लखनऊ: विधान परिषद में बुधवार को सत्ता पक्ष ओर से सदन में जोर आजमाइश की कोशिश घाटे का सौदा साबित हुई. विपक्ष ने बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष को निशाने पर लिया, लेकिन जब सत्ता पक्ष के बोलने की बारी आई तो हंगामे और नियम के झमेले में बोलने का मौका ही नहीं मिला. पीठ ने भी सत्ता पक्ष को बोलने का मौका देने से इनकार कर दिया.
उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी का सवाल उठाकर विपक्ष के सदस्यों ने विधान परिषद में सत्ता पक्ष पर जमकर निशाना साधा. कांग्रेस दल के नेता दीपक सिंह ने तो सरकार पर आरोप लगाया कि उसके मंत्री और मुख्यमंत्री अपना चेहरा चमकाने में जुटे हुए हैं. प्रदेश में निवेश का ढोल पीटा जा रहा है, लेकिन आज तक कोई न निवेश हुआ न युवाओं को रोजगार मिला. समाजवादी पार्टी की ओर से भी उसके कई सदस्यों नरेश उत्तम पटेल, सुनील सिंह 'साजन' और आनंद भदौरिया ने अपनी बात रखी.
ऐसे में सत्ता पक्ष के लोगों को यह नागवार लगा कि एक सूचना पर कई लोग बोलकर सदन का ज्यादा वक्त अपने पाले में ले जा रहे हैं. सत्ता पक्ष की ओर से सदन में कहा भी गया कि समाजवादी पार्टी के परिषद में 56 सदस्य हैं, इसलिए वे लोग किसी भी विषय पर चर्चा के दौरान ज्यादा वक्त ले रहे हैं. इसकी काट के तौर पर नेता सदन ने बेरोजगारी मुद्दे पर चर्चा का जवाब देने के लिए श्रममंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और बेसिक शिक्षा मंत्री डॉक्टर सतीश द्विवेदी का प्रस्ताव किया. इसका विपक्ष ने विरोध किया और हंगामा बढ़ने के चलते सदन स्थगित भी करना पड़ा.
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दो बार सदन स्थगित होने के बाद पीठ से कार्य स्थगन सूचना अस्वीकार कर दी गई. ऐसे में एक बार फिर सत्ता पक्ष की ओर से दबाव बनाया गया कि विपक्ष के कई सदस्य इस मुद्दे पर बोल चुके हैं, इसलिए सत्ता पक्ष का भी जवाब आना चाहिए. इस पर विपक्ष ने आपत्ति की कि जब सूचना अस्वीकार हो चुकी है तो अब उस पर दोबारा चर्चा नहीं हो सकती. सत्ता पक्ष को बोलने का मौका नहीं मिलना चाहिए. इस विषय पर भी देर तक हंगामा होता रहा और पीठ ने व्यवस्था दी कि जब सूचना अस्वीकार कर दी गई है तो अब सत्ता पक्ष को बोलने का मौका नहीं दिया जाएगा.