लखनऊ : राजधानी के सबसे वीवीआईपी क्षेत्र हजरतगंज में सिविल अस्पताल है. एक मानक के तहत चिकित्सालय में डॉक्टर नियुक्त किए जाते हैं. हर अस्पताल का एक अलग मानक होता है, जो सरकार तय करती है. सिविल अस्पताल में भी डॉक्टरों की कमी है यही कारण है कि एक डॉक्टर के ऊपर तमाम जिम्मेदारी हैं और साथ ही मरीजों का भी काफी दबाव रहता है. मौजूदा समय में मौसमीय बीमारी मरीजों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई है.
सिविल अस्पताल के निदेशक डॉ आनंद ओझा ने बताया कि इस समय मौसमी बीमारी डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, निमोनिया, चिकनगुनिया तमाम बीमारी से पीड़ित मरीज अस्पताल में आ रहे हैं. हालांकि इस समय अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या ज्यादा है ना सिर्फ सिविल अस्पताल बल्कि अन्य अस्पतालों में भी इस मौसम में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है.
अस्पताल में मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड के मरीज आते हैं. इसके लिए फिजिशियन अस्पताल में हैं. मरीज आते हैं उनसे कंसल्ट करते हैं और दवाई लेते हैं. अस्पताल में इस समय संचारी रोग को लेकर व्यवस्था की गई है. डेंगू वार्ड भी बनाया गया है. जहां पर 28 बेड हैं और सभी बेड पर मच्छरदानी है. महिला और पुरुष का अलग-अलग वार्ड है. गंभीर होने पर मरीज को भर्ती कर लिया जाता है और उनका इलाज किया जाता है.
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उन्होंने बताया कि अस्पताल में जितने चिकित्सकों की डिमांड है. उतना हमारे पास नहीं हैं. शासन के द्वारा तय किया गया है कि किस अस्पताल में कितने डॉक्टर होने चाहिए. हालांकि यह बात सच है कि अस्पताल के डॉक्टरों पर मरीजों का दबाव ज्यादा है, क्योंकि मरीजों की संख्या अधिक है. डॉक्टरों की संख्या कम है. इसके अलावा वीवीआइपी, इमरजेंसी और पोस्टमार्टम में भी ड्यूटी इन्हीं डॉक्टर्स को देनी पड़ती है. संस्थान में जितने भी रेजिडेंट डॉक्टर हैं वह प्रशिक्षण के लिए व शिक्षण के लिए आए हैं. डिप्लोमा चिकित्सक काम में मदद करते हैं और पढ़ाई भी करते हैं. उन्हें अन्य जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकती है. उन्होंने बताया कि हर संस्थान के अलग मानक होते हैं और हम भी चाहते हैं कि हमारे यहां भी पर्याप्त डॉक्टर हों ताकि हमारे चिकित्सकों के ऊपर भी अधिक दबाव पड़े.
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