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...जानिए छतर मंजिल की रहस्यमयी सुरंगों की अनकही दास्तान

राजधानी लखनऊ में बनी इमारत अपने आप में कई इतिहास समेटे है. यह इमारत नवाबों के दौर में आज से करीब 200 साल पहले 18वीं सदी में बनाई गई थी. वर्ष 2017 में सरकार द्वारा इसकी मरम्मत कराना शुरू की गई, लेकिन अचानक एक दिन इस इमारत के पिछले हिस्से की मिट्टी धस गई. इसके बाद रहस्मयी सुरंगों और तिलिस्मी तहखानों का पता चला.

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छतर मंजिल.
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Published : Feb 3, 2020, 12:21 PM IST

लखनऊ: नवाबों का शहर लखनऊ अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखता है. नवाबों के दौर में बनी यहां की इमारतें अपने आप में कई रहस्य और इतिहास समेटे हैं. ऐसा ही कुछ रहस्यमयी इतिहास शहर के बीचों-बीच बनी छतर मंजिल अपने में समेटे है. इमारत की संकरी सुरंगों से जुड़ी कहानी जानने के लिए देखिए संवाददाता अर्सलान समदी की खास रिपोर्ट......

छतर मंजिल की रहस्यमयी सुरंगों की अनकही दास्तान.

लखनऊ के नवाब सआदत अली खां ने फ्रांसीसी सेना के जनरल क्लाउड मार्टिन से इस इमारत को खरीदा था, लेकिन उनके बाद नवाब गाजीउद्दीन हैदर ने इस इमारत का विस्तार करवाना शुरू किया. उनकी मौत के बाद नवाब नासिर उद्दीन हैदर ने इसका निर्माण पूरा करवाया. कहते हैं कि आज से करीब 200 साल पहले 18वीं सदी में इसका निर्माण पूरा हुआ था. वर्ष 2017 में सरकार द्वारा इसकी मरम्मत कराना शुरू की गई, लेकिन अचानक एक दिन इस इमारत के पिछले हिस्से की मिट्टी धस गई. इसके बाद रहस्मयी सुरंगों और तिलिस्मी तहखानों का पता चला.

लखनऊ: नवाबों का शहर लखनऊ अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखता है. नवाबों के दौर में बनी यहां की इमारतें अपने आप में कई रहस्य और इतिहास समेटे हैं. ऐसा ही कुछ रहस्यमयी इतिहास शहर के बीचों-बीच बनी छतर मंजिल अपने में समेटे है. इमारत की संकरी सुरंगों से जुड़ी कहानी जानने के लिए देखिए संवाददाता अर्सलान समदी की खास रिपोर्ट......

छतर मंजिल की रहस्यमयी सुरंगों की अनकही दास्तान.

लखनऊ के नवाब सआदत अली खां ने फ्रांसीसी सेना के जनरल क्लाउड मार्टिन से इस इमारत को खरीदा था, लेकिन उनके बाद नवाब गाजीउद्दीन हैदर ने इस इमारत का विस्तार करवाना शुरू किया. उनकी मौत के बाद नवाब नासिर उद्दीन हैदर ने इसका निर्माण पूरा करवाया. कहते हैं कि आज से करीब 200 साल पहले 18वीं सदी में इसका निर्माण पूरा हुआ था. वर्ष 2017 में सरकार द्वारा इसकी मरम्मत कराना शुरू की गई, लेकिन अचानक एक दिन इस इमारत के पिछले हिस्से की मिट्टी धस गई. इसके बाद रहस्मयी सुरंगों और तिलिस्मी तहखानों का पता चला.

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एंकर- नवाबों का शहर लखनऊ अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखता है... नवाबों के दौर में बनी यहाँ की इमारतें अपने आप में कई रहस्य और इतिहास समेटे है। ऐसा ही कुछ रहस्यमयी इतिहास शहर के बीचों बीच बनी छतर मंज़िल अपने मे समेटे है। आईये चलते है इस इमारत की संकरी सुरंगों से और जानते है इस इमारत की कहानी सँवदाता अर्सलान समदी की ज़बानी।

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लखनऊ के नवाब सआदत अली खां ने फ्रांसीसी सेना के जनरल क्लाउड मार्टिन से इस इमारत को खरीदा था लेकिन उनके बाद नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने इस इमारत का विस्तार करवाना शुरू किया हालांकि उनकी मौत के बाद नवाब नासिर उद्दीन हैदर ने इसका निर्माण पूरा करवाया। कहते है कि आज से करीब 200 साल पहले 18वी सदी में इसका निर्माण पूरा हुआ। वर्ष 2017 में सरकार द्वारा इसकी मरम्मत कराना शुरू की गई लेकिन अचानक एक दिन इस इमारत के पिछले हिस्से की मिट्टी धस गई जिसके बाद रहस्मयी सुरंगों और तिलिस्मी तैखानो का यहाँ पता चला।

WT1- SURANG KE ANDAR START

VO2- छतर मंज़िल की सुरंगे अपने आप में कई इतिहास समेटे है.. बताया जाता है कि इमारत के नीचे निकली यह सुरंगे नवाबों और उनकी बेगमों के साथ उनके लोगों के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए होती थी और इन्ही सुरंगों स चलते हुए हमें फिर इमारत में ऊपर जाने वाला वो रास्ता मिला जो पिछले कई सालों से ज़मींदोज़ हो चुका था.. आगे हमने इन्ही ज़ीनों से अपना सफर इमारत की ओर शुरू किया।

WT2- SURANG SEY ZINEY KI OR

VO3- छतर मंजिल की सुरंगों से निकलकर अब हम उन ज़ीनों से ऊपर की ओर बढ़ने लगे जिनका इस्तेमाल कभी नवाब किया करते थे और पिछले काफी वर्षों से जो जमीन के अंदर दफन हो चुके थे ऊपर बढ़ते ही हमारी नजरें बाहर बहती गोमती नदी पर पड़ी जो अब वक्त के साथ भले ही सूख कर इमारत से दूर हो गई हो लेकिन कभी यही गोमती नदी का पानी छतर मंजिल की सुरंगों तक आया करता था और नवाब यहीं से अपनी नाव की सवारी की शुरूआत किया करते थे

WT3- ZINO SEY GOMTI NADI KA DEEDAR

VO4- छतर मंज़िल के ज़ीनों से होते हुए अब हम इमारत के ऊपरी भाग में पहुँच चुके थे जहाँ पर इमारत का मुख्य गुम्बद अपनी बेहतरीन नक्काशी के साथ आज भी मौजूद है। जानकर कहते है कि छतर मंज़िल इंडो यूरोपियन आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना है और इस इमारत को ठंडा रखने के लिए पुराने दौर में छतों पर डामर के लेप का इस्तेमाल होता था जिससे सूरज की किरणें इस इमारत में सीधे अंदर तक नही पहुँचती थी।

WT4- TOP FLOOR AND TERRACE FLOORING

VO5- छतर मंज़िल से उतरते हुए अब वापस सुरंग में पहुँच चुके थे और संकरे रास्तो से होते हुए हमारी नज़र उस जगह पर पड़ी जहाँ कभी नवाबों की नौका बंधा करती थी। आज भी यहाँ पर नाव बांधे जाने वाले लोहे के भारी भरकम कुंडे ज़मीन में गढ़े नज़र आते है।

WT5- NAU K KUNDE

VO6- 1781 में बनी यह इमारत पिछले कई वर्षों से ज़मीन के अंदर अपने इतिहास छुपाए थी हालांकि वर्ष 2017 में इसकी मरम्मत के लिए लगी ASI की टीम ने ज़मीन धसने के बाद यहाँ पर सुरंगों और एक मंज़िला इमारत के हिस्से को देखा.. अब हम इमारत के उस हिस्से में पहुँच गए थे जहाँ से साफ देखा जा सकता था कि छतर मंज़िल का ऊपरी हिस्सा तो आज भी अपने रंग में नहाया हुआ था लेकिन खुदाई के बाद निकला हिस्सा अपना पुराना रंग बयान कर रहा था।

WT6- CHATAR MANZIL KA NICHLA HISSA AUR UPRI HISSE KA NAZARA

VO7- आज़ादी के बाद छतर मंज़िल CDRI के नाम से जाने जानी लगी और सेंट्रल ड्रग रीसर्च इंस्टीट्यूट में दवाओं के प्रयोग जानवरो पर करें जाने लगे.. यही वजह थी कि इस इमारत और इसके आसपास लोग पुराने दौर में निकलने से कतराते थे और तरह तरह की भूतिया कहानियां इस इमारत के बारे में गढ़ी जाने लगी... हालांकि ईटीवी भारत की टीम ने उन संकरी सुरंगों से तैखानो और रिसर्च के लिए आज़ादी के बाद से इस्तेमाल होने वाले लैब का भी मोययना किया और पाया कि भले ही यह वीरान इमारत देखने में भूतिया लगे लेकिन यहाँ पर ऐसा कुछ नही है जिससे हमें किसी खतरे का एहसास हो लेकिन यह इमारत अपने आप में इतिहास के कई पन्नो को दर्शाती है।

WT7- LAB CLOSING..Conclusion:
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