लखनऊ : प्रदेश में निराश्रित पशुओं की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इस विकराल समस्या से निपटने के लिए सरकार हर स्तर से कदम उठा रही है. हालांकि समस्या इतनी जटिल है कि इसका निदान रातोरात संभव नहीं है. प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में यह समस्या सबसे बड़ी है. एक ओर सरकार जहां प्राकृतिक खेती के तहत खेत की उर्वरा क्षमता बढ़ाने के लिए गोबर, गोमूत्र का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दे रही है तो वहीं कई ऐसी योजनाएं भी संचालित हैं, जो पशु पालन को बढ़ावा देने वाली हैं.
प्रदेश में पशुओं के कम दूध देने अथवा दूध देना बंद कर देने पर लोग उन्हें खुले में छोड़ देते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) किसानों की आय तीन से चार गुना करने के लिए प्राकृतिक खेती पर जोर दे रहे हैं. इसी के तहत उन्होंने निराश्रित, बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना 2021 को मंजूरी दी थी. 2012 में की गई पशुगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 205.66 लाख गोवंश हैं, जिनमें से 12 लाख के लगभग गोवंश बेसहारा या निराश्रित हैं. किसान अगर 10 पशुओं को सहारा देता है तो प्रतिदिन के हिसाब से वह 300 रूपये कमा सकता है. हालांकि एक दशक में निराश्रित पशुओं की संख्या बढ़कर कहीं ज्यादा हो गई है.
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यही नहीं सरकार ने जिलाधिकारी से लेकर ग्राम प्रधानों तक को निराश्रित पशुओं का प्रबंध करने के लिए निर्देश दिए हैं. सरकार चाहती है कि लोगों की रुचि पशुपालन में बढ़े तो कई समस्याओं का समाधान एक साथ संभव है. बाजार की मांग की अनुरूप दूध और अन्य दुग्ध उत्पाद उपलब्ध नहीं है. यही कारण है कि इसकी कीमतें बढ़ती जा रही हैं. यदि किसान फिर से पशुपालन की ओर लौटने लगे तो उन्हें रोजगार तो मिलेगा ही, दुग्ध उत्पादों की समस्या भी कम होगी. साथ ही उन्हें प्राकृतिक खाद भी मिल सकेगी. स्वाभाविक है कि रासायनिक खाद के कम उपयोग से धरती की सेहत भी सुधरेगी.