजनीति ने उफान लिया व सांप्रदायिक राजनीति ने पैर पसारे. हालांकि वो कई राजनेताओं का नाम लेते हैं.

कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास
कांग्रेस का कोई प्रत्याशी आख़िर क्यों नहीं खोल पाता यहां खाता, जिले में साढ़े तीन दशक से पार्टी को वनवास

यह भी पढ़ें : मेरठ: प्रियंका गांधी के बदले तेवर का कांग्रेस को मिल रहा फायदा, टिकट के लिए 65 दावेदार मैदान में

साथ ही इस दौरान अस्तित्व में आईं कई राजनीतिक पार्टियों की भी बात करते हैं. कांग्रेस नेता कहते हैं कि जहां एक ओर प्रदेश में सपा और बसपा अस्तित्व में आए, वहीं कांग्रेस ने सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीति की जिसका खमियाजा उठाना पड़ा.

कांग्रेस नेता मानते हैं कि पिछले 25 साल में कांग्रेस ने न्याय पंचायत, ग्राम पंचायत लेवल पर व ब्लॉक लेवल पर एक्टिव कार्यकर्ताओं को तैयार किया है. दावा किया कि जिले में इस वक्त कांग्रेस के साढ़े पांच हजार सक्रिय कार्यकर्ता हैं. इससे बदलाव की उम्मीद जगी है.

पार्टी की जिला उपाध्यक्ष बबिता गुर्जर कहतीं हैं कि ये हमारे लिए आत्मविश्लेषण का समय है. हमने बदलाव किए हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी में कहीं न कहीं अतिआत्मविश्वास रहा जिस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ. बबिता कहतीं हैं कि प्रियंका गांधी चाहे हाथरस की घटना हो, उन्नाव केस या ताजा लखीमपुर खीरी प्रकरण, वह पूरे दमखम के साथ एक्टिव हैं. कार्यकर्ताओं में भी जोश है. 2022 में इस बार पार्टी शानदार प्रदर्शन करेगी.

वहीं इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक हरी जोशी की अपनी अलग राय है. वे कहते हैं कि कांग्रेस के ग्राफ के यूपी में गिरने के कई कारण रहे हैं. उन्होंने कहा कि धर्म और जाति का विभाजन पहला कारण है. धर्म और जाति के विभाजन से कांग्रेस का प्रदेश में पतन शुरू हुआ. दूसरी वजह क्षेत्रीय पार्टियों का उदय होना रहा. बकौल हरी जोशी, क्षेत्रीय पार्टियों के आने के बाद कांग्रेस को काफी झटका लगा.

वहीं वो एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री का नाम लेकर कहते हैं कि उस काल खंड में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में उत्तरभारत में कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में आ गयी. इसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है. हरि जोशी कहते हैं कि कांग्रेसी नेताओं की संघर्ष की आदत नहीं रही है. AC रूम वाली पॉलिटिक्स की वजह से पूरे प्रदेश में पिछले 30 सालों में कांग्रेस का जनाधार खिसकता दिखाई दिया है.

Last Updated : Oct 12, 2021, 9:04 PM IST
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