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बकरियों की नस्लों को सुधारने के लिए किया जा रहा शोध, किसानों को हो रहा लाभ

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद ने जानकारी देते हुए बताया कि जब भी हम बकरी पालन या पशुपालन में किसी की भी बात करते हैं. किसान की पशुपालन के माध्यम से आय वृद्धि की बात करते हैं तो हमें देखना पड़ता है कि वह कौन से तरीके हैं जिनसे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है.

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Published : Jul 16, 2022, 9:27 PM IST

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बकरियों की नस्लों को सुधारने के लिए किया जा रहा शोध

मथुरा: जिले के वेटरनरी विश्वविद्यालय में शनिवार से ढाई वर्ष पूर्व हिमीकृत वीर्य उत्पादन यूनिट की स्थापना की गई थी, जिसमें बकरियों की नस्ल सुधारने के लिए लगातार शोध किए जा रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार उत्तर भारत की अच्छी नस्ल के बकरों को एकत्रित कर उनसे वीर्य उत्पादन कराया जा रहा है और जो तैयारी में हिमीकृत वीर्य है उसको देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध कराया जा रहा है. विश्वविद्यालय लगभग 14 प्रदेशों में बकरियों में नस्ल सुधार के लिए सहयोग प्रदान कर रहा है. चाहे वह तकनीकी सहयोग हो चाहे की हिमीकृत वीर्य के माध्यम से सहयोग प्रदान किया जा रहा हो. निरंतर रूप से किसानों का भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद ने जानकारी देते हुए बताया कि जब भी हम बकरी पालन या पशुपालन में किसी की भी बात करते हैं. किसान की पशुपालन के माध्यम से आय वृद्धि की बात करते हैं तो हमें देखना पड़ता है कि वह कौन से तरीके हैं जिनसे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है.

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद

हमने यह पाया कि बकरी के अंदर मुख्यता तीन ट्रेड्स होते हैं. एक अधिक बढ़ोतरी दर, दूसरा बच्चे देने की क्षमता और तीसरा अधिक दूध उत्पादन अगर इन तीनों एक्सपेक्ट पर काम किया जाए या तीन जो हमारे इकनोमिक ट्रेड्स हैं. उससे जुड़े हुए लक्षणों को किसानों के पशुओं में बढ़ा दिया जाए तो किसानों की निश्चित रूप से आए वृद्धि हो सकती है.

इसे भी पढ़ेंः यूपी से जुड़ा PFI कनेक्शन, बिहार पुलिस के मोस्टवांटेड को लखनऊ से ATS ने किया गिरफ्तार

उनका फार्म अच्छा हो सकता है, उसके लिए विश्वविद्यालय प्रयासरत है. विश्वविद्यालय द्वारा उत्तर भारत की अच्छी नस्ल के बकरों को यहां पर एकत्रित किया गया है और उनसे वीर्य उत्पादन कराया जा रहा है और वीर्य उत्पादन के दौरान जो हिमीकृत वीर्य यहां तैयार किया जा रहा है. उसको देश के विभिन्न भागों में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है.

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वेटरनरी विश्वविद्यालय

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद ने बताया कि बड़ा हर्ष का विषय है कि, यह यूनिट विश्वविद्यालय में आज से ढाई वर्ष पहले प्रारंभ की गई और आज विश्वविद्यालय लगभग 14 प्रदेशों को इस इकाई के माध्यम से बकरियों में नस्ल सुधार के लिए सहयोग प्रदान कर रहा है .चाहे वह तकनीकी सहयोग हो चाहे हिमीकृत वीर्य के माध्यम से सहयोग प्रदान किया जा रहा हो.

निरंतर रूप से यहां किसानों का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता रहता है, क्योंकि हम विश्वविद्यालय हैं सीधे किसानों से नहीं जुड़ सकते इसलिए विश्वविद्यालय ने देश के जो 4 अच्छे बकरियों के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संस्थान हैं. उनके साथ अनुबंध किया है और अनुबंध के माध्यम से लगातार 25 से 30 हजार किसानों से हम जुड़े हुए हैं.

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बकरियों

उनके साथ हम काम कर रहे हैं. उनको टेक्निकल मदद दे रहे हैं. साथ-साथ समय-समय पर जो कृषक अपना आधुनिक बकरी पालन अपना मुख्य व्यवसाय बना कर आय अर्जन करना चाहते हैं. वह अपना आवेदन विश्वविद्यालय में इस परिसर में देते हैं और सक्षम अधिकारी से अनुमोदन लेकर समय-समय पर हम प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं, जो बहुत सफल हो रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि यहां महिलाएं बहुत बढ़-चढ़कर सहयोग कर रही हैं और अपनी इच्छा व्यक्त कर रही है. बकरी पालन को एक व्यवसायिक रूप में अपने घरों में चलाने का.
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मथुरा: जिले के वेटरनरी विश्वविद्यालय में शनिवार से ढाई वर्ष पूर्व हिमीकृत वीर्य उत्पादन यूनिट की स्थापना की गई थी, जिसमें बकरियों की नस्ल सुधारने के लिए लगातार शोध किए जा रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार उत्तर भारत की अच्छी नस्ल के बकरों को एकत्रित कर उनसे वीर्य उत्पादन कराया जा रहा है और जो तैयारी में हिमीकृत वीर्य है उसको देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध कराया जा रहा है. विश्वविद्यालय लगभग 14 प्रदेशों में बकरियों में नस्ल सुधार के लिए सहयोग प्रदान कर रहा है. चाहे वह तकनीकी सहयोग हो चाहे की हिमीकृत वीर्य के माध्यम से सहयोग प्रदान किया जा रहा हो. निरंतर रूप से किसानों का भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद ने जानकारी देते हुए बताया कि जब भी हम बकरी पालन या पशुपालन में किसी की भी बात करते हैं. किसान की पशुपालन के माध्यम से आय वृद्धि की बात करते हैं तो हमें देखना पड़ता है कि वह कौन से तरीके हैं जिनसे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है.

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद

हमने यह पाया कि बकरी के अंदर मुख्यता तीन ट्रेड्स होते हैं. एक अधिक बढ़ोतरी दर, दूसरा बच्चे देने की क्षमता और तीसरा अधिक दूध उत्पादन अगर इन तीनों एक्सपेक्ट पर काम किया जाए या तीन जो हमारे इकनोमिक ट्रेड्स हैं. उससे जुड़े हुए लक्षणों को किसानों के पशुओं में बढ़ा दिया जाए तो किसानों की निश्चित रूप से आए वृद्धि हो सकती है.

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उनका फार्म अच्छा हो सकता है, उसके लिए विश्वविद्यालय प्रयासरत है. विश्वविद्यालय द्वारा उत्तर भारत की अच्छी नस्ल के बकरों को यहां पर एकत्रित किया गया है और उनसे वीर्य उत्पादन कराया जा रहा है और वीर्य उत्पादन के दौरान जो हिमीकृत वीर्य यहां तैयार किया जा रहा है. उसको देश के विभिन्न भागों में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है.

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वेटरनरी विश्वविद्यालय

प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. मुकुल आनंद ने बताया कि बड़ा हर्ष का विषय है कि, यह यूनिट विश्वविद्यालय में आज से ढाई वर्ष पहले प्रारंभ की गई और आज विश्वविद्यालय लगभग 14 प्रदेशों को इस इकाई के माध्यम से बकरियों में नस्ल सुधार के लिए सहयोग प्रदान कर रहा है .चाहे वह तकनीकी सहयोग हो चाहे हिमीकृत वीर्य के माध्यम से सहयोग प्रदान किया जा रहा हो.

निरंतर रूप से यहां किसानों का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता रहता है, क्योंकि हम विश्वविद्यालय हैं सीधे किसानों से नहीं जुड़ सकते इसलिए विश्वविद्यालय ने देश के जो 4 अच्छे बकरियों के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संस्थान हैं. उनके साथ अनुबंध किया है और अनुबंध के माध्यम से लगातार 25 से 30 हजार किसानों से हम जुड़े हुए हैं.

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बकरियों

उनके साथ हम काम कर रहे हैं. उनको टेक्निकल मदद दे रहे हैं. साथ-साथ समय-समय पर जो कृषक अपना आधुनिक बकरी पालन अपना मुख्य व्यवसाय बना कर आय अर्जन करना चाहते हैं. वह अपना आवेदन विश्वविद्यालय में इस परिसर में देते हैं और सक्षम अधिकारी से अनुमोदन लेकर समय-समय पर हम प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं, जो बहुत सफल हो रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि यहां महिलाएं बहुत बढ़-चढ़कर सहयोग कर रही हैं और अपनी इच्छा व्यक्त कर रही है. बकरी पालन को एक व्यवसायिक रूप में अपने घरों में चलाने का.
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