लखनऊ : प्रदेश सरकार (state government) लगभग चार माह से रिक्त विधान परिषद की आठ सीटों के लिए अब तक कोई निर्णय नहीं कर सकी है. यह सभी सीटें सरकार की अनुशंसा से राज्यपाल के मनोनयन से भरी जानी हैं. बहुमत की सरकार होने के बावजूद निर्णयों में विलंब कई सवाल खड़े करता है. कभी सरकार और संगठन में गुटबाजी की बातें होती हैं तो कभी तालमेल की कमी की.
भाजपा में संगठनात्मक बदलावों से पहले यह कहा जाता रहा कि तत्कालीन संगठन मंत्री सुनील बंसल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) में विधान परिषद के लिए भेजे जाने वाले कुछ नामों को लेकर मतभेद है. यह बात कुछ हद तक सही भी लगता है, क्योंकि इन दोनों नेताओं में अनबन की बातें सत्ता के गलियारों में खूब होती रही हैं. विगत माह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने सुनील बंसल के स्थान पर धर्मपाल सिंह को प्रदेश महामंत्री संगठन बनाया है. इसके बाद नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति भी हो गई और स्वतंत्रदेव सिंह के स्थान पर चौधरी भूपेंद्र सिंह को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. मुख्यमंत्री, संगठन मंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कई बैठकें भी हो चुकी हैं. ऐसे में विधान परिषद के लिए नामित होने वाले सदस्यों के नाम न तय हो पाना सवाल तो खड़े करता ही है.
इस अनिर्णय से एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं सरकार और संगठन में किसी नाम पर कोई पेंच तो फंसा ही है. इसमें संदेह नहीं कि शीर्ष नेतृत्व भी इस स्थिति से अवगत होगा, बावजूद इसके निर्णय न हो पाना सवाल उठाने का मौका देता है. इसी सप्ताह मुख्यमंत्री, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और संगठन मंत्री की एमएलसी मसले पर बैठक हुई थी, पर उसमें भी कोई सहमति सामने नहीं आई. संभव है कि कुछ दिन में इस पर निर्णय हो. नामों के सामने आने के बाद ही इस बात का पता चल सकेगा कि आखिर पेंच कहां फंसा था.
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गौरतलब है कि सपा के वरिष्ठ नेता अहमद हसन के निधन के कारण उनकी सीट रिक्त है. वहीं ठाकुर जयवीर सिंह ने विधान सभा चुनाव जीता और विधान परिषद से त्याग पत्र दिया. इस कारण उनकी सीट भी खाली है. वहीं इसी वर्ष 28 अप्रैल को बलवंत सिंह रामूवालिया, वसीम बरेलवी और मधुकर जेटली की सदस्यता समाप्त हुई है. इसी तरह 26 मई को राजपाल कश्यप, अरविंद कुमार और डॉ संजय की सदस्यता भी खत्म हुई है. इस तरह आठ सीटें रिक्त हुई हैं, जिन पर मनोनयन होना है.