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लखनऊ: रोडवेज कर्मियों को नहीं मिल रही वर्दी की सिलाई, इसलिए कर रहे ढिलाई

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने अपने चालकों और परिचालकों के लिए वर्दी पहनना अनिवार्य कर दिया है. लेकिन, विभाग की तरफ से कर्मचारियों को बनी बनाई वर्दी की जगह कपड़ा दिया जा रहा है. जिससे कर्मचारियों को खुद कड़ा सिलाना है. लेकिन, विभाग की तरफ से कर्मचारियों को वर्दी सिलाने के लिए कोई भत्ता नहीं दिया जा रहा है. ऐसे में कर्मचारी वर्दी पहनने को लेकर ढिलाई बरत रहे हैं.

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उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन विभाग के कर्मचारी
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Published : Oct 16, 2020, 7:59 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम प्रशासन के एक तुगलकी फरमान से हजारों ड्राइवर और कंडक्टरों की जान आफत में पड़ गई है. उन्हें नौकरी जाने का खतरा लगने लगा है. दरअसल, रोडवेज के सीजीएम (प्रशासन) ने एक आदेश जारी किया है कि चेकिंग के दौरान ड्राइवर-कंडक्टरों के वर्दी में न पाए जाने पर उन पर 300 जुर्माना लगेगा. इसके बाद भी नहीं सुधरे तो संविदाकर्मी की संविदा खत्म कर दी जाएगी, वहीं नियमित कर्मी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. अब चालक-परिचालकों के सामने समस्या यह है कि रोडवेज प्रशासन की तरफ से साल भर पहले एक जोड़ी वर्दी तो दी गई जिसे लगातार साल भर पहनकर बस पर चलना संभव नहीं है. ऐसे में चेकिंग के दौरान अगर वर्दी में नहीं मिले तो जुर्माना भरना पड़ेगा साथ ही नौकरी जाने का खतरा बना भी बना रहेगा. उधर, रोडवेज यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि वर्दी का कपड़ा दिया जा रहा है, सिलाई नहीं जा रही है. ऐसे में आखिर चालक-परिचालक करें भी तो क्या करें. विभाग को इस तरह के आदेश को वापस लेना होगा.

देखें रिपोर्ट
  • वर्दी उपलब्ध कराने के बजाय कपड़ा दे रहा रोडवेज प्रशासन
  • वर्दी की सिलाई नहीं मिलने से परेशान ड्राइवर-कंडक्टर
  • कुछ भी बोलने को तैयार नहीं रोडवेज अधिकारी
  • रोडवेज प्रशासन के फरमान से आफत में ड्राइवर-कंडक्टरों की जान

वर्दी के लिए दिया जा रहा कपड़ा, लेकिन नहीं मिल रही सिलाई

चालकों और परिचालकों के मुताबिक विभाग ने साल पहले एक जोड़ी वर्दी उपलब्ध कराई थी वह खराब होने लगी है, अब दूसरी वर्दी देने के बजाय अधिकारियों की तरफ से कपड़ा उपलब्ध कराया जा रहा है. लेकिन, सिलाई ही नहीं दी जा रही है. ऐसे में अपने पैसे लगाकर वर्दी सिलाने में दिक्कत है. इतना वेतन नहीं है कि घर का खर्च भी चल जाए और वर्दी भी सिल जाए. ड्राइवर-कंडक्टरों की अधिकारियों से मांग है कि वर्दी की सिलाई दी जाए.

नौकरी जाने डर से कुछ लोगों ने अपने पैसे लगाकर सिलाई वर्दी

रोडवेज प्रशासन की तरफ से जारी फरमान के बाद कुछ चालक-परिचालकों ने अपने पैसे लगाकर ही वर्दी सिलानी भी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि नौकरी चली जाएगी तो दिक्कत हो जाएगी. ऐसे में अपने पैसे लगाकर ही वर्दी सिला ली है. हालांकि, उनका कहना है कि संविदा कर्मी को इतना पैसा नहीं मिलता है कि वर्दी की सिलाई का खर्च उठा सके. विभाग को वर्दी देनी चाहिए थी, लेकिन अगर कपड़ा दे रहे हैं तो साथ में सिलाई भी देदें.

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कुछ कर्मचारियों ने अपने पैसे सिलाई वर्दी

तत्कालीन एमडी ने साल में दो जोड़ी वर्दी देने का दिया था आदेश

परिवहन निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डॉ राजशेखर ने सभी चालक-परिचालकों को साल में दो जोड़ी वर्दी उपलब्ध कराने का आदेश दिया था, लेकिन उनका तबादला हो गया और अब परिवहन निगम की तरफ से ड्राइवरों और कंडक्टरों को कपड़ा दिया जा रहा है और उन्हें खुद वर्दी सिलाने को कहा गया है.

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मास्क को लेकर भी परिवहन विभाग ने जारी किया है आदेश
तीन बार जुर्माना फिर नौकरी से बाहर का रास्ता

रोडवेज की तरफ से जारी आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि बस संचालन के दौरान पहली बार वर्दी में न पाए जाने पर 100 रुपये, दूसरी बार न पाए जाने पर 100 रुपये और तीसरी बार भी 100 रुपये जुर्माना लगेगा. लेकिन, चौथी संविदा कर्मी को नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा, वहीं नियमित चालक-परिचालक पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. कोरोना के दौर में यही नियम मास्क न लगाने पर भी लागू होगा. रोडवेज प्रशासन का यह फरमान कर्मचारियों की परेशानी का सबब बन गया है.


हजारों नियमित संविदा कर्मी करते हैं काम

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में 18000 नियमित कर्मचारी और 35000 संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं. इन सभी को वर्दी का कपड़ा मिल रहा है. लेकिन, सिलाई के पैसे नहीं. ऐसे में ज्यादातर कर्मचारी वर्दी सिला ही नहीं पा रहे हैं.

रोडवेज के कंडक्टर कौशलेंद्र प्रताप सिंह ने तो अपनी जेब से 450 देकर वर्दी ही सिला ली है. कौशलेंद्र का कहना है कि, हमें एक वर्दी का कपड़ा मिला था उसमें दो पैंट और दो शर्ट अपने आपसे सिला लिए हैं. लेकिन, सिलाई परिवहन निगम ने नहीं दी है. हमारी यह मांग है कि सिलाई दी जाए. चालकों को तो जूता दे दिया गया लेकिन परिचालकों को जूते भी नहीं दिए गए. एमडी ने कहा था सभी चालकों और परिचालकों को जूते और मोजे भी दिए जाएंगे. अगर चेकिंग के दौरान बिना वर्दी पकड़ा गया तो हम इसका विरोध करेंगे.



पिछले साल कर्मचारियों को वर्दी दी गई थी. साल भर से एक वर्दी लगातार पहनते हुए कर्मचारियों ने अपना काम किसी तरह से चलाया. तमाम चालक परिचालकों की वर्दियां फट गई हैं. अभी एक महीने पहले वर्दी का कपड़ा फिर से आया है. तत्कालीन एमडी राजशेखर ने कहा था कि हर चालक-परिचालक वर्दी में नजर आएगा उसका अनुपालन हो रहा है. तमाम डिपो में अभी कपड़ा भी नहीं मिल रहा है. कपड़ा दे भी दिया गया तो कर्मचारी सिलाई कहां से देगा. लखनऊ जैसे शहर में 1000 रुपये सिलाई पड़ती है संविदा कर्मचारी कहां से वर्दी सिलाएगा. हम वर्दी पहनने को तैयार हैं, लेकिन जो सुविधाएं उपलब्ध करानी है वह परिवहन निगम उपलब्ध नहीं करा रहा है. वर्दी के कपड़े के साथ ही सिलाई समय पर जरूर उपलब्ध कराई जाए.

-रजनीश मिश्रा, शाखा अध्यक्ष, रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद

लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम प्रशासन के एक तुगलकी फरमान से हजारों ड्राइवर और कंडक्टरों की जान आफत में पड़ गई है. उन्हें नौकरी जाने का खतरा लगने लगा है. दरअसल, रोडवेज के सीजीएम (प्रशासन) ने एक आदेश जारी किया है कि चेकिंग के दौरान ड्राइवर-कंडक्टरों के वर्दी में न पाए जाने पर उन पर 300 जुर्माना लगेगा. इसके बाद भी नहीं सुधरे तो संविदाकर्मी की संविदा खत्म कर दी जाएगी, वहीं नियमित कर्मी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. अब चालक-परिचालकों के सामने समस्या यह है कि रोडवेज प्रशासन की तरफ से साल भर पहले एक जोड़ी वर्दी तो दी गई जिसे लगातार साल भर पहनकर बस पर चलना संभव नहीं है. ऐसे में चेकिंग के दौरान अगर वर्दी में नहीं मिले तो जुर्माना भरना पड़ेगा साथ ही नौकरी जाने का खतरा बना भी बना रहेगा. उधर, रोडवेज यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि वर्दी का कपड़ा दिया जा रहा है, सिलाई नहीं जा रही है. ऐसे में आखिर चालक-परिचालक करें भी तो क्या करें. विभाग को इस तरह के आदेश को वापस लेना होगा.

देखें रिपोर्ट
  • वर्दी उपलब्ध कराने के बजाय कपड़ा दे रहा रोडवेज प्रशासन
  • वर्दी की सिलाई नहीं मिलने से परेशान ड्राइवर-कंडक्टर
  • कुछ भी बोलने को तैयार नहीं रोडवेज अधिकारी
  • रोडवेज प्रशासन के फरमान से आफत में ड्राइवर-कंडक्टरों की जान

वर्दी के लिए दिया जा रहा कपड़ा, लेकिन नहीं मिल रही सिलाई

चालकों और परिचालकों के मुताबिक विभाग ने साल पहले एक जोड़ी वर्दी उपलब्ध कराई थी वह खराब होने लगी है, अब दूसरी वर्दी देने के बजाय अधिकारियों की तरफ से कपड़ा उपलब्ध कराया जा रहा है. लेकिन, सिलाई ही नहीं दी जा रही है. ऐसे में अपने पैसे लगाकर वर्दी सिलाने में दिक्कत है. इतना वेतन नहीं है कि घर का खर्च भी चल जाए और वर्दी भी सिल जाए. ड्राइवर-कंडक्टरों की अधिकारियों से मांग है कि वर्दी की सिलाई दी जाए.

नौकरी जाने डर से कुछ लोगों ने अपने पैसे लगाकर सिलाई वर्दी

रोडवेज प्रशासन की तरफ से जारी फरमान के बाद कुछ चालक-परिचालकों ने अपने पैसे लगाकर ही वर्दी सिलानी भी शुरू कर दी है. उनका कहना है कि नौकरी चली जाएगी तो दिक्कत हो जाएगी. ऐसे में अपने पैसे लगाकर ही वर्दी सिला ली है. हालांकि, उनका कहना है कि संविदा कर्मी को इतना पैसा नहीं मिलता है कि वर्दी की सिलाई का खर्च उठा सके. विभाग को वर्दी देनी चाहिए थी, लेकिन अगर कपड़ा दे रहे हैं तो साथ में सिलाई भी देदें.

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कुछ कर्मचारियों ने अपने पैसे सिलाई वर्दी

तत्कालीन एमडी ने साल में दो जोड़ी वर्दी देने का दिया था आदेश

परिवहन निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डॉ राजशेखर ने सभी चालक-परिचालकों को साल में दो जोड़ी वर्दी उपलब्ध कराने का आदेश दिया था, लेकिन उनका तबादला हो गया और अब परिवहन निगम की तरफ से ड्राइवरों और कंडक्टरों को कपड़ा दिया जा रहा है और उन्हें खुद वर्दी सिलाने को कहा गया है.

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मास्क को लेकर भी परिवहन विभाग ने जारी किया है आदेश
तीन बार जुर्माना फिर नौकरी से बाहर का रास्ता

रोडवेज की तरफ से जारी आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि बस संचालन के दौरान पहली बार वर्दी में न पाए जाने पर 100 रुपये, दूसरी बार न पाए जाने पर 100 रुपये और तीसरी बार भी 100 रुपये जुर्माना लगेगा. लेकिन, चौथी संविदा कर्मी को नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा, वहीं नियमित चालक-परिचालक पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. कोरोना के दौर में यही नियम मास्क न लगाने पर भी लागू होगा. रोडवेज प्रशासन का यह फरमान कर्मचारियों की परेशानी का सबब बन गया है.


हजारों नियमित संविदा कर्मी करते हैं काम

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में 18000 नियमित कर्मचारी और 35000 संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं. इन सभी को वर्दी का कपड़ा मिल रहा है. लेकिन, सिलाई के पैसे नहीं. ऐसे में ज्यादातर कर्मचारी वर्दी सिला ही नहीं पा रहे हैं.

रोडवेज के कंडक्टर कौशलेंद्र प्रताप सिंह ने तो अपनी जेब से 450 देकर वर्दी ही सिला ली है. कौशलेंद्र का कहना है कि, हमें एक वर्दी का कपड़ा मिला था उसमें दो पैंट और दो शर्ट अपने आपसे सिला लिए हैं. लेकिन, सिलाई परिवहन निगम ने नहीं दी है. हमारी यह मांग है कि सिलाई दी जाए. चालकों को तो जूता दे दिया गया लेकिन परिचालकों को जूते भी नहीं दिए गए. एमडी ने कहा था सभी चालकों और परिचालकों को जूते और मोजे भी दिए जाएंगे. अगर चेकिंग के दौरान बिना वर्दी पकड़ा गया तो हम इसका विरोध करेंगे.



पिछले साल कर्मचारियों को वर्दी दी गई थी. साल भर से एक वर्दी लगातार पहनते हुए कर्मचारियों ने अपना काम किसी तरह से चलाया. तमाम चालक परिचालकों की वर्दियां फट गई हैं. अभी एक महीने पहले वर्दी का कपड़ा फिर से आया है. तत्कालीन एमडी राजशेखर ने कहा था कि हर चालक-परिचालक वर्दी में नजर आएगा उसका अनुपालन हो रहा है. तमाम डिपो में अभी कपड़ा भी नहीं मिल रहा है. कपड़ा दे भी दिया गया तो कर्मचारी सिलाई कहां से देगा. लखनऊ जैसे शहर में 1000 रुपये सिलाई पड़ती है संविदा कर्मचारी कहां से वर्दी सिलाएगा. हम वर्दी पहनने को तैयार हैं, लेकिन जो सुविधाएं उपलब्ध करानी है वह परिवहन निगम उपलब्ध नहीं करा रहा है. वर्दी के कपड़े के साथ ही सिलाई समय पर जरूर उपलब्ध कराई जाए.

-रजनीश मिश्रा, शाखा अध्यक्ष, रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद

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