लखनऊ: प्रेम प्रकाश सिंह, नाम के मुताबिक इस शख्स को प्रेम की नहीं गोलियों की भाषा आती थी. 17 साल की उम्र में पहली हत्या करने वाले प्रेम प्रकाश को दुनिया मुन्ना बजरंगी (Munna Bajrangi) के नाम से जानती है. एक वक्त था जब मुन्ना बजरंगी के नाम से पूर्वांचल थर थर कांपता था. रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाने में जिसे देर नहीं लगती थी, उस मुन्ना बजरंगी को गजराज सिंह जैसे गैंगस्टर का वरदहस्त मिला तो उसके अंदर का शैतान खुलकर सामने आ गया.
वो नब्बे का दशक था, जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपनी ज़मीन मज़बूत करने में लगी थीं. अपराधियों को भी खुलकर संरक्षण दिया जा रहा था. राजा भैया, बृजभूषण शरण सिंह, डीपी यादव, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे माफिया डॉन की तूती बोल रही थी. मुन्ना बजरंगी जैसे अपराधियों को फलने-फूलने के लिए भी ये सही समय था. एक के बाद दूसरी वारदातों को अंजाम देता मुन्ना बजरंगी, यूपी में जुर्म की दुनिया का जाना पहचाना नाम बन गया.
कैसे प्रेम प्रकाश बन गया मुन्ना बजरंगी?
1967 में जौनपुर के दयाल गांव में जन्मा मुन्ना बजरंगी बचपन से ही डॉन बनना चाहता था. 14 साल की उम्र में अवैध असलहा रखने पर उसके खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज किया गया. इसके बाद प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. हत्या, लूट अपहरण जैसे संगीन अपराधों की झड़ी लगा दी. जौनपुर में जेल के सामने भाजपा नेता रामचंद्र को उनके गनर के साथ मौत की नींद सुलाने वाले मुन्ना बजरंगी के नाम की चर्चा अब हर ओर होने लगी थी. 1996 में मुख्तार अंसारी के मऊ से विधायक बनने के बाद मुन्ना बजरंगी उसके साथ जुड़ गया. मुख्तार अंसारी के खास गुर्गे के तौर पर मुन्ना बजरंगी हत्या, अपहरण और फिरौती वसूलने जैसे अपराधों की अगुवाई करने लगा.
विधायक कृष्णानंद राय की हत्या
मुन्ना बजरंगी का सबसे बड़ा कारनामा नवंबर, 2005 में सामने आया, जब उसने क्वालिस गाड़ी पर सवार बीजेपी विधायक कृष्णानद राय को एके 47 से हमला कर मौत के घाट उतार दिया. इस हत्याकांड में मुन्ना बजरंगी के साथ छह और शातिर अपराधी शामिल थे. इन्होंने एके 47 से 400 राउंड फायर कर कृष्णनंद राय समेत उनके साथ गाड़ी में सवार छह और लोगों की हत्या कर दी थी. दरअसल इस हत्याकांड की वजह थी मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय की रंजिश. 2002 के चुनाव में माफिया डॉन बृजेश सिंह की मदद से कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी के भाई अफज़ल अंसारी को हराया था. इसके बाद से ही दोनों के बीच दुश्मनी गहरी हो गई थी.
Most Wanted मुन्ना बजरंगी
विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने यूपी पुलिस समेत सरकार को भी हिला दिया था. मुन्ना बजरंगी अब यूपी पुलिस की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में टॉप पर था. इससे पहले 1998 में मुन्ना बजरंगी का मौत से सामना हुआ. दरअसल यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) उस समय के नामी माफिया डॉन श्री प्रकाश शुक्ला को पकड़ने के लिए जाल बिछा रही थी. इसमें श्री प्रकाश शुक्ला तो नहीं फंसा, हां मुन्ना बजरंगी ज़रूर एसटीएफ के हत्थे चढ़ गया.
मौत को कैसे दी मुन्ना बजरंगी ने मात?
दरअसल एसटीएफ ने श्री प्रकाश शुक्ला को छोड़ कुछ दूसरे अपराधियों के फोन ट्रेस करने शुरू किए तो एसटीएफ को इनपुट मिला कि जौनपुर में कई हत्याओं को अंजाम देने वाला 50 हजार का इनामी बदमाश मुन्ना बजरंगी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई आर्म्स डीलर के संपर्क में है. STF को सूचना मिली कि आर्म्स डीलर हितेंद्र गुर्जर के साथ मुन्ना बजरंगी हरिद्वार से उत्तर प्रदेश आ रहा है. सूचना मिलते ही एसटीएफ ने 3 टीम बनाई. एक टीम ने हरिद्वार से मुन्ना बजरंगी का पीछा किया और अन्य 2 टीम पहले से जाल बिछा कर उसका इंतज़ार करती रहीं.
11 सितम्बर 1998 को दिल्ली के समयपुर बादली में एक पेट्रोल पम्प के पास एसटीएफ की टीम ने हितेंद्र और मुन्ना बजरंगी को घेर लिया. एसटीएफ और मुन्ना बजरंगी के बीच ताबड़तोड़ फायरिंग हुई. फायरिंग में मुन्ना बजरंगी को 9 और हितेंद्र को दो गोलिया लगी. फायरिंग में दिल्ली पुलिस के एक सिपाही के भी गोली लगी. एन्काउन्टर में मुन्ना बजरंगी और हितेंद्र गुर्जर गोली लगने से ढेर हो गए. एसटीएफ के जवानों ने हितेंद्र और मुन्ना की नब्ज टटोली तो समझ आ गया कि दोनों की मौत हो चुकी है. लेकिन औपचारिकता के लिए दोनों को राम मनोहर लोहिया संस्थान ले जाया गया.
अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टरों ने हितेंद्र और मुन्ना बजरंगी की मौत की पुष्टि कर दी. दोनों के शवों को अस्पताल के मुर्दाघर से पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. लेकिन कुछ देर बाद ही मुर्दाघर की तरफ से एक वार्ड बॉय बदहवास सा भागता हुआ आया, उसने स्ट्रेचर लिया हुआ था जिस पर मुन्ना बजरंगी पड़ा था. वार्ड बॉय ने बताया कि अभी इसमें जान बाकी है. ये सांस ले रहा है.आनन फानन में मुन्ना बजरंगी को ऑपरेशन थियेटर शिफ्ट किया गया.
डॉक्टरों ने उसके शरीर से 8 गोलियां निकालीं लेकिन 1 गोली दिल के पास धंसी रह गयी. मुन्ना को जब होश आया तो डॉक्टर ने उसे बताया कि एक गोली अभी भी उसके शरीर में है और वो दिल के करीब धंसी हुई है. जिसे निकालने में रिस्क हो सकता है. मुन्ना ने वो गोली निकलवाने से इनकार कर दिया.20 साल बाद मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद पोस्टमॉर्टम के दौरान डॉक्टरों को वो गोली मिली.
चुनाव मैदान में मुन्ना बजरंगी
मौत को इतने करीब से देखने के बाद भी मुन्ना बजरंगी के तेवर में कमी नहीं आई बल्कि जुर्म का उसका ग्राफ लगातार बढ़ता गया. कभी नेताओं को पीछे से ताकत देने वाला मुन्ना बजरंगी 2012 में खुद चुनाव मैदान में कूदा.हालांकि वो दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था लेकिन बावजूद इसके उसे अपना दल और पीस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया. लेकिन चुनाव में मुन्ना बजरंगी को किस्मत का साथ नहीं मिला. वो चुनाव हार गया लेकिन जुर्म की दुनिया में उसकी बादशाहत में कमी नहीं आई. अब वो कितना खूंखार हो चुका था वो इस बात से ज़ाहिर होता है कि उस पर इनाम राशि बढ़कर 7 लाख पहुंच चुकी थी.
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कैसे खत्म हुआ मुन्ना बजरंगी का खेल?
कहते हैं किस्मत हमेशा आपका साथ नहीं देती. पुलिस के साथ लंबी आंख मिचौली के बाद आखिरकार मुन्ना बजरंगी 2009 में मुंबई के मलाड से सिदि्धविनायक सोसायटी से गिरफ्तार कर लिया गया जहां वो प्रेम प्रकाश सिह नाम से अपनी पत्नी और तीन औलादों के साथ छिप कर रह रहा था. 8 जुलाई, 2018 को मुन्ना बजरंगी को यूपी की झांसी जेल लाया गया, अगले ही दिन उसे बागपत जेल शिफ्ट कर दिया गया. लेकिन 9 जुलाई की तड़के जेल में ही कैद एक दूसरे हिस्ट्रीशीटर सुनील राठी ने मुन्ना बजरंगी के सिर में 10 गोलियां ठोंक कर उसे मौत की नींद सुला दिया. करीब तीन दशक तक आतंक का पर्याय बने पूर्वांचल के माफिया डॉन के अंत के साथ ही आम लोगों के साथ-साथ पुलिस ने भी चैन की सांस ली.
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