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लखनऊ के इस सरकारी स्कूल में दाखिले के लिए लगती है लाइन, लगाना पड़ता है जुगाड़

लखनऊ के बीकेटी स्थित बेहटा गांव में अंग्रेजी माध्यम का सरकारी प्राइमरी स्कूल है. इस स्कूल में दाखिले के लिए लाइन लगती है. हालत यह है कि अभिभावक आस-पड़ोस के निजी स्कूलों से निकालकर बच्चों को यहां लेकर आ रहे हैं.

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Published : Jun 27, 2022, 6:07 PM IST

सरकारी प्राइमरी स्कूल
सरकारी प्राइमरी स्कूल

लखनऊ : सरकारी स्कूलों को लेकर हमारे दिमाग में एक छवि है. न बैठने के लिए जगह, न पढ़ने के लिए संसाधन. खाली बैठे मास्टर साहब और पढ़ाई के समय खेलते बच्चे, लेकिन यह तस्वीर हर जगह सही नहीं बैठती है.
जी हां, लखनऊ का सरकारी प्राइमरी स्कूल बेहटा इसकी एक नजीर है. यह अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है. बख्शी का तालाब इलाके के बेहटा गांव में संचालित इस स्कूल में दाखिले के लिए लाइन लगती है. हालत यह है कि अभिभावक आस-पड़ोस के निजी स्कूलों से निकालकर बच्चों को यहां लेकर आ रहे हैं. इतना ही नहीं इस स्कूल में दाखिले के लिए जुगाड़ तक लगाना पड़ता है. यहां के शिक्षकों ने पांच साल में इस स्कूल की तस्वीर को बदल कर रख दिया है.

109 से 300 बच्चों का सफर : प्रदेश सरकार ने 2018 में अंग्रेजी माध्यम में कुछ सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों का संचालन करने का फैसला लिया था. इसमें चुनिंदा शिक्षकों को जिम्मेदारी दी गई थी. इस विद्यालय की प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने 28 मार्च 2018 में स्कूल की जिम्मेदारी संभाली. उस समय स्कूल की छात्रसंख्या 103 थी. वह बताती हैं कि स्कूल की बिल्डिंग भी जर्जर थी. कई जगहों से भवन गिर भी गया था, लेकिन विभाग ने बड़ी जिम्मेदारी दी थी. पीछे भी नहीं हट सकते थे. चुनौतियां भी कम नहीं थीं. यहां लोगों को समझाना भी मुश्किल हो रहा था. काफी प्रयास किए. पम्पलेट बंटवाए. जागरूकता कार्यक्रम किए. नए दाखिले पर बच्चों को व्यक्तिगत संसाधनों से कॉपी और आवश्यक स्टेशनरी तक उपलब्ध कराई.

इस मेहनत के नतीजे भी देखने को मिले. 109 बच्चों के नए दाखिले मिले. 2018-19 में पूरे जिले में सर्वाधिक नए दाखिले थे. निजी स्कूलों की तरफ से परेशानी भी पैदा की गई लेकिन, पीछे नहीं हटे. 109 दाखिलों के बाद छात्र संख्या 212 तक पहुंची. इसके बाद लगातार संख्या बढ़ती रही. वहीं 2019-20 में छात्र संख्या 212 से 258 तक पहुंच गई.
फिर 2020-21 में 273 और जुलाई 2021 में यह बढ़कर 291 तक पहुंच गई. इस समय स्कूल में 290 दाखिले हो चुके हैं. अभी भी जारी हैं.

यहां बनती है वेटिंग लिस्ट : प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने बताया कि स्कूल में मात्र तीन कमरे हैं. बरामदे को जाल से कवर करवा दिया. उसे क्लासरूम की तरह से इस्तेमाल किया. स्कूल की रंगाई-पुताई कराई. सीमित संसाधन होने के कारण वह ज्यादा बच्चों को नहीं पढ़ा सकतीं. 2021 में तो दाखिलों को देखते हुए वेटिंग लिस्ट तक जारी करनी पड़ी थी. करीब 70 बच्चों की वेटिंग लिस्ट बनी थी.

यह है सक्सेज का फार्मूला : प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने बताया कि उन्होंने पढ़ने और पढ़ाने के तरीके में ही बदलाव कर दिया. शिक्षक-छात्र और अभिभावक के बीच एक बेहतर संवाद विकसित किया. आज स्कूल के सभी बच्चों के पास उनका मोबाइल नम्बर है. वह कभी भी फोन करके मदद ले सकते हैं. वह कहती हैं कि बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि संस्कार भी सीखने की जरूरत होती है. यह संस्कार वह शिक्षक से सीख सकते हैं. उन्होंने पिछले पांच साल में सिर्फ एक शिक्षक नहीं, बल्कि अभिभावक के रूप में बच्चों का साथ दिया.

ये भी पढ़ें : बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने की घोषणा, 1.42 लाख सरकारी स्कूलों को मिलेंगे दो-दो टैबलेट

वे बताती हैं कि वह नियमित रूप से हर बच्चे और उनके अभिभावकों के साथ संवाद स्थापित करती हैं. सप्ताह में बच्चों के घर जाती हैं. उन्होंने कहा कि खेल-खेल में बच्चों को सिखाने पर जोर दिया जाता है. पढ़ने और पढ़ाने के तरीकों में नवाचार पर भी जोर दिया जाता है.

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लखनऊ : सरकारी स्कूलों को लेकर हमारे दिमाग में एक छवि है. न बैठने के लिए जगह, न पढ़ने के लिए संसाधन. खाली बैठे मास्टर साहब और पढ़ाई के समय खेलते बच्चे, लेकिन यह तस्वीर हर जगह सही नहीं बैठती है.
जी हां, लखनऊ का सरकारी प्राइमरी स्कूल बेहटा इसकी एक नजीर है. यह अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है. बख्शी का तालाब इलाके के बेहटा गांव में संचालित इस स्कूल में दाखिले के लिए लाइन लगती है. हालत यह है कि अभिभावक आस-पड़ोस के निजी स्कूलों से निकालकर बच्चों को यहां लेकर आ रहे हैं. इतना ही नहीं इस स्कूल में दाखिले के लिए जुगाड़ तक लगाना पड़ता है. यहां के शिक्षकों ने पांच साल में इस स्कूल की तस्वीर को बदल कर रख दिया है.

109 से 300 बच्चों का सफर : प्रदेश सरकार ने 2018 में अंग्रेजी माध्यम में कुछ सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों का संचालन करने का फैसला लिया था. इसमें चुनिंदा शिक्षकों को जिम्मेदारी दी गई थी. इस विद्यालय की प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने 28 मार्च 2018 में स्कूल की जिम्मेदारी संभाली. उस समय स्कूल की छात्रसंख्या 103 थी. वह बताती हैं कि स्कूल की बिल्डिंग भी जर्जर थी. कई जगहों से भवन गिर भी गया था, लेकिन विभाग ने बड़ी जिम्मेदारी दी थी. पीछे भी नहीं हट सकते थे. चुनौतियां भी कम नहीं थीं. यहां लोगों को समझाना भी मुश्किल हो रहा था. काफी प्रयास किए. पम्पलेट बंटवाए. जागरूकता कार्यक्रम किए. नए दाखिले पर बच्चों को व्यक्तिगत संसाधनों से कॉपी और आवश्यक स्टेशनरी तक उपलब्ध कराई.

इस मेहनत के नतीजे भी देखने को मिले. 109 बच्चों के नए दाखिले मिले. 2018-19 में पूरे जिले में सर्वाधिक नए दाखिले थे. निजी स्कूलों की तरफ से परेशानी भी पैदा की गई लेकिन, पीछे नहीं हटे. 109 दाखिलों के बाद छात्र संख्या 212 तक पहुंची. इसके बाद लगातार संख्या बढ़ती रही. वहीं 2019-20 में छात्र संख्या 212 से 258 तक पहुंच गई.
फिर 2020-21 में 273 और जुलाई 2021 में यह बढ़कर 291 तक पहुंच गई. इस समय स्कूल में 290 दाखिले हो चुके हैं. अभी भी जारी हैं.

यहां बनती है वेटिंग लिस्ट : प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने बताया कि स्कूल में मात्र तीन कमरे हैं. बरामदे को जाल से कवर करवा दिया. उसे क्लासरूम की तरह से इस्तेमाल किया. स्कूल की रंगाई-पुताई कराई. सीमित संसाधन होने के कारण वह ज्यादा बच्चों को नहीं पढ़ा सकतीं. 2021 में तो दाखिलों को देखते हुए वेटिंग लिस्ट तक जारी करनी पड़ी थी. करीब 70 बच्चों की वेटिंग लिस्ट बनी थी.

यह है सक्सेज का फार्मूला : प्रधानाध्यापिका वंदना मिश्रा ने बताया कि उन्होंने पढ़ने और पढ़ाने के तरीके में ही बदलाव कर दिया. शिक्षक-छात्र और अभिभावक के बीच एक बेहतर संवाद विकसित किया. आज स्कूल के सभी बच्चों के पास उनका मोबाइल नम्बर है. वह कभी भी फोन करके मदद ले सकते हैं. वह कहती हैं कि बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि संस्कार भी सीखने की जरूरत होती है. यह संस्कार वह शिक्षक से सीख सकते हैं. उन्होंने पिछले पांच साल में सिर्फ एक शिक्षक नहीं, बल्कि अभिभावक के रूप में बच्चों का साथ दिया.

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वे बताती हैं कि वह नियमित रूप से हर बच्चे और उनके अभिभावकों के साथ संवाद स्थापित करती हैं. सप्ताह में बच्चों के घर जाती हैं. उन्होंने कहा कि खेल-खेल में बच्चों को सिखाने पर जोर दिया जाता है. पढ़ने और पढ़ाने के तरीकों में नवाचार पर भी जोर दिया जाता है.

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