लखनऊ: एक समय माल, बक्शी का तालाब, कुंभरावां, मलिहाबाद, रहीमाबाद एवं इटौंजा आदि क्षेत्रों आम से अधिक अमरूद का रकबा हुआ करता था, जो आज अपने निम्न स्तर पर पहुंच चुका है. किसान कीट और बीमारियों के कारण अमरूद की खेती छोड़ रहे हैं. यही वजह है कि लखनऊ में अमरूद के बागों की संख्या लगातार कम होती जा रही है.
कृषि विशेषज्ञ डॉ योगेश शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य के लिए अमरूद बहुत ही लाभदायक है. इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, सी तथा आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम तथा मिनरल होते हैं. अमरूद में विटामिन सी होने के कारण यह अच्छा एंटीऑक्सीडेंट भी है. इसकी पत्तियों का जूस शरीर में ऐठन या मिर्गी जैसे लक्षण दिखाई देने पर प्रयोग किया जाता है. अमरूद में फेनोलिक कंपाउंड होता है, जो शरीर में घातक कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है तथा यह शरीर की उपयोगी कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है.
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अमरूद में क्वेर्सिटिन नामक तत्व पाया जाता है, जो एक अच्छा इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. अमरूद के फल एवं पत्तियां में आंतों को मजबूत करने की प्रबल शक्ति होती है. अमरूद में पाया जाने वाला एथेनॉल शुक्राणु की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होता है. अमरूद का प्रयोग करते रहने से बांझपन की समस्या नहीं होती. अमरूद की पत्तियों तथा फलों में एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल तथा एंटीफंगल तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर की रक्षा करते हैं. मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी में अमरूद की पत्ती का जूस तथा ताजे पके हुए अमरूद बहुत लाभकारी होते हैं. अमरूद की बीज युक्त प्रजातियों का सेवन करने से पेट संबंधी बीमारी तथा डायरिया से राहत मिलती है. यह आंखों की रोशनी को बढ़ाता है तथा मोटापा को कम करता है.
वैसे तो अमरूद की बहुत प्रजातियां हैं, जिसमें इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ सफेदा, एपील कलर चित्तीदार, इलाहाबाद सुरखा, मिर्जापुर सीडलेस, सीआईएसएचजी-1, सीआईएसएचजी-2 तथा बरफ खाना प्रमुख हैं. इसमें लखनऊ 49 बहुत ही स्वादिष्ट और सुरक्षित माना जाता था. अमरूद के लिए रोपाई का उचित समय जुलाई का महीना होता है. एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 6 मीटर तथा लाइन से लाइन की दूरी 6 मीटर रखनी चाहिए. यथासंभव 1 फिट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति गड्ढा 500 ग्राम तथा 5 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर एवं 100 ग्राम नीम की खली को आपस में मिलाकर गड्ढे से निकली हुई मिट्टी की आधी मात्रा में मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए. उसके बाद पौध रोपाई करनी चाहिए. औसतन 5 वर्ष के पौधों के लिए 300 ग्राम नाइट्रोजन, 200 ग्राम फास्फोरस 150 ग्राम पोटाश, 10 ग्राम जिंक, 5 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर, 200 ग्राम नीम की खली तथा प्रति पौधा 500 ग्राम मछली का चूरा एवं 2 ग्राम डाईटेरा पाउडर का प्रयोग करने से अच्छी फसल होती है और कीट एवं बीमारियों का खतरा कम रहता है.
ये कीट फलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट की मादा, फलों के अंदर अंडे दे देती है और इन अंडों से निकले हुए मैगट फलों के गुदे को खाते हैं. इसकी वजह से अमरूद में कई छेद बाहर दिखाई पड़ते हैं. फलों में फर्मेंटेशन अंदर ही अंदर प्रारंभ हो जाता है, जिससे फल सड़ने लगते हैं. ऐसे फल पकने से पहले ही गिरने लगते हैं. इस कीट के प्रकोप से कभी-कभी 70% तक नुकसान हो जाता है.
चंद्र भानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि यदि समय से किसान इस मक्खी को दूर कर सकें तो फसल चौपट होने से बच जाती है. ऐसा होने पर पेड़ के आसपास गिरे हुए फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए. फलों के पूरी तरह पकने से पहले तोड़ लेने से इस कीट के प्रकोप से बचा जा सकता है. इस मक्खी से अमरूद की पैदावार को बचाने के लिए निकोटीन युक्त रसायन थयाक्लोप्रिड 240 एससी की 0.5 एमएल मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फायदा होता है.