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इसी महीने खाली हो रही हैं विधान परिषद की छह सीटें, इन्हें मिलेगा मौका

विधान परिषद की 6 सीटें इसी महीने खाली हो रही हैं. योगी सरकार के पांच मंत्री इन्हीं सीटों में सदन के सदस्य बनेंगे और सिर्फ एक सीट पर ही भाजपा नेतृत्व किसी दूसरे नेता को सदन भेजने का काम करेगी.

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उत्तर प्रदेश विधान परिषद
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Published : May 10, 2022, 8:21 PM IST

लखनऊ: विधान परिषद की 6 सीटें इसी महीने खाली हो रही हैं. इसके लिए विधान परिषद सचिवालय (Legislative Council Secretariat) की तरफ से चुनाव कराए जाएंगे. लेकिन खास बात यह होगी कि योगी सरकार के पांच मंत्री इन्हीं सीटों में सदन के सदस्य बनेंगे और सिर्फ एक सीट पर ही भाजपा नेतृत्व किसी दूसरे नेता को सदन भेजने का काम करेगी.

योगी सरकार के मंत्री (minister in yogi government) जेपीएस राठौर, दयाशंकर मिश्रा दयालू, नरेंद्र कशयप, दानिश अंसारी और जसवंत सैनी मंत्री बनने के समय किसी सदन के सदस्य नहीं थे. ऐसी स्थिति में भाजपा नेतृत्व अब उन्हें विधान परिषद भेजेगा. इसके अलावा आगामी जुलाई महीने में भी 12 सीटें विधान परिषद की खाली हो रही हैं, जिनमें समायोजन को लेकर भाजपा नेताओं की तरफ से प्रयास किये जा रहे हैं. वहीं, भाजपा नेतृत्व इन सीटों पर जिन नेताओं को भेजने का काम करेगा, उनमें मुख्य रूप से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, मंत्री जयवीर सिंह, मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह जैसे नाम प्रमुख हैं. समाजवादी पार्टी भी जुलाई में खाली सीट में तीन नेताओं को एमएलसी बनाएगी. इसके अलावा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने वाले कई एमएससी और कई अन्य नेताओं को भी एमएलसी बनाए जाने की चर्चा है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

सूत्रों के अनुसार एक-दो सपा से आए नेताओं को एमएलसी बनाने की तैयारी है. इसके अलावा पार्टी के कई अन्य नेताओं को भी समायोजित किये जाने की तैयारी है. अभी मई महीने में खाली हो रही 6 सीटों में पांच मंत्री तो एक सीट पर भाजपा मीडिया से जुड़े एक नेता को उच्च सदन भेजने की चर्चा है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री (Political Analyst Dr. Dilip Agnihotri) ने बताया कि सत्तारूढ़ दल में दावेदारों का समायोजन चुनौती पूर्ण होता है. पदों की संख्या सीमित होती है. दावेदार बेशुमार होते हैं. परिवार आधारित पार्टियों में निर्णय एक केंद्र से होता है. भाजपा को कई स्तरों पर मंथन करना होगा. मई से जुलाई तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) सीटें रिक्त होनी है. विधानसभा में भाजपा को बहुमत है. विधयकों द्वारा निर्वाचित सदस्यों में उसका पलरा भारी रहेगा. इसी प्रकार राज्यपाल द्वारा नियुक्त सदस्यों में भी उसका कब्जा रहेगा. संविधान के अनुसार एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में रिटायर होते हैं. स्थानीय निकाय और विधयकों की ओर से अलग-अलग एक तिहाई, स्नातक और शिक्षकों द्वारा अलग-अलग 1/12 और 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं.

इसे भी पढ़ेंः योगी कैबिनेट का फैसलाः पदक विजेता खिलाड़ी बनेंगे राजपत्रित अधिकारी और अजय मिश्रा होंगे प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री ने बताया कि इस समय प्राथमिकता में योगी मंत्रिपरिषद के वह सदस्य हैं, जो या तो किसी सदन के सदस्य नहीं है या अगले कुछ समय में किसी सदन में नहीं रहेंगे. इनको विधान परिषद में भेजा जा सकता है. इसके अलावा भाजपा के पराजित नेता और दूसरे दलों को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए नेता भी लाइन में है. उन्होंने बताया कि सपा सरकार के दौरान तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को विधान परिषद में मनोनय के लिए सरकार ने सूची भेजी थी. इसके जबाब में राम नाईक ने संविधान का हवाला दिया था. उनका कहना था कि साहित्य कला सहकारिता और समाज सेवा के लोगों की ही नियुक्ति बाध्यता है. देखना होगा कि वर्तमान सरकार इस पर कितना अमल करती है. इसके साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य प्रकरण को भी ध्यान में रखना चाहिए. वह पांच वर्ष तक मंत्री रहे. चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा पर हमला बोलते हुए वे अलग हो गए. विधान परिषद सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है. भाजपा को इस संबन्ध में भी विश्वसनीय लोगों को ही अवसर देना चाहिए.

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लखनऊ: विधान परिषद की 6 सीटें इसी महीने खाली हो रही हैं. इसके लिए विधान परिषद सचिवालय (Legislative Council Secretariat) की तरफ से चुनाव कराए जाएंगे. लेकिन खास बात यह होगी कि योगी सरकार के पांच मंत्री इन्हीं सीटों में सदन के सदस्य बनेंगे और सिर्फ एक सीट पर ही भाजपा नेतृत्व किसी दूसरे नेता को सदन भेजने का काम करेगी.

योगी सरकार के मंत्री (minister in yogi government) जेपीएस राठौर, दयाशंकर मिश्रा दयालू, नरेंद्र कशयप, दानिश अंसारी और जसवंत सैनी मंत्री बनने के समय किसी सदन के सदस्य नहीं थे. ऐसी स्थिति में भाजपा नेतृत्व अब उन्हें विधान परिषद भेजेगा. इसके अलावा आगामी जुलाई महीने में भी 12 सीटें विधान परिषद की खाली हो रही हैं, जिनमें समायोजन को लेकर भाजपा नेताओं की तरफ से प्रयास किये जा रहे हैं. वहीं, भाजपा नेतृत्व इन सीटों पर जिन नेताओं को भेजने का काम करेगा, उनमें मुख्य रूप से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, मंत्री जयवीर सिंह, मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह जैसे नाम प्रमुख हैं. समाजवादी पार्टी भी जुलाई में खाली सीट में तीन नेताओं को एमएलसी बनाएगी. इसके अलावा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने वाले कई एमएससी और कई अन्य नेताओं को भी एमएलसी बनाए जाने की चर्चा है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

सूत्रों के अनुसार एक-दो सपा से आए नेताओं को एमएलसी बनाने की तैयारी है. इसके अलावा पार्टी के कई अन्य नेताओं को भी समायोजित किये जाने की तैयारी है. अभी मई महीने में खाली हो रही 6 सीटों में पांच मंत्री तो एक सीट पर भाजपा मीडिया से जुड़े एक नेता को उच्च सदन भेजने की चर्चा है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री (Political Analyst Dr. Dilip Agnihotri) ने बताया कि सत्तारूढ़ दल में दावेदारों का समायोजन चुनौती पूर्ण होता है. पदों की संख्या सीमित होती है. दावेदार बेशुमार होते हैं. परिवार आधारित पार्टियों में निर्णय एक केंद्र से होता है. भाजपा को कई स्तरों पर मंथन करना होगा. मई से जुलाई तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) सीटें रिक्त होनी है. विधानसभा में भाजपा को बहुमत है. विधयकों द्वारा निर्वाचित सदस्यों में उसका पलरा भारी रहेगा. इसी प्रकार राज्यपाल द्वारा नियुक्त सदस्यों में भी उसका कब्जा रहेगा. संविधान के अनुसार एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में रिटायर होते हैं. स्थानीय निकाय और विधयकों की ओर से अलग-अलग एक तिहाई, स्नातक और शिक्षकों द्वारा अलग-अलग 1/12 और 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं.

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राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री ने बताया कि इस समय प्राथमिकता में योगी मंत्रिपरिषद के वह सदस्य हैं, जो या तो किसी सदन के सदस्य नहीं है या अगले कुछ समय में किसी सदन में नहीं रहेंगे. इनको विधान परिषद में भेजा जा सकता है. इसके अलावा भाजपा के पराजित नेता और दूसरे दलों को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए नेता भी लाइन में है. उन्होंने बताया कि सपा सरकार के दौरान तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को विधान परिषद में मनोनय के लिए सरकार ने सूची भेजी थी. इसके जबाब में राम नाईक ने संविधान का हवाला दिया था. उनका कहना था कि साहित्य कला सहकारिता और समाज सेवा के लोगों की ही नियुक्ति बाध्यता है. देखना होगा कि वर्तमान सरकार इस पर कितना अमल करती है. इसके साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य प्रकरण को भी ध्यान में रखना चाहिए. वह पांच वर्ष तक मंत्री रहे. चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा पर हमला बोलते हुए वे अलग हो गए. विधान परिषद सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है. भाजपा को इस संबन्ध में भी विश्वसनीय लोगों को ही अवसर देना चाहिए.

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