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क्या है ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज, मकबरा है या तेजोमहालय, जानें ऐतिहासिक तथ्यों संग पूरी कहानी - Taj Mahal or Tejo Mahalaya

दावा किया जाता है कि ताजमहल शब्द अपने आप में औरंगजेब के समय में भी किसी मुगल दरबार के पेपर या क्रॉनिकल में नहीं आया है. "महल" शब्द कभी किसी मुस्लिम साहित्य में बतौर मुस्लिम शब्द नहीं आया है. दुनिया भर के किसी भी मुस्लिम देश में "महल" नाम की कोई इमारत नहीं है. ताजमहल शब्द की व्याख्या मुमताज महल से हुई है जो कि अतार्किक है क्योंकि उनका नाम कभी मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज-उल-जमानी था. आइए जानते हैं क्या है विवाद और किन ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर मची है उठापटक..

बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां
बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां
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Published : May 12, 2022, 6:39 PM IST

Updated : May 12, 2022, 7:25 PM IST

लखनऊ : यह पहली बार नहीं है जब ताजमहल के मकबरा या शिव मंदिर होने को लेकर विवाद कोर्ट तक जा पहुंचा है. इससे पूर्व भी ताजमहल के तेजोमहालय यानि शिव मंदिर होने के दावे लगातार किए जाते रहे हैं. बीच बीच में इतिहासकारों और समाजसेवियों ने इस मसले को उठाया और अपने तथ्यों से यह सिद्ध करने की कोशिश की कि यह मकबरा नहीं शिवमंदिर है. कई बार दावा किया गया कि ताजमहल एक मंदिर को तोड़कर बनाया गया है. दावा किया जाता है कि ताजमहल शब्द अपने आप में औरंगजेब के समय में भी किसी मुगल दरबार के पेपर या क्रॉनिकल में नहीं आया है. "महल" शब्द कभी किसी मुस्लिम साहित्य में बतौर मुस्लिम शब्द नहीं आया है. दुनियाभर के किसी भी मुस्लिम देश में "महल" नाम की कोई इमारत नहीं है. ताजमहल शब्द की व्याख्या मुमताज महल से हुई है जो कि अतार्किक है क्योंकि उनका नाम कभी मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज-उल-जमानी था. आइए जानते हैं कि ताजमहल का विवाद कब शुरू हुआ? कब-कब इसे लेकर लोग हाईकोर्ट गए और क्या दावे किए गए..

ताजमहल के अंदर तहखाने तक जाने वाले रास्ते
ताजमहल के अंदर तहखाने तक जाने वाले रास्ते

2015 में उठा था था मुद्दा, ताजमहल परिसर में पूजा की मांगी थी अनुमति

वर्ष 2015 में 7 लोगों के एक समूह ने आगरा में सिविल कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी. इस दौरान वकीलों ने मांग की थी कि हिंदुओं को ताजमहल परिसर में पूजा के लिए प्रवेश की अनुमति दी जाए. दावा किया था कि स्मारक मूल रूप से एक शिव मंदिर था जिसे तेजो महालय कहा जाता था. याचिका में ताजमहल के अंदर 'दर्शन' और 'आरती' की अनुमति मांगी गई थी. फिलहाल ताजमहल में केवल मुस्लिम ही नमाज पढ़ सकते हैं.

ताज महल के 22 कमरों को खोलने की रखी थी मांग : याचिकाकर्ताओं ने स्मारक में बंद 22 कमरों को खोलने की भी मांग की थी. इस दौरान यह भी दावा किया गया था कि से कम 109 से अधिक पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य हैं जो यह बताते हैं कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर है. मुख्य भवन की संरचना एक संगमरमर के मंच पर चौकोर लेआउट में है, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में तीन चेहरे गर्भगृह में प्रवेश करने के हैं जबकि उत्तर की ओर एक 'संगमरमर की जाली' के साथ रास्ता बंद है. ये अनिवार्य रूप से उत्तर भारत में हर "शिवालय" की संरचनात्मक विशेषता है. यह याचिका अभी भी निचली अदालत में लंबित है.

ताजमहल
ताजमहल

इतिहासकार पीएन ओक की किताब से जन्मा है विवाद : इतिहासकार पीएन ओक ने एक किताब लिखी थी. इसका नाम The True Story Of Taj है. इसमें उन्होंने कहा कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर था. इस संबंध में केंद्रीय सूचना आयोग ने 2017 में सरकार से पूछा कि ताजमहल समाधि है या शिव मंदिर? यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन याचिका को वहां खारिज कर दिया गया.

क्या हैं तर्क : इतिहासकार पीएन ओक ने अपनी किताब में जिन तथ्यों की ओर इशारा किया है. इनमें कहा गया है कि सदियों पुराना संस्कृत नाम तेज-ओ-महालय एक शिव मंदिर का प्रतीक है. ताजमहल शब्द संस्कृत शब्द तेजोमहालय का ही एक रूप है जो शिव मंदिर को दर्शाता है. इसमें अग्रेश्वर महादेव यानी आगरा के भगवान विराजमान हुआ करते थे. वहीं, संगमरमर के चबूतरे पर चढ़ने से पहले जूते उतारने की परंपरा शाहजहां से पहले के समय से शुरू हुई थी. तब ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था. अगर ताज की उत्पत्ति एक मकबरे के रूप में हुई होती तो जूते उतारने की जरूरत नहीं होती क्योंकि कब्रिस्तान में जूते की जरूरत होती है. यहां यह भी देखा जाता है कि मकबरे का आधार स्लैब सादे सफेद रंग में संगमरमर का तहखाना है जबकि इसकी अधिरचना और दो मंजिलों पर अन्य तीन मकबरे जड़े हुए लता डिजाइनों से ढके हैं. यह बताता है कि शिव की मूर्ति का संगमरमर का आसन अभी भी बना हुआ है और मुमताज का मकबरा नकली है.

ताजमहल के अंदर का मकबरा
ताजमहल के अंदर का मकबरा

तेजोमहालय का निर्माण सन 1155 में किया गया : पीएन ओक की थ्योरी यह दावा करती है कि ताजमहल का वास्तविक नाम तेजोमहालय है. इसका निर्माण 1155 में किया गया था. उनके मुताबिक तब वहां एक शिव मंदिर हुआ करता था. ओक के अनुसार मुगलों के भारत आने से पहले ही आगरा में एक भव्य स्मारक मौजूद था. पीएन ओक ने अपनी किताब में बादशाहनामा के दो पन्नों का अंग्रेजी अनुवाद किया था. शाहजहां के दरबारी लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने ही बादशाहनामा लिखी थी. वो किताब फारसी में थी. ऐसे में लंबे समय तक किताब में लिखी बातें राज रहीं.

राजामान सिंह की हवेली थी ताजमहल : पीएन ओक ने बादशाहनामा के दो पन्ने 402 और 403 का अंग्रेजी अनुवाद किया. उस अनुवाद के अनुसार 402 नंबर पन्ने पर लिखा था- 'महान शहर आगरा (तब अकबराबाद) के दक्षिण में एक खूबसूरत और भव्य हवेली है. वो राजा मान सिंह की है. वर्तमान में उस हवेली का स्वामित्व मान सिंह के पोते जय सिंह के पास है. रानी के दफन के लिए इसी जगह को चुना गया. राजा जय सिंह ने अपनी इस पैतृक विरासत को काफी महत्व दिया लेकिन फिर शासक शाहजहां को वो ये हवेली मुफ्त में देने को तैयार हो गया. फिर भी ईमानदारी दिखाते हुए जय सिंह को उस भव्य हवेली के बदले में 'शरीफाबाद' दिया गया.' अब पीएन ओक ने इस अनुवाद के आधार पर ये बताने का प्रयास किया कि शाहजहां ने असल में राजा मान सिंह के पोते जय सिंह से उनकी भव्य हवेली मांगी थी. ओक के मुताबिक पहले ऐसा दावा किया गया था कि शाहजहां ने राजा जय सिंह से एक जमीन मांगी थी. बादशाहनामा का जो अनुवाद उन्होंने करवाया उसके मुताबिक एक जमीन नहीं बल्कि भव्य हवेली की मांग रखी गई थी.

कुछ फारसी शब्दों का जिक्र करते हुए ओक ने अपनी बात को प्रमुखता से लिखा है. उदाहरण के लिए 'मंजिल-ए-राजा मानसिंह बुद वादरी वक्त बा राजा जयसिंह' का मतलब बताया कि ये जो हवेली है, राजा मान सिंह की है. यह अभी वर्तमान में राजा जय सिंह के स्वामित्व में है. आगे उन्होंने ये भी लिखा कि 'इमरत-ए-अलीशान' का मतलब एक भव्य विशाल इमारत होता है.

पीएन ओक
पीएन ओक

पीएन ओक को क्यों लगा ताजमहल मंदिर? : वैसे 70 के दशक में पीएन ओक ने ताजमहल पर एक और किताब लिखी थी. उस किताब का नाम था The Taj Mahal Is A Temple Palace. उन्होंने अपनी किताब 'Taj Mahal: The True Story’ में तेजोमहालय और बाद में जय सिंह पर फोकस किया था. वहीं, अपनी ही दूसरी किताब में उन्होंने कुछ ऐसे तर्क रखे थे जिसके आधार पर वे ताजमहल को एक मंदिर मान रहे थे. उनके सवाल एकदम स्पष्ट थे. पहला यह कि ताजमहल संगमरमर की जाली में 108 कलश क्यों बने थे? यह परंपरा मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों में देखी जाता है. दूसरे मकबरे में जूते-चप्पल उतारने की मान्यता नहीं लेकिन संगमरमर की सीढ़ियों पर यह परंपरा क्यों है. तीसरे 'ताज' और 'महल' संस्कृत शब्द, मकबरे को फिर संस्कृत नाम कैसे दिया गया? अब पीएन ओक ने अपनी किताब और कुछ तथ्यों के आधार पर दो बातों पर जोर दिया. पहला ये कि ताजमहल असल में तेजोमहालय था. दूसरा ये कि वहां पर एक शिव मंदिर था. हालांकि उनके इन तथ्यों को कोर्ट से कभी मान्यता नहीं मिली. साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएन ओक की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें वह ताजमहल को एक हिंदू मंदिर घोषित कराना चाहते थे.

क्या है ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज, मकबरा है या तेजोमहालय, जानें ऐतिहासिक तथ्यों संग पूरी कहानी
क्या है ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज, मकबरा है या तेजोमहालय, जानें ऐतिहासिक तथ्यों संग पूरी कहानी

बैगले और देसाई ने भी अपनी किताब में रखे थे कई तथ्य : ऐसी ही एक किताब Taj Mahal: The Illumined Tomb लिखी गई जिसके लेखक बैगले और देसाई थे. उनकी वो किताब भी उन्हीं समान तथ्यों के साथ लिखी गई. उस किताब में भी राजा मान सिंह और राजा जय सिंह को हवेली का मालिक बताया गया. बताया गया कि राजा जय सिंह से शाहजहां ने एक हवेली ली थी. किताब में बताया गया कि ऐसे कोई भी सबूत या प्रमाण नहीं हैं जो साबित करते हों कि कभी भी आगरा में ताजमहल की जगह कोई दूसरी धार्मिक इमारत थी. लेखक ने अपनी किताब में उस करार की एक कॉपी भी पेश की है जो शाहजहां और जय सिंह के बीच हुआ था.

ताजमहल का नक्शा
ताजमहल का नक्शा

यह भी पढ़ें : ताजमहल के 22 कमरों की जांच की याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज

उस फरमान में लिखा है कि जय सिंह ने अपनी इच्छा से अपनी हवेली को मुमताज महल बेगम के मकबरे के लिए दान कर दिया था. उसी फरमान में इस बात का भी जिक्र है कि इस हवेली के देने के बदले जय सिंह को भी शाहजहां ने 4 हवेलियां दी थीं. अपनी किताब में बैगले और देसाई ने उस तारीख का भी जिक्र किया है जब इस फरमान को मान्यता प्राप्त हुई थी. लेखकों के मुताबिक 28 दिसंबर 1633 को जय सिंह की हवेली को लेकर डील पक्की हुई थी. वहीं इस बात पर भी जोर रहा है कि उस जमाने में भी फरमान के अंदर लगातार 'हवेली' शब्द का इस्तेमाल हुआ. उनकी नजरों में ये इस बात को साबित करता है कि ताजमहल की जगह पहले कोई धार्मिक स्थल नहीं था. लेखकों के ये कथन पीएन ओक के उस दावे के इतर हैं जहां कहा गया कि ताजमहल पहले तेजोमहालय था.

तेजोमहालय के दावे पर सरकार का पक्ष : इस विवाद और किताबों में किए गए दावों के बीच सरकार सांसत में नजर आई. ऐसा ही एक मामला 2015 में भी सामने आया था जब 6 वकीलों ने आगरा कोर्ट में एक याचिका डाल अपील की कि उन्हें ताजमहल में दर्शन करने दिया जाए, पूजा की अनुमति मिले और वहां हो रही मुस्लिमों की नमाज पर रोक लगे. इन वकीलों का तर्क था कि ताजमहल असल में तेजोमहालय है और शाहजहां ने इसे राजा जय सिंह से हड़प लिया था. Bar&Bench की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में केंद्र ने ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर इन तमाम दावों को मनगढ़ंत और स्वयं निर्मित बता दिया था. उनकी नजरों में ऐसा कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास था. तब सरकार ने भी कोर्ट में ये माना था कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था. बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने भी आगरा कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था. स्पष्ट कहा गया था कि ताजमहल एक मकबरा है. मंदिर नहीं है.

बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां
बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां

डॉ. डी दयालन की पुस्तक में भी किए गए कई दावे : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. डी दयालन ने अपनी पुस्तक ताजमहल एंड इट्स कन्जरवेशन में लिखा कि मुहर्रम की तीसरी तारीख को 4 दिसंबर 1652 को शहजादा औरंगजेब जहांआरा के बाग में पहुंचे. अगले दिन उन्होंने चमकते हुए मकबरे को देखा. उसी भ्रमण में औरंगजेब ने शाहजहां को पत्र लिखकर बताया कि इमारत की नींव मजबूत है लेकिन गुंबद से पानी टपक रहा है. औरंगजेब ने पत्र में लिखा, ताजमहल की चारों छोटी छतरियां और गुंबद बारिश में लीक हो रही हैं. संगमरमर वाले गुंबद पर दो से तीन जगह से बारिश में पानी निकल रहा है. इसकी मरम्मत कराई गई है. देखते हैं कि अगली बारिश में क्या होगा. इस पत्र के आधार पर ही यह रहस्य गहराया कि अगर ताज 1652 में बना था तो गुंबद इतनी जल्दी कैसे लीक हो गया ? जैसे ही सैलानियों के लिए ताजमहल के हिस्सों को बंद किया गया और ताले लगने शुरू हुए, वैसे-वैसे विवाद बढ़ा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 50 सालों में ताज का बड़ा हिस्सा पर्यटकों के लिए बंद कर दिया है. सैलानियों की दूरी जैसे-जैसे ताज से बढ़ी, वैसे-वैसे ताज के तहखाने और धार्मिक नजरिए से देखने का विवाद गहराता चला गया. रहस्य भी गहराया.

सबसे पहले मीनारें, फिर तहखाना किया बंद

ताजमहल की चारों मीनारों में पर्यटक पहले न केवल घूम सकते थे बल्कि सबसे ऊपर भी पहुंच सकते थे. कई पर्यटक जोड़ों ने मीनारों से कूदकर आत्महत्या कर ली थी. ताजगंज निवासी और खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के अध्यक्ष ताहिरुद्दीन ताहिर बताते हैं कि आत्महत्या के मामलों के बाद मीनारों पर प्रवेश बंद कर दिया गया. मीनारों में नीचे दरवाजों पर ताला लगाया गया. 1970 के दशक में मीनारें बंद होने के बाद तहखानों को बंद किया गया था. ताजमहल में एएसआई ने न केवल मीनारों और तहखाने को बंद किया बल्कि उत्तरी दीवार के दोनों दरवाजे बंद कर दिए. यहां से कभी शहंशाह शाहजहां ताजमहल आते थे. आगरा किले से ताजमहल तक नाव के जरिए वह उत्तरी दरवाजों से ही पहुंचते थे और सीढ़ियों के जरिए चमेली फर्श तक जाते थे. एएसआई ने 1978 की बाढ़ के बाद यमुना किनारे की उत्तरी दीवार पर दोनों दरवाजों को हटाकर उनकी जगह लाल ईंटों की दीवार से उन्हें बंद कर दिया.

जयपुर की राजकुमारी का दावा, ताज मुगलों की नहीं हमारी पुरखों की विरासत : राजस्थान के राज परिवार से दीया कुमारी ने भी ताजमहल को लेकर बड़ा बयान दिया है. राजसमन्द सांसद दीया कुमारी ने कहा कि ताजमहल हमारी प्रॉपर्टी थी. उन्होंने कहा कि ताजमहल की जमीन हमारे पुरखों की थी. हमारे पोथीखाने में जमीन से जुड़े दस्तावेज रखे हैं. जमीन हमारी थी लेकिन राज मुगलों का था. इसलिए उन्होंने जमीन ले ली और उस पर ताजमहल बनवा लिया. हो सकता है तब उन्हें वह जमीन पसंद आई हो. सांसद ने इसी के साथ ताज के बंद हिस्से को खोलने की भी मांग की है.

लखनऊ : यह पहली बार नहीं है जब ताजमहल के मकबरा या शिव मंदिर होने को लेकर विवाद कोर्ट तक जा पहुंचा है. इससे पूर्व भी ताजमहल के तेजोमहालय यानि शिव मंदिर होने के दावे लगातार किए जाते रहे हैं. बीच बीच में इतिहासकारों और समाजसेवियों ने इस मसले को उठाया और अपने तथ्यों से यह सिद्ध करने की कोशिश की कि यह मकबरा नहीं शिवमंदिर है. कई बार दावा किया गया कि ताजमहल एक मंदिर को तोड़कर बनाया गया है. दावा किया जाता है कि ताजमहल शब्द अपने आप में औरंगजेब के समय में भी किसी मुगल दरबार के पेपर या क्रॉनिकल में नहीं आया है. "महल" शब्द कभी किसी मुस्लिम साहित्य में बतौर मुस्लिम शब्द नहीं आया है. दुनियाभर के किसी भी मुस्लिम देश में "महल" नाम की कोई इमारत नहीं है. ताजमहल शब्द की व्याख्या मुमताज महल से हुई है जो कि अतार्किक है क्योंकि उनका नाम कभी मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज-उल-जमानी था. आइए जानते हैं कि ताजमहल का विवाद कब शुरू हुआ? कब-कब इसे लेकर लोग हाईकोर्ट गए और क्या दावे किए गए..

ताजमहल के अंदर तहखाने तक जाने वाले रास्ते
ताजमहल के अंदर तहखाने तक जाने वाले रास्ते

2015 में उठा था था मुद्दा, ताजमहल परिसर में पूजा की मांगी थी अनुमति

वर्ष 2015 में 7 लोगों के एक समूह ने आगरा में सिविल कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी. इस दौरान वकीलों ने मांग की थी कि हिंदुओं को ताजमहल परिसर में पूजा के लिए प्रवेश की अनुमति दी जाए. दावा किया था कि स्मारक मूल रूप से एक शिव मंदिर था जिसे तेजो महालय कहा जाता था. याचिका में ताजमहल के अंदर 'दर्शन' और 'आरती' की अनुमति मांगी गई थी. फिलहाल ताजमहल में केवल मुस्लिम ही नमाज पढ़ सकते हैं.

ताज महल के 22 कमरों को खोलने की रखी थी मांग : याचिकाकर्ताओं ने स्मारक में बंद 22 कमरों को खोलने की भी मांग की थी. इस दौरान यह भी दावा किया गया था कि से कम 109 से अधिक पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य हैं जो यह बताते हैं कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर है. मुख्य भवन की संरचना एक संगमरमर के मंच पर चौकोर लेआउट में है, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में तीन चेहरे गर्भगृह में प्रवेश करने के हैं जबकि उत्तर की ओर एक 'संगमरमर की जाली' के साथ रास्ता बंद है. ये अनिवार्य रूप से उत्तर भारत में हर "शिवालय" की संरचनात्मक विशेषता है. यह याचिका अभी भी निचली अदालत में लंबित है.

ताजमहल
ताजमहल

इतिहासकार पीएन ओक की किताब से जन्मा है विवाद : इतिहासकार पीएन ओक ने एक किताब लिखी थी. इसका नाम The True Story Of Taj है. इसमें उन्होंने कहा कि ताजमहल एक हिंदू मंदिर था. इस संबंध में केंद्रीय सूचना आयोग ने 2017 में सरकार से पूछा कि ताजमहल समाधि है या शिव मंदिर? यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन याचिका को वहां खारिज कर दिया गया.

क्या हैं तर्क : इतिहासकार पीएन ओक ने अपनी किताब में जिन तथ्यों की ओर इशारा किया है. इनमें कहा गया है कि सदियों पुराना संस्कृत नाम तेज-ओ-महालय एक शिव मंदिर का प्रतीक है. ताजमहल शब्द संस्कृत शब्द तेजोमहालय का ही एक रूप है जो शिव मंदिर को दर्शाता है. इसमें अग्रेश्वर महादेव यानी आगरा के भगवान विराजमान हुआ करते थे. वहीं, संगमरमर के चबूतरे पर चढ़ने से पहले जूते उतारने की परंपरा शाहजहां से पहले के समय से शुरू हुई थी. तब ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था. अगर ताज की उत्पत्ति एक मकबरे के रूप में हुई होती तो जूते उतारने की जरूरत नहीं होती क्योंकि कब्रिस्तान में जूते की जरूरत होती है. यहां यह भी देखा जाता है कि मकबरे का आधार स्लैब सादे सफेद रंग में संगमरमर का तहखाना है जबकि इसकी अधिरचना और दो मंजिलों पर अन्य तीन मकबरे जड़े हुए लता डिजाइनों से ढके हैं. यह बताता है कि शिव की मूर्ति का संगमरमर का आसन अभी भी बना हुआ है और मुमताज का मकबरा नकली है.

ताजमहल के अंदर का मकबरा
ताजमहल के अंदर का मकबरा

तेजोमहालय का निर्माण सन 1155 में किया गया : पीएन ओक की थ्योरी यह दावा करती है कि ताजमहल का वास्तविक नाम तेजोमहालय है. इसका निर्माण 1155 में किया गया था. उनके मुताबिक तब वहां एक शिव मंदिर हुआ करता था. ओक के अनुसार मुगलों के भारत आने से पहले ही आगरा में एक भव्य स्मारक मौजूद था. पीएन ओक ने अपनी किताब में बादशाहनामा के दो पन्नों का अंग्रेजी अनुवाद किया था. शाहजहां के दरबारी लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने ही बादशाहनामा लिखी थी. वो किताब फारसी में थी. ऐसे में लंबे समय तक किताब में लिखी बातें राज रहीं.

राजामान सिंह की हवेली थी ताजमहल : पीएन ओक ने बादशाहनामा के दो पन्ने 402 और 403 का अंग्रेजी अनुवाद किया. उस अनुवाद के अनुसार 402 नंबर पन्ने पर लिखा था- 'महान शहर आगरा (तब अकबराबाद) के दक्षिण में एक खूबसूरत और भव्य हवेली है. वो राजा मान सिंह की है. वर्तमान में उस हवेली का स्वामित्व मान सिंह के पोते जय सिंह के पास है. रानी के दफन के लिए इसी जगह को चुना गया. राजा जय सिंह ने अपनी इस पैतृक विरासत को काफी महत्व दिया लेकिन फिर शासक शाहजहां को वो ये हवेली मुफ्त में देने को तैयार हो गया. फिर भी ईमानदारी दिखाते हुए जय सिंह को उस भव्य हवेली के बदले में 'शरीफाबाद' दिया गया.' अब पीएन ओक ने इस अनुवाद के आधार पर ये बताने का प्रयास किया कि शाहजहां ने असल में राजा मान सिंह के पोते जय सिंह से उनकी भव्य हवेली मांगी थी. ओक के मुताबिक पहले ऐसा दावा किया गया था कि शाहजहां ने राजा जय सिंह से एक जमीन मांगी थी. बादशाहनामा का जो अनुवाद उन्होंने करवाया उसके मुताबिक एक जमीन नहीं बल्कि भव्य हवेली की मांग रखी गई थी.

कुछ फारसी शब्दों का जिक्र करते हुए ओक ने अपनी बात को प्रमुखता से लिखा है. उदाहरण के लिए 'मंजिल-ए-राजा मानसिंह बुद वादरी वक्त बा राजा जयसिंह' का मतलब बताया कि ये जो हवेली है, राजा मान सिंह की है. यह अभी वर्तमान में राजा जय सिंह के स्वामित्व में है. आगे उन्होंने ये भी लिखा कि 'इमरत-ए-अलीशान' का मतलब एक भव्य विशाल इमारत होता है.

पीएन ओक
पीएन ओक

पीएन ओक को क्यों लगा ताजमहल मंदिर? : वैसे 70 के दशक में पीएन ओक ने ताजमहल पर एक और किताब लिखी थी. उस किताब का नाम था The Taj Mahal Is A Temple Palace. उन्होंने अपनी किताब 'Taj Mahal: The True Story’ में तेजोमहालय और बाद में जय सिंह पर फोकस किया था. वहीं, अपनी ही दूसरी किताब में उन्होंने कुछ ऐसे तर्क रखे थे जिसके आधार पर वे ताजमहल को एक मंदिर मान रहे थे. उनके सवाल एकदम स्पष्ट थे. पहला यह कि ताजमहल संगमरमर की जाली में 108 कलश क्यों बने थे? यह परंपरा मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों में देखी जाता है. दूसरे मकबरे में जूते-चप्पल उतारने की मान्यता नहीं लेकिन संगमरमर की सीढ़ियों पर यह परंपरा क्यों है. तीसरे 'ताज' और 'महल' संस्कृत शब्द, मकबरे को फिर संस्कृत नाम कैसे दिया गया? अब पीएन ओक ने अपनी किताब और कुछ तथ्यों के आधार पर दो बातों पर जोर दिया. पहला ये कि ताजमहल असल में तेजोमहालय था. दूसरा ये कि वहां पर एक शिव मंदिर था. हालांकि उनके इन तथ्यों को कोर्ट से कभी मान्यता नहीं मिली. साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएन ओक की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें वह ताजमहल को एक हिंदू मंदिर घोषित कराना चाहते थे.

क्या है ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज, मकबरा है या तेजोमहालय, जानें ऐतिहासिक तथ्यों संग पूरी कहानी
क्या है ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज, मकबरा है या तेजोमहालय, जानें ऐतिहासिक तथ्यों संग पूरी कहानी

बैगले और देसाई ने भी अपनी किताब में रखे थे कई तथ्य : ऐसी ही एक किताब Taj Mahal: The Illumined Tomb लिखी गई जिसके लेखक बैगले और देसाई थे. उनकी वो किताब भी उन्हीं समान तथ्यों के साथ लिखी गई. उस किताब में भी राजा मान सिंह और राजा जय सिंह को हवेली का मालिक बताया गया. बताया गया कि राजा जय सिंह से शाहजहां ने एक हवेली ली थी. किताब में बताया गया कि ऐसे कोई भी सबूत या प्रमाण नहीं हैं जो साबित करते हों कि कभी भी आगरा में ताजमहल की जगह कोई दूसरी धार्मिक इमारत थी. लेखक ने अपनी किताब में उस करार की एक कॉपी भी पेश की है जो शाहजहां और जय सिंह के बीच हुआ था.

ताजमहल का नक्शा
ताजमहल का नक्शा

यह भी पढ़ें : ताजमहल के 22 कमरों की जांच की याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज

उस फरमान में लिखा है कि जय सिंह ने अपनी इच्छा से अपनी हवेली को मुमताज महल बेगम के मकबरे के लिए दान कर दिया था. उसी फरमान में इस बात का भी जिक्र है कि इस हवेली के देने के बदले जय सिंह को भी शाहजहां ने 4 हवेलियां दी थीं. अपनी किताब में बैगले और देसाई ने उस तारीख का भी जिक्र किया है जब इस फरमान को मान्यता प्राप्त हुई थी. लेखकों के मुताबिक 28 दिसंबर 1633 को जय सिंह की हवेली को लेकर डील पक्की हुई थी. वहीं इस बात पर भी जोर रहा है कि उस जमाने में भी फरमान के अंदर लगातार 'हवेली' शब्द का इस्तेमाल हुआ. उनकी नजरों में ये इस बात को साबित करता है कि ताजमहल की जगह पहले कोई धार्मिक स्थल नहीं था. लेखकों के ये कथन पीएन ओक के उस दावे के इतर हैं जहां कहा गया कि ताजमहल पहले तेजोमहालय था.

तेजोमहालय के दावे पर सरकार का पक्ष : इस विवाद और किताबों में किए गए दावों के बीच सरकार सांसत में नजर आई. ऐसा ही एक मामला 2015 में भी सामने आया था जब 6 वकीलों ने आगरा कोर्ट में एक याचिका डाल अपील की कि उन्हें ताजमहल में दर्शन करने दिया जाए, पूजा की अनुमति मिले और वहां हो रही मुस्लिमों की नमाज पर रोक लगे. इन वकीलों का तर्क था कि ताजमहल असल में तेजोमहालय है और शाहजहां ने इसे राजा जय सिंह से हड़प लिया था. Bar&Bench की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में केंद्र ने ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर इन तमाम दावों को मनगढ़ंत और स्वयं निर्मित बता दिया था. उनकी नजरों में ऐसा कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास था. तब सरकार ने भी कोर्ट में ये माना था कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था. बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने भी आगरा कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था. स्पष्ट कहा गया था कि ताजमहल एक मकबरा है. मंदिर नहीं है.

बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां
बंद की गईं 22 कमरों की खिड़कियां

डॉ. डी दयालन की पुस्तक में भी किए गए कई दावे : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. डी दयालन ने अपनी पुस्तक ताजमहल एंड इट्स कन्जरवेशन में लिखा कि मुहर्रम की तीसरी तारीख को 4 दिसंबर 1652 को शहजादा औरंगजेब जहांआरा के बाग में पहुंचे. अगले दिन उन्होंने चमकते हुए मकबरे को देखा. उसी भ्रमण में औरंगजेब ने शाहजहां को पत्र लिखकर बताया कि इमारत की नींव मजबूत है लेकिन गुंबद से पानी टपक रहा है. औरंगजेब ने पत्र में लिखा, ताजमहल की चारों छोटी छतरियां और गुंबद बारिश में लीक हो रही हैं. संगमरमर वाले गुंबद पर दो से तीन जगह से बारिश में पानी निकल रहा है. इसकी मरम्मत कराई गई है. देखते हैं कि अगली बारिश में क्या होगा. इस पत्र के आधार पर ही यह रहस्य गहराया कि अगर ताज 1652 में बना था तो गुंबद इतनी जल्दी कैसे लीक हो गया ? जैसे ही सैलानियों के लिए ताजमहल के हिस्सों को बंद किया गया और ताले लगने शुरू हुए, वैसे-वैसे विवाद बढ़ा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 50 सालों में ताज का बड़ा हिस्सा पर्यटकों के लिए बंद कर दिया है. सैलानियों की दूरी जैसे-जैसे ताज से बढ़ी, वैसे-वैसे ताज के तहखाने और धार्मिक नजरिए से देखने का विवाद गहराता चला गया. रहस्य भी गहराया.

सबसे पहले मीनारें, फिर तहखाना किया बंद

ताजमहल की चारों मीनारों में पर्यटक पहले न केवल घूम सकते थे बल्कि सबसे ऊपर भी पहुंच सकते थे. कई पर्यटक जोड़ों ने मीनारों से कूदकर आत्महत्या कर ली थी. ताजगंज निवासी और खुद्दाम-ए-रोजा कमेटी के अध्यक्ष ताहिरुद्दीन ताहिर बताते हैं कि आत्महत्या के मामलों के बाद मीनारों पर प्रवेश बंद कर दिया गया. मीनारों में नीचे दरवाजों पर ताला लगाया गया. 1970 के दशक में मीनारें बंद होने के बाद तहखानों को बंद किया गया था. ताजमहल में एएसआई ने न केवल मीनारों और तहखाने को बंद किया बल्कि उत्तरी दीवार के दोनों दरवाजे बंद कर दिए. यहां से कभी शहंशाह शाहजहां ताजमहल आते थे. आगरा किले से ताजमहल तक नाव के जरिए वह उत्तरी दरवाजों से ही पहुंचते थे और सीढ़ियों के जरिए चमेली फर्श तक जाते थे. एएसआई ने 1978 की बाढ़ के बाद यमुना किनारे की उत्तरी दीवार पर दोनों दरवाजों को हटाकर उनकी जगह लाल ईंटों की दीवार से उन्हें बंद कर दिया.

जयपुर की राजकुमारी का दावा, ताज मुगलों की नहीं हमारी पुरखों की विरासत : राजस्थान के राज परिवार से दीया कुमारी ने भी ताजमहल को लेकर बड़ा बयान दिया है. राजसमन्द सांसद दीया कुमारी ने कहा कि ताजमहल हमारी प्रॉपर्टी थी. उन्होंने कहा कि ताजमहल की जमीन हमारे पुरखों की थी. हमारे पोथीखाने में जमीन से जुड़े दस्तावेज रखे हैं. जमीन हमारी थी लेकिन राज मुगलों का था. इसलिए उन्होंने जमीन ले ली और उस पर ताजमहल बनवा लिया. हो सकता है तब उन्हें वह जमीन पसंद आई हो. सांसद ने इसी के साथ ताज के बंद हिस्से को खोलने की भी मांग की है.

Last Updated : May 12, 2022, 7:25 PM IST
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