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बुढ़ापे की लाठी बनने की बजाय औलादों ने दिए घाव, जिंदगी के आखिरी पढ़ाव में बुजुर्गों का सहारा बना 'रैन बसेरा' - care of abandoned elders

बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार ना हो इस उद्देश्य से 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस मनाया जाता है. बुजुर्गों के साथ आये दिन अत्याचार के मामले सामने आते हैं. घर होने के बावजूद वह बेघर हैं. दर दर की ठोकरें खा रहे हैं.

संस्था बनी सहारा
संस्था बनी सहारा
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Published : Jun 15, 2022, 7:46 AM IST

लखनऊ: हर साल 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस मनाया जाता है. हमारे समाज में रह रहे बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार ना हो इस उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है. आज हम आपको कुछ ऐसे बुजुर्गों से मिलाएंगे जो वृद्धआश्रम में रह रहे हैं. जिन औलादों को बुढ़ापे का सहारा बनना था वही घाव दे रहे हैं. परिवार होते हुए भी कोई साथ नहीं दे रहा है. किसी की पत्नी तो किसी के घरवालों ने घर से बेघर कर दिया है. अब रैन बसेरा संस्था ही इनका एक मात्र सहारा है.

रैन बसेरा संस्था के केयरटेकर अरुण शुक्ला बताते हैं कि हमारी संस्था लगातार बुजुर्गों के लिए काम करती है. रोज हम किसी न किसी बुजुर्ग को यहां लाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर बहुत सारे बुजुर्ग ऐसे हैं जिनका साथ उन्हीं के घरवालों ने नहीं दिया. जिसकी वजह से वह दर-दर की ठोकर खा रहे थे. यहां पर जो भी बुजुर्ग आता है उसे सबसे पहले ट्रीटमेंट दिया जाता है. कई लोगों का बीमारी के चलते परिवार वालों ने साथ छोड़ दिया है.

बातचीत करतीं संवाददाता.

एनजीओ उठाता है बुजुर्गों का खर्चा: केयरटेकर अरुण ने बताया कि हमारा एनजीओ पूरी तरह से बुजुर्गों का खर्च उठाता है. भले लाखों का ही खर्च क्यों न हो हमारी संस्था बुजुर्गों का इलाज जरूर कराती है. बुजुर्गों की जरूरत का सारा सामान हम लेकर आते हैं. कभी-कभी हम इन्हें घुमाने भी ले जाते हैं ताकि इनका मन लगा रहे. कुछ बुजुर्गों को पैरालिसिस हो चुका है उन्हें हम अपने हाथों से खाना खिलाते हैं.

20 से अधिक बुजुर्ग सदस्य : उन्होंने बताया कि हमारी संस्था में वैसे तो आए दिन बुजुर्ग आते हैं. हमें शहर में जो सड़क किनारे या असहाय अवस्था में मिल जाता है हम उसे ले आते हैं. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो ठीक होने के बाद चले जाते हैं. वर्तमान में हमारे यहां 20 से अधिक बुजुर्ग पुरुष हैं, वहीं पांच महिलाएं हैं. इनमें से बहुत सारे बुजुर्ग मानसिक तौर पर बीमार हैं. जिनका इलाज हमारी संस्था करवा रही है.

ये भी पढ़ें : योगी कैबिनेट बैठक: तबादला नीति 2022 को मंजूरी, यूपी पुलिस में 40 हजार पदों पर होगी भर्ती

बुजुर्ग बोले अब यही हमारा परिवार: वहीं, संस्था में रह रहे कुछ बुजुर्गों ने बताया कि रैन बसेरा संस्था हमारे लिए बहुत अच्छा काम कर रही है. जब हम यहां पर आये तो सबसे पहले हमारा इलाज कराया गया. हमारे घर वालों ने हमें छोड़ दिया था. जिसके बाद यह संस्था हमारा सहारा बनी. आज हम यहां रहते हैं तो हमें किसी की याद नहीं आती. अब यही हमारा परिवार है. हम सभी यहां प्यार से रहते हैं.

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लखनऊ: हर साल 15 जून को विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस मनाया जाता है. हमारे समाज में रह रहे बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार ना हो इस उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है. आज हम आपको कुछ ऐसे बुजुर्गों से मिलाएंगे जो वृद्धआश्रम में रह रहे हैं. जिन औलादों को बुढ़ापे का सहारा बनना था वही घाव दे रहे हैं. परिवार होते हुए भी कोई साथ नहीं दे रहा है. किसी की पत्नी तो किसी के घरवालों ने घर से बेघर कर दिया है. अब रैन बसेरा संस्था ही इनका एक मात्र सहारा है.

रैन बसेरा संस्था के केयरटेकर अरुण शुक्ला बताते हैं कि हमारी संस्था लगातार बुजुर्गों के लिए काम करती है. रोज हम किसी न किसी बुजुर्ग को यहां लाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर बहुत सारे बुजुर्ग ऐसे हैं जिनका साथ उन्हीं के घरवालों ने नहीं दिया. जिसकी वजह से वह दर-दर की ठोकर खा रहे थे. यहां पर जो भी बुजुर्ग आता है उसे सबसे पहले ट्रीटमेंट दिया जाता है. कई लोगों का बीमारी के चलते परिवार वालों ने साथ छोड़ दिया है.

बातचीत करतीं संवाददाता.

एनजीओ उठाता है बुजुर्गों का खर्चा: केयरटेकर अरुण ने बताया कि हमारा एनजीओ पूरी तरह से बुजुर्गों का खर्च उठाता है. भले लाखों का ही खर्च क्यों न हो हमारी संस्था बुजुर्गों का इलाज जरूर कराती है. बुजुर्गों की जरूरत का सारा सामान हम लेकर आते हैं. कभी-कभी हम इन्हें घुमाने भी ले जाते हैं ताकि इनका मन लगा रहे. कुछ बुजुर्गों को पैरालिसिस हो चुका है उन्हें हम अपने हाथों से खाना खिलाते हैं.

20 से अधिक बुजुर्ग सदस्य : उन्होंने बताया कि हमारी संस्था में वैसे तो आए दिन बुजुर्ग आते हैं. हमें शहर में जो सड़क किनारे या असहाय अवस्था में मिल जाता है हम उसे ले आते हैं. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो ठीक होने के बाद चले जाते हैं. वर्तमान में हमारे यहां 20 से अधिक बुजुर्ग पुरुष हैं, वहीं पांच महिलाएं हैं. इनमें से बहुत सारे बुजुर्ग मानसिक तौर पर बीमार हैं. जिनका इलाज हमारी संस्था करवा रही है.

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बुजुर्ग बोले अब यही हमारा परिवार: वहीं, संस्था में रह रहे कुछ बुजुर्गों ने बताया कि रैन बसेरा संस्था हमारे लिए बहुत अच्छा काम कर रही है. जब हम यहां पर आये तो सबसे पहले हमारा इलाज कराया गया. हमारे घर वालों ने हमें छोड़ दिया था. जिसके बाद यह संस्था हमारा सहारा बनी. आज हम यहां रहते हैं तो हमें किसी की याद नहीं आती. अब यही हमारा परिवार है. हम सभी यहां प्यार से रहते हैं.

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